जल संरक्षण और प्रबंधान

नीति आयोग के जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार; वर्तमान में भारत अपने इतिहास के सबसे खराब जल संकट से जूझ रहा है, क्योंकि जल की गुणवत्ता में देश का स्थान 122 देशों में से 120वां है। इसके आगे कहा कि 2020 तक, भारत के 21 प्रमुख शहरों में पानी की गंभीर कमी होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि 600 मिलियन लोग उच्च जल तनाव की स्थिति का सामना कर रहे हैं, 75% घरों में पीने का पानी नहीं है और 84% ग्रामीण घरों में पाइप्ड पानी की पहुँच नहीं है।

जल अत्यावश्यक संसाधन है और जल भंडारण संरचनाओं के सूखने के साथ जल के बढ़ते प्रदूषण ने सरकार को तत्काल कार्य करने के लिए प्रेरित किया है।

विभिन्न सर्वेक्षण मुद्दे की गंभीरता को उजागर करते हैं और उनमें से कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे निम्नलिखित हैं:

  • केंद्रीय भूजल बोर्ड का सर्वेक्षणः जुलाई, 2018 में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि भूजल के दोहन ने महाराष्ट्र में इसके स्तर और गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, लगभग 20 जिलों में अधिकतम स्वीकार्य सीमा से अधिक भारी धातुओं की उपस्थिति पाई गई है।
  • जल संसाधन विकास और प्रबंधन केंद्र, कोझिकोडः जुलाई 2018 में अपनी रिपोर्ट के अनुसार, 83 प्रतिशत खुले कुओं और केरल की अधिकांश नदियों में पानी अत्यधिक दूषित है।
  • पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्डः 15 जनवरी, 18 को प्रकाशित इसकी वार्षिक रिपोर्ट 2015-2016 के अनुसार, राज्य की 17 प्रमुख नदियों में, जिनमें गंगा भी शामिल है, कोलीफॉर्म बैक्टीरिया (मानव मल में मुख्य रूप से पाया जाता है) का स्तर बहुत अधिक है, जो अनुमेय सीमा से भी अधिक है। इसका तात्पर्य यह है कि राज्य में नदी का पानी नहाने के लायक भी नहीं है।
  • विश्व संसाधन संस्थान की रिपोर्टः अगस्त 2019 को प्रकाशित इसकी रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के 17 सबसे अधिक जल तनाव (water stress) वाले देशों में 13वें स्थान पर है।

सरकारी पहलें

हालाँकि अतीत में सरकार ने पानी की गुणवत्ता और मात्रा में गिरावट को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे जल निकायों की मरम्मत के लिए दिशा-निर्देश जारी करना, बाहरी सहायता और घरेलू सहायता से जल निकायों का नवीकरण और पुनर्भरण, राष्ट्रीय जल मिशन और राष्ट्रीय जल नीति आदि; लेकिन, जल की लगातार कमी ने इसे बेअसर बना दिया है।

जल शक्ति मंत्रालयः मई 2019 में जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय एवं पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय को समेकित कर जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया। यह जल प्रबंधन के बारे में भारत सरकार की सक्रियता दर्शाता है। जल शक्ति मंत्रालय ने जल शक्ति अभियान शुरू करके पानी की चुनौती को खत्म करने का प्रयास किया है। इसमें जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन, पारंपरिक और अन्य जल निकायों/टैंकों का नवीनीकरण, बोरवेल पुनर्भरण संरचनाएं, वाटरशेड विकास और वनीकरण शामिल हैं।

समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI): नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति आयोग) ने समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI) विकसित किया है। जून 2018 में नीति आयोग द्वारा यह सूचकांक जारी किया गया, जो भारतीय राज्यों में प्रभावी जल प्रबंधन को बढ़ावा देता है। सीडब्ल्यूएमआई भारत में देश-व्यापी जल से सम्बंधित डेटा का पहला व्यापक संग्रह है। यह डेटा-आधारित निर्णय लेने की संस्कृति को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। अगस्त 2019 में CWMI 2.0 जारी किया गया था।

जल जीवन मिशनः इसे पेयजल और स्वच्छता विभाग, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा प्रारंभ किया गया है और यह 25 दिसंबर, 2019 को सुशासन दिवस पर शुरू किया गया।

पृष्ठभूमिः ग्रामीण आबादी को पर्याप्त और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए, सरकार एक केंद्र प्रायोजित योजना राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP) के माध्यम से तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जिसे 01 अप्रैल, 2009 को शुरू किया गया था।

कैग (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार, एनआरडीडब्ल्यूपी अपर्याप्त साबित हुआ है और केवल 44% ग्रामीण परिवारों, 85% सरकारी स्कूलों और आंगनबाडि़यों को सुरक्षित पानी तक पहुंच प्रदान की गई है। साथ ही 50% की तुलना में केवल 18% ग्रामीण आबादी को पीने योग्य पानी उपलब्ध कराया गया है। इसके अलावा, 35% की तुलना में केवल 17% ग्रामीण परिवारों को घरेलू कनेक्शन दिए गए थे।

  • भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP) का पुनर्गठन कर और इसे जल जीवन मिशन (JJM) में सम्मिलित कर दिया है। ताकि 2024 तक हर ग्रामीण घरों को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) प्रदान किया जा सके, यानी हर घर नल से जल (HGNSJ)।

जल शक्ति अभियान (जेएसए): यह पेयजल और स्वच्छता विभाग, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है। जेएसए दो चरणों में था, अर्थात सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 1 जुलाई से 15 सितंबर 2019 तक- चरण 1; तथा चरण 2; 1 अक्टूबर से 30 नवंबर 2019 तक वैसे राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के लिए हैं, जहाँ लौटते मानसून (आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पुडुचेरी और तमिलनाडु) से वर्षा प्राप्त होती है। जल शक्ति अभियान (JSA) को जल संरक्षण अभियान के रूप में शुरू किया गया है। जल शक्ति अभियान के दौरान, भारत के जल अभाव वाले जिलों में सभी हितधारक राज्य प्रशासन के साथ मिलकर राज्य और जिला स्तर पर कार्य करेंगे। इनके द्वारा किया जाने वाला कार्य जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन, पारंपरिक और अन्य जल निकायों/टैंकों का नवीनीकरण, पुनः उपयोग और पुनर्भरण संरचनाओं, वाटरशेड विकास, गहन वनीकरण आदि से सम्बंधित होगा।

जल संरक्षण शुल्कः यह जल संरक्षण से सम्बंधित शुल्क राष्ट्रीय जल नीति की जल उपयोग के शुल्क की अवधारणा के अनुरूप है। जल संरक्षण शुल्क (डब्ल्यूसीएफ) क्षेत्र की श्रेणी, उद्योग के प्रकार और भूजल निकासी की मात्रा के आधार पर निर्धारित किया जाएगा। डब्ल्यूसीएफ से सरकारी बुनियादी ढांचे, जल आपूर्ति एजेंसियों और खनन परियोजनाओं को छूट देने का कोई प्रावधान नहीं है, केवल कृषि उपयोगकर्ताओं को छूट दी गई है।

नोटः भूजल का मुख्य उपयोगकर्ता कृषि क्षेत्र है, जो करीब 90 प्रतिशत जल का उपयोग करता है। इसलिए कृषि क्षेत्र को जल संरक्षण शुल्क लगाया जाना चाहिए।

भूजल निष्कर्षण के लिए संशोधित दिशा-निर्देश भारत में भूजल निष्कर्षण को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने संशोधित दिशा-निर्देश 12 दिसंबर, 2018 को अधिसूचित किया, जिसे 01 जनवरी, 2019 से प्रभावी होना था।

अपनाये गये उपायः जल प्रदूषण और इसके अपव्यय की समस्या को दूर करने के लिए, भूजल निष्कर्षण से सम्बंधित संशोधित दिशा-निर्देश अधिसूचित किया गया है। इसमें उद्योगों द्वारा पुनर्नवीनीकरण और उपचारित सीवेज वाटर का उपयोग, प्रदूषणकारी उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान, डिजिटल फ्रलो मीटर की अनिवार्य आवश्यकता, पीजोमीटर और डिजिटल वॉटर लेवल रिकार्डर, निर्दिष्ट उद्योगों को छोड़कर छत के ऊपर वर्षा जल संचयन और प्रदूषणकारी उद्योगों/परियोजनाओं के परिसर में भूजल संदूषण की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए अपनाए जाने वाले उपाय आदि शामिल हैं।

गंगा आमंत्रण अभियानः गंगा नदी के प्रदूषण के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए इसे जल शक्ति मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था। गंगा आमंत्रण अभियान 10 अक्टूबर से 11 नवंबर, 2019 के बीच गंगा नदी पर होने वाला एक अग्रणी और ऐतिहासिक खोजपूर्ण ओपन-वाटर राफ्रिटंग और कयाकिंग अभियान है। यह अभियान देवप्रयाग से शुरू होकर गंगा सागर में समाप्त हुआ; जो गंगा नदी के सम्पूर्ण विस्तार यानी 2500 किलोमीटर से अधिक को कवर किया।

जागरुकता अभियान के अलावा, टीम जल परीक्षण के उद्देश्य से नदी के विभिन्न हिस्सों से पानी के नमूने एकत्र किये, जबकि भारतीय वन्यजीव संस्थान के सदस्य वर्ष 2019 के लिए वनस्पतियों और जीवों की गणना किये।

चुनौतियां

  • जनशक्ति की कमी के कारण पहल की निगरानी करना मुश्किल है।
  • डेटा के संग्रह और पानी की सफाई के लिए प्रौद्योगिकी और कार्यप्रणाली को अपग्रेड करने की आवश्यकता है।
  • पानी राज्य का विषय है, इसलिए राज्यों को योजना निर्माण और कार्यान्वयन में सक्रिय होना चाहिए।
  • ‘टॉप डाउन अप्रोच’ टिकाऊ नहीं है।

सुझाव

अधिक जागरुकता अभियान चलाने की जरूरत है। जल अधिनियम 1974 का सम्पूर्ण रूप से पालन करने की आवश्यकता है।

  • प्रदूषण के बिन्दु स्रोत (Point source) को प्रौद्योगिकी की सहायता से उन्नत करने की आवश्यकता है, ताकि उपयोग किए गए पानी और सीवेज का गैर-हानिकारक निर्वहन संभव हो।
  • इसरो की सेवाओं का उपयोग करके प्रदूषण के गैर बिंदु स्रोतों की पहचान की जानी चाहिए।
  • समर्पित जल संरक्षण संवर्ग (cadre) की स्थापना की आवश्यकता है।
  • स्थानीय समुदायों की भागीदारी के साथ ‘बॉटम उप अप्रोच’ अपनाना समय की आवश्यकता है।
  • अंतर-राज्य जल विवादों के समाधान के लिए संघीय सहयोग की आवश्यकता है। इसके साथ ही साझा समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए कुशल जल उपयोग करना आवश्यक है।