डिजिटल समावेशन : आधुनिक एवं सशक्त समाज के निर्माण हेतु आवश्यक - संपादकीय डेस्क
डिजिटल समावेशन की अवधारणा को 21वीं सदी में व्यापक रूप से महत्व मिला है। डिजिटल क्षेत्र एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में लाखों रोजगार उत्पन्न हुए हैं तथा डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग बैंकिंग से लेकर कृषि एवं रक्षा तक सभी क्षेत्रों में किया जा रहा है। 2014 से भारत सरकार ने विभिन्न उपायों द्वारा डिजिटलीकरण लाने में सक्रिय भागीदारी निभाई है। देश एक डिजिटल क्रांति का अनुभव कर रहा है, जो ई-भुगतान, डिजिटल साक्षरता, वित्तीय समावेशन, भौगोलिक मानचित्रण, ग्रामीण विकास तथा कई अन्य क्षेत्रों में परिवर्तनकारी विकास को गति दे रहा है। ऐसे में डिजिटल समावेशन वर्तमान समय की एक उभरती ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 भारत के परिवहन क्षेत्र का विकार्बनीकरण
- 2 ब्रिक्स एवं वैश्विक दक्षिण - आलोक सिंह
- 3 भारत की दुर्लभ भू-संपदा का समुचित दोहन: एक रणनीतिक अनिवार्यता - नुपुर जोशी
- 4 प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता: भारत की भावी संवृद्धि का एक प्रमुख स्तंभ - संपादकीय डेस्क
- 5 कृत्रिम बुद्धिमत्ता का पर्यावरणीय प्रभाव : नवाचार और धारणीयता का संतुलन
- 6 भारत की वैश्विक रणनीतिक साझेदारियां
- 7 भारत की साइबर प्रतिरोधक क्षमता का सुदृढ़ीकरण एक राष्ट्रीय सुरक्षा अनिवार्यता - संपादकीय डेस्क
- 8 पुनरुत्थान के मार्ग पर बिम्सटेक भारत के लिए रणनीतिक एवं आर्थिक अवसर - आलोक सिंह
- 9 डिजिटलीकरण: सामाजिक परिवर्तन का उत्प्रेरक - संपादकीय डेस्क
- 10 अमेरिका की नई टैरिफ नीति वैश्विक व्यापार युद्ध की दस्तक - डॉ. उदय भान सिंह