सतत भविष्य के लिए वन संतुलन, संरक्षण एवं समुचित प्रबंधन की अनिवार्यताएं - नूपुर जोशी

भारत के वन केवल हरित विस्तार नहीं हैं; वे जीवंत पारिस्थितिक तंत्र हैं, जो जीवन, आजीविका और जलवायु-संतुलन को बनाए रखते हैं। प्राचीन पवित्र उपवनों (Sacred Groves) से लेकर आधुनिक संरक्षित क्षेत्रों तक, वे मानव और प्रकृति के सहअस्तित्व की सदियों पुरानी परंपरा का साक्ष्य हैं। परंतु वनों की कटाई, जलवायु तनाव और भूमि उपयोग की प्रतिस्पर्धी मांगें इस संतुलन को निरंतर चुनौती दे रही हैं। जब समूचा विश्व सतत विकास की दिशा में अग्रसर है, तब भारत का वन क्षेत्र में 9वें स्थान पर पहुँचना किसी समापन का नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का संकेत है। यह उपलब्धि केवल ....

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