निबन्ध

क्या अधिक मूल्यवान है, बुद्धिमत्ता या चेतना? - (June 2022)

विवेक उपाध्यायकिसी सामर्थ्य का मूल्य उसकी उपयोगिता से सिद्ध होता है। बुद्धिमत्ता तथा चेतना दोनों ही व्यक्ति के सामर्थ्य हैं। बुद्धिमत्ता का तात्पर्य व्यक्ति के तर्क तथा समझदारी की उस क्षमता से है, जो उसके सीखने तथा अनुकूलन की क्षमता को बढ़ाता है। जबकि चेतना आंतरिक तथा बाह्य अस्तित्व के प्रति जागरूकता से संबंधित है। इसीलिए बुद्धिमत्ता को मापने के तो कुछ मापदंड प्रचलित हैं, परंतु चेतना को मापने का कोई मापदंड नहीं है। किसी व्यक्ति की बुद्धिमत्ता को उसकी तर्क-क्षमता, विश्लेषण-क्षमता, समझ-शक्ति के आधार पर तय किया जाता है। अर्थात यदि किसी व्यक्ति में बुद्धिमत्ता को बढ़ा दिया जाए तो

कौशल विकास के माध्यम से ग्रामीण भारत का रूपांतरण - (May 2022)

विजेता- स्वाती प्रभुदास लोखंडे, औरंगाबाद (महाराष्ट्र) भारत गांवों का देश है। यहां की अधिकांश आबादी ग्रामीण है, इसलिए ग्रामीण विकास महत्वपूर्ण है। भारत की अधिकांश ग्रामीण आबादी का शिक्षण-प्रशिक्षण तथा कौशल स्तर निम्न पाया जाता है, जो इनकी आर्थिक स्थिति से प्रभावित होता है। गांवों में मौसमी बेरोजगारी, पूर्ण बेराजगारी, अल्प बेरोजगारी आदि पाई जाती हैं। इससे विशेषकर ग्रामीण युवा व बेरोजगार तथा श्रमिक वर्ग प्रभावित होते हैं। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017-18 में ग्रामीण बेरोजगारी की दर 5.3% पाई गई है। अतः जब तक बेरोजगार युवाओं को उनकी योग्यता और आवश्यकता

सार्वजनिक नीति निर्माण में महिलाओं की भागीदारी की आवश्यकता - (April 2022)

अश्वनी कुमार, गांधी विहार (दिल्ली)अंतर-संसदीय संघ के अध्यक्ष मार्टिन चुनगॉन्ग द्वारा वर्ष 2021 में नीति निर्माण में महिलाओं की भागीदारी पर एक रिपोर्ट जारी की गई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि वैश्विक स्तर पर महिला सांसदों की भागीदारी 25% से अधिक हो गई है। मार्टिन चुनगॉन्ग के अनुसार यह अत्यंत खुशी की बात है कि “पहली बार दुनिया भर की संसदों में महिलाओं की हिस्सेदारी का वैश्विक औसत, एक चौथाई का आंकड़ा पार कर गया है।” अंतर-संसदीय संघ (IPU) संयुक्त राष्ट्र में सांसदों का एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसके द्वारा विश्व के विभिन्न भागों की संसदीय प्रक्रिया

विकास जैसी गतिशील प्रक्रिया में मानवाधिकार, मूल्यवान मार्गदर्शक हैं - (March 2022)

विजेता–डॉ. जय नारायण सिंह (मोती बाग, नई दिल्ली) विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जो किसी प्राणी या समाज को उन्नति की ओर ले जाती है। एक ऐसी स्थिति, जिससे प्राणी में कार्य क्षमता बढ़ती है। यानी यह एक तरह की अभिवृद्धि है, जिसका एक हिस्सा स्वयं मनुष्य है। चूंकि मनुष्य बुद्धिमान एवं विवेकवान प्राणी है इसलिए इसे कुछ ऐसे मूल तथा अहरणीय अधिकार प्राप्त हैं, जिसे सामान्यतया मानवाधिकार कहा जाता है। विकास परिवर्तन, प्रकृति का नियम है। समय-समय पर विकास के पैमाने काफी हद तक बदलते रहते हैं। किंतु मानवाधिकार ऐसे अधिकार हैं, जो कि सभी दशाओं में सभी व्यक्तियों

ओटीटी प्लेटफार्मः विनियमन बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता - (February 2022)

विजेता- नवीन चंदन राय (गांधी विहार, दिल्ली)जैसे पौष्टिक भोजन स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक है वैसे ही गुणवत्तापूर्ण मनोरंजन चैतन्य एवं क्रियाशील मस्तिष्क के लिए आवश्यक है। प्रश्न है कि गुणवत्तापूर्ण मनोरंजन क्या है? इसकी परिभाषा कौन तय करे? दर्शक, निर्माता या सरकार। पुनः एक प्रश्न मनमस्तिष्क में आता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हम मनोरंजन के लिए क्या कुछ भी बना या दिखा सकते हैं, या इसके विनियमन की आवश्यकता है? इंसान आदिम से आधुनिक बनने का सफर तय करता गया और आचार-व्यवहार, मनोरंजन, ज्ञानार्जन के साधनों में बदलाव आता गया। जहां ऐतिहासिक काल में सामूहिक

क्या 21वीं सदी के नेटिज़ेंस के लिए गोपनीयता एक भ्रम है? - (February 2022)

21वीं सदी में विकास प्रक्रिया में तकनीकी प्रगति के साथ नवाचार एक महत्वपूर्ण ईंधन की भूमिका निभा रहा है। वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक लगातार ऐसे तंत्रों का निर्माण कर रहे हैं, जिनके माध्यम से सरकारी एवं निजी क्षेत्र की कार्य कुशलता में वृद्धि की जा रही है। देश की सुरक्षा तथा आपराधिक गतिविधियों की निगरानी से लेकर कोविड-19 महामारी जैसी त्वरित आवश्यकताओं में भी निगरानी प्रणाली तथा नवाचार का व्यापक उपयोग किया जा रहा है। इन सभी प्रक्रियाओं में वृहद स्तर पर निर्मित होने वाले व्यक्तिगत एवं सामूहिक डेटा (आंकड़ों) की सुरक्षा संबंधी प्रश्न महत्वपूर्ण हो गए हैं। अमेरिकी न्यायविद

शहरी मध्य वर्ग, भारत के रूपांतरण की कुंजी है - (January 2022)

विजेता- नुपुर कुमारी, देवघर (झारखंड) भारतीय अर्थव्यवस्था अब गरीबी के लबादे से निकलकर तेजी से मध्य वर्ग की आबादी की ओर शिरकत कर रही है। इस शिरकत की बानगी हमें भारतीय विज्ञापनों, सिनेमा, ओटीटी प्लेटफॉर्म ही नहीं बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी साफ नजर आएगी। अपने-अपने तरीके से सभी बाजार शहरी मध्य वर्ग को लुभाते नजर आएंगे। ऐसा हो भी क्यों न, वर्ष 2017 के नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2025-26 तक भारत में मध्य वर्ग की आबादी वर्ष 2015-16 के स्तर से दोगुनी से अधिक बढ़कर 547 मिलियन व्यक्ति (113.8 मिलियन परिवार)

सद्भावना ही एकमात्र ऐसी संपत्ति है जिसे प्रतिस्पर्धा कम या नष्ट नहीं कर सकती - (January 2022)

अश्विनी कुमार राष्ट्रीय एकीकरण सम्मेलन की एक रिपोर्ट के अनुसार “सद्भावना एक मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से व्यक्तियों में एकता, संगठन एवं शक्ति की भावना का विकास होता है; साथ ही उनमें एक समान नागरिकता की अनुभूति होती है। अंततः इससे सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा मिलने के साथ राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बंधुत्व की भावना का विकास होता है।” समाज के नैतिक मापदंडों में सद्भावना एक ऐसी अदृश्य शक्ति है, जो किसी समाज, व्यक्ति अथवा राष्ट्र की प्रतिष्ठा को लंबे समय तक बनाए रखने में मदद करती है। सद्भावना के मूल्य को अर्जित करना अत्यंत ही कठिन

हम भावी पीढि़यों को एक स्वस्थ और टिकाऊ ग्रह के अधिकार से वंचित नहीं कर सकते - (January 2022)

मोनिका मिश्रा महात्मा गांधी ने कहा था कि “पृथ्वी, वायु, भूमि तथा जल हमारे पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्तियां नहीं हैं। वे हमारे बच्चों की धरोहरें हैं। वे जैसी हमें मिली हैं वैसी ही उन्हें भावी पीढि़यों को सौंपना होगा।” धारणीय विकास की यह संकल्पना कोई नवीन संकल्पना नहीं है बल्कि पर्यावरणीय जागरूकता के विचारों से प्रेरित इस संकल्पना का विकास सतत रूप से हुआ है। विकास की इस संकल्पना के अंतर्गत संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के साथ भावी पीढि़यों के लिए संसाधनों के संरक्षण को महत्व प्रदान किया जाता है। संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता एवं महत्व को एक उदाहरण

भविष्य उनका है, जिनके पास डेटा है - (December 2021)

विजेता- अदिति श्रीवास्तव सूचना एवं संचार क्रांति के वर्तमान युग में डेटा एक अत्यंत मूल्यवान संसाधन के रूप में उभरा है। जैसे तेल और गैस ने 20वीं और 21वीं शताब्दी की शुरुआत में वैश्विक अर्थव्यवस्था को संचालित किया, वैसे ही वर्तमान दौर में डेटा, वैश्विक अर्थव्यवस्था को चला रहा है। डिजिटल क्रांति में भी इससे तीव्रता आई है। साथ ही कोविड-19 महामारी का एक सकारात्मक परिणाम हमें यह देखने को मिला है कि इसने डिजिटल परिवर्तनों को बढ़ाने में उत्प्रेरक का कार्य किया है और लोगों के समक्ष डिजिटल साधनों तथा डेटा के महत्व को उजागर किया है। आज वैश्विक चर्चा भी

स्त्री पैदा नहीं होती, बल्कि बना दी जाती हैं - (December 2021)

-मोनिका मिश्रा मनोविज्ञान का यह प्रचलित मत है कि व्यक्ति अपने सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश का उप-उत्पाद होता है। उदाहरण के लिए वृहद स्तर पर विभिन्न महाद्वीपों अथवा देशों में निवास करने वाले लोगों की सामाजिक-आर्थिक दशा तथा विकास की प्रवृत्ति को देखा जा सकता है। हम यहां स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि अफ्रीका महाद्वीप के किसी देश में निवास करने वाले व्यक्ति की परिस्थितियां दूसरे अन्य महाद्वीपों में रहने वाले लोगों की परिस्थितियों से एकदम भिन्न हैं। इन्हीं परिस्थितियों के समेकित प्रभाव से व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण होता है। महिलाओं के संदर्भ में भी समान अवधारणा लागू होती है।

आर्थिक शक्ति समकालीन विश्व में किसी भी राष्ट्र की शक्ति की आधारशिला है - (November 2021)

मोनिका मिश्रा औद्योगीकरण की प्रक्रिया के आरंभ में एडम स्मिथ जैसे विद्वानों ने खुली आर्थिक नीति का समर्थन करते हुए इस बात पर महत्व डाला था कि वैश्विक स्तर पर मांग एवं आपूर्ति के रूप में बाजार की शक्तियां आर्थिक गतिविधियों को आसानी से संचालित करने में मदद करती हैं। इस प्रकार, संपूर्ण विश्व में तथा विशेषकर पश्चिमी देशों में बाजार आधारित अर्थव्यवस्थाओं की एक नवीन पद्धति का विकास हुआ, जिसने राष्ट्रों की शक्ति को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आर्थिक शक्तियां हमेशा से किसी भी समाज के विकास स्तर को मापने का आधार रही हैं। किंतु, ऐतिहासिक क्रम में

वैश्विक चुनौतियां वैश्विक समाधानों की मांग करती हैं - (October 2021)

विजेता- अवनीश कुमार शुक्ला सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी परिवर्तनों ने वैश्विक समुदाय के समक्ष नवीन चुनौतियां प्रस्तुत की हैं, जिन्हें पहचाने बिना हम आगे बढ़ने के बारे में सोच भी नहीं सकते। ये समस्याएं ऐसी हैं, जिन्हें किसी देश की सीमा या सत्ता के अंतर्गत समेटा नहीं जा सकता; जिनका सरोकार कम या अधिक सभी से है।वैश्विक परिस्थितियों से उपजे माहौल में ही संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी। सात दशकों के कार्यकाल में इसके द्वारा वैश्विक चुनौतियों का सामूहिक प्रयास के माध्यम से हल करने का प्रयास किया गया और एक हद तक उनमें सफलता भी मिली।

भारतीय अर्थव्यवस्था चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए कितनी तैयार है? - (October 2021)

मोनिका मिश्रा वैश्विक स्तर पर औद्योगिक विकास की दिशा तकनीकी विकास द्वारा निर्धारित होती रही है और इसी के आधार पर औद्योगिक विकास को विभिन्न चरणों में विभाजित किया गया है। एक तरफ जहां प्रथम औद्योगिक क्रांति जल व भाप की शक्ति पर, द्वितीय औद्योगिक क्रांति विद्युत ऊर्जा पर तथा तृतीय औद्योगिक क्रांति इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रोद्योगिकी पर आधारित थी, तो वहीं चौथी औद्योगिक क्रांति मुख्यतः इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), बाधा रहित इंटरनेट कनेक्टिविटी, तीव्र गति वाली संचार तकनीकियों और 3डी प्रिंटिंग जैसे अनुप्रयोगों पर आधारित होगी। सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करके विनिर्माण तथाशृंखलाबद्ध उत्पादन को संदर्भित करने वाली चौथी

वैश्वीकरण के युग में बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य - (September 2021)

मोनिका मिश्रावैश्विक स्तर पर तीव्र गति से बदलती तकनीकी एवं आर्थिक परिस्थितियों के बीच वैश्वीकरण से बच्चों के समक्ष अनेक चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं, जो बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास में बाधक हैं। बच्चों की आरंभिक अवस्था से लेकर युवावस्था की उम्र में पहुंचने तक उनके लिए भावनात्मक कल्याण सर्वप्रमुख आवश्यकता होती है। प्रतिस्पर्धा, उपभोक्तावाद, व्यक्तिवाद, संकीर्णता, परिवारों का टूटना, सामूहिक भागीदारी का अभाव, अलगाव, असमानता, सापेक्ष गरीबी और अपराध जैसी समस्याओं की आवृत्ति में वृद्धि ने बच्चों के मानसिक विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव डाला है। विभिन्न देशों के मध्य होने वाले युद्ध एवं संघर्ष, पर्यावरणीय विनाश, प्रवास, समुदायों

समाज में लैंगिक रूढि़बद्धता की समस्या एवं मीडिया की भूमिका - (August 2021)

मोनिका मिश्रा वैश्विक स्तर पर विशेष कर लोकतांत्रिक देशों में मीडिया को नागरिक समाज तथा लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में जाना जाता है। इसका कारण यह है कि मीडिया सरकार के अन्य सभी अंगों विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के कार्यों पर नजर रखकर उनके मध्य संतुलन कायम करने का कार्य करती है। मीडिया तथा समाज के अंतर्संबंध द्वि-मार्गी हैं। एक ओर मीडिया समाज में विद्यमान प्रतिमानों को प्रतिबिंबित करने का कार्य करता है तो वहीं दूसरी तरफ यह नए प्रतिमानों को स्थापित करके उन पर अपनी पहचान छोड़ता है। इन दोनों प्रारूपों के अंतर्गत समाज में व्याप्त लैंगिक रूढि़बद्धिता

खाद्य अपव्यय: भारत के खाद्य सुरक्षा संबंधी प्रयासों में बाधक - (July 2021)

मोनिका मिश्रा21वीं सदी तक व्यापक तकनीकी एवं आर्थिक प्रगति के बावजूद वर्तमान में भी भारत की एक बड़ी जनसंख्या को मूलभूत आवश्यकताओं अर्थात रोटी, कपड़ा तथा मकान उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। इन आवश्यकताओं में भी रोटी अर्थात खाद्य अनुपलब्धता की समस्या की गंभीरता का अनुमान संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के आधार पर लगाया जा सकता है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादन के बावजूद भारत में लगभग 190 मिलियन लोग अल्पपोषण की समस्या के शिकार हैं। रिपोर्ट के अनुसार, देश में उत्पादित खाद्यान्न पदार्थों का लगभग 40% भाग नष्ट

व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा - (May 2021)

- विवेक उपाध्याय सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी करने वाला अहसान अहमद लगातार इस द्वंद्व में रहता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कौन ज्यादा महत्वपूर्ण है। जब वह अन्नादुरई जैसे वैज्ञानिक के बारे में पढ़ता है जिसे प्रतिष्पर्धी देशों की गुप्तचर संस्थाओं ने सूचना के अधिकार से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर षड्यंत्र का शिकार बना लिया तब उसे राष्ट्रीय सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण लगने लगती है। वहीं जब वह ‘माई नेम इज खान’जैसी फिल्म देखता है जिसमें एक व्यक्ति को मात्र धार्मिक पहचान के आधार पर सुरक्षा संस्थाओं के द्वारा प्रताडि़त किया गया तब उसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता अधिक

बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए - (May 2021)

- मोनिका मिश्रा मनुष्य की बौद्धिक शक्ति उसके पास उपलब्ध सबसे मजबूत और उपयोगी शक्तियों में से एक है। यह शक्ति, मनुष्य की कल्पना के साथ मिलकर सफलता अथवा असफलता, खुशी अथवा दुख तथा अवसर अथवा बाधाएं पैदा करती है। इस बौद्धिक शक्ति का विकास सामान्य रूप से ध्यान, मानसिक छवियों एवं विचारों द्वारा होता है। मनुष्य द्वारा दैनिक आधार पर लिए जाने वाले छोटे-छोटे निर्णयों के साथ वैश्विक स्तर पर लिए जाने वाले सभी निर्णय मनुष्य की बौद्धिक क्षमता के परिचायक हैं। स्टर्न ने मनुष्य की बुद्धि को परिभाषित करते हुए कहा है कि ‘बुद्धि व्यक्ति की वह सामान्य योग्यता

अंतर्निहित प्रवृत्ति की कमजोरी चरित्र की कमजोरी बन जाती है - (April 2021)

मोनिका मिश्राकिसी भी व्यक्ति की प्रवृत्ति उसके स्वभाव तथा व्यक्तित्व से प्रभावित एवं संचालित होती है; जबकि चरित्र मनुष्य की सभी आदतों का योग होता है। इस प्रकार प्रवृत्ति इंसान के सोचने एवं किसी भी परिस्थिति से निपटने के तरीके को उजागर करती है तो वहीं चरित्र कार्यों को करने की पद्धति से दृष्टिगोचर होता है। उदाहरण के लिए खेलों के संदर्भ में हमने अक्सर यह देखा है कि कुछ खिलाड़ी राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक लंबे समय तक अपनी पहचान बनाए रखते हैं। वहीं कुछ खिलाड़ी तो ओलंपिक जैसी कठिन प्रतियोगिताओं में भी एक साथ अनेक खेलों में

कर्तव्यों का अच्छी तरह से निर्वहन तदनुरूप अधिकारों का निर्माण करता है - (March 2021)

मोनिका मिश्रा कोविड-19 महामारी के समय विश्व के अनेक देशों को स्वास्थ्य आपातकाल तथा लॉकडाउन जैसी स्थितियों से गुजरना पड़ा है। महामारी काल में विश्व भर में नागरिकों को प्रदान किए गए अधिकारों के ऊपर उनके कर्तव्यों के निर्वहन के बेहतर उदाहरण देखने को मिले हैं। भारत में भी लोगों ने इस महामारी से निपटने के लिए न केवल सरकार का सहयोग किया, बल्कि आर्थिक एवं अन्य रूपों में अनेक मदद भी की। यह भारत की अनूठी परंपरा रही है कि जब भी किसी चुनौती का सामना करना होता है, तो देशवासियों की उनकी कर्तव्य पालन के प्रति अदृश्य एवं अंतर्निहित

गलत सूचनाओं के प्रसार से जन्म लेता सूचना का संकट - (January 2021)

डॉ- दुर्गेश सिंहसूचना का महत्व हम महाभारत के उस दृष्टांत में देख सकते हैं, जिसमें द्रोणाचार्य को भीम द्वारा उनके पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु के बारे में गलत सूचना दी गई जिसका परिणाम यह हुआ कि हाथ में अस्त्र के होते हुए युद्ध में अजेय रहने का सामर्थ्य रखने वाले द्रोणाचार्य ने हतोत्साहित होकर शस्त्र रख दिया और स्वयं मृत्यु को प्राप्त हो गए। अर्थात सूचना का मिथ्यात्व समाज को सदा से प्रभावित करता आ रहा है तथा विभिन्न समाजों को इसके अप्रत्याशित परिणाम का सामना भी करना पड़ा है।सूचना की प्रबल उपयोगिता एवं इसके प्रभाव के कारण ही

संविधान की पवित्रता अनिवार्य रूप से धर्मनिरपेक्षता की पुष्टि में निहित है - (December 2020)

विवेक उपाध्यायसंविधान का मूल कार्य बुनियादी नियमों का ऐसा समूह उपलब्ध कराना है, जिससे समाज के सदस्यों के बीच न्यूनतम भरोसा और समन्वय बना रहे। भारतीय संविधान का उद्देश्य एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण करना है। लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसका सही अर्थों में लाभ तभी सामने आ सकता है, जब हम अपने समाज की मानसिकता को बदलने में समर्थ हो जाएं, यानी उसे उस असुरक्षा से मुक्त कर पाएं जो उसे जाति, धर्म, संप्रदाय और क्षेत्रीयता के दायरे में बने रहने को मजबूर करती हैं। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने अपने अनुभवों में साम्प्रदायिकता को सबसे बड़ी चुनौती के

ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के अलावा सामाजिक पूंजी, शासन और प्रकृति में निवेश भारत के दीर्घकालिक विकास की कुंजी है। - (November 2020)

डॉ. दुर्गेश सिंह विकास का तात्पर्य अनाभिव्यक्त शक्तियों का व्यक्त होना है। बात जब एक देश के विकास की हो तो उसके पास उपलब्ध संसाधनों, ऊर्जा, बुनियादी ढांचा, उसके पर्यावरण, शासन और सामाजिक मानवीय संपत्ति की उपलब्धता तथा उसकी गुणवत्ता के देश के विकास में योगदान कर सकने की सामर्थ्य और संभावनाओं का पूर्ण प्रकटीकरण अनिवार्य होता है; तथा यह इन क्षेत्रों में तार्किक, उपयोगी और विश्वसनीय निवेश के माध्यम से ही संभव हो सकता है।देश के विकास को दीर्घकालिक लाभ में बदलने, उसे टिकाऊ स्वरूप देने के लिए सरकार ने ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के लिए बड़ा ऐलान किया

सामाजिक-आर्थिक विकास में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं कौशल की भूमिका - (March 2020)

विवेक उपाध्याय प्रतिष्ठित उद्यमी पुरस्कार की घोषणा होते ही नरेश फ्रलैश-बैक में चला गया। ग्रामीण भारत के दलित जीवन की चुनौतियां और उनका सामना करते हुए आई.आई.टी. में प्रवेश तथा फिर दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनी में जॉब और आज उसके ही स्टार्ट-अप प्रयास को राष्ट्रीय प्रोत्साहन_ भावों की अलग-अलग नदियों में डुबो रहे थे। अगर कोई भाव स्थाई था तो वह उसकी विनम्रता थी। विनम्रता उसकी सफलता के प्रति। नरेश ने सभी अवरोधों को पार पाते हुए अच्छी शिक्षा पाई। स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए निरंतर दक्षता बढ़ाने में लगा रहा। यही उसकी सफलता का सबसे बड़ा

केवल सशक्तीकरण से महिलाओं की समस्याएं हल नहीं की जा सकतीं - (March 2020)

दुर्गेश सिंह भूमंडलीकरण ने विश्व पटल पर जिस आर्थिक, लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों के पैरोकारी विश्व में हर वर्ग समुदाय को अपने सपनों को हकीकत में बदलने का आश्वासन दिया, उसी ने औरतों को दमित शोषित अवस्था से निकलकर ताकतवर होने का एक भाव भी उत्पन्न किया। आज स्त्री घर से बाहर निकलकर ऑफिस जाती हैं वह आत्मविश्वास के साथ कारपोरेट कल्चर के परिधानों में सुसज्जित जब ऑफिस की कुर्सी पर बैठती है तो नारी सशक्तीकरण का आदर्श रूप प्रस्तुत करती है। यह स्त्री एक आई-ए-एस-, आई-पी-एस- अफसर भी हो सकती हैं_ किसी कंपनी की मैनेजिंग सीईओ हो सकती है तथा सफल

राजनीति का अपराधीकरणः भारतीय लोकतंत्र के समक्ष एक गम्भीर संकट - (September 2020)

विवेक उपाध्यायएसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म के अनुसार भारत में 43% सांसदों के ऊपर आपराधिक केस है। इस गंभीरता को देखते हुए सर्वाेच्च न्यायालय ने पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन की याचिका पर हाल ही में राजनीतिक दलों को अपराधीकरण के स्पष्टीकरण के लिए जिम्मेदार ठहराया। इस स्थिति में एक बार फिर लोकतंत्र के चिंतकों का ध्यान राजनीति के अपराधीकरण की ओर गया।आपराधिक इतिहास वाले लोगों का राजनीति में शामिल होना या चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करना राजनीति के अपराधीकरण को परिलक्षित करता है। यह ऐसी समस्या है जिस पर संविधान निर्माताओं ने विशेष ध्यान नहीं दिया। ऐसा स्वाभाविक इसलिए भी था क्योंकि

भारत में क्षेत्रीय असमानता दूर करने में राजकोषीय संघवाद कितना प्रभावी? - (April 2020)

विवेक उपाध्यायभारत में एक तरफ गोवा एवं केरल जैसे क्रमशः उच्च प्रति व्यक्ति आय व सशक्त सामाजिक संकेतक वाले राज्य हैं तो वहीं दूसरी बिहार जैसे बीमारू राज्य हैं; जो आर्थिक तथा सामाजिक दोनों ही स्तरों पर अफ्रीका जैसे अति पिछड़े क्षेत्रों से साम्य रखते हैं। भारत के आर्थिक विकास की यह विडंबना हमेशा से नियोजकों तथा प्रशासकों के लिए चुनौती प्रस्तुत करती रही है। इस चुनौती के शमन के लिए स्वतंत्रता के समय से ही प्रयास होते रहे हैं। भारत में व्याप्त क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर असमानता को दूर करने के लिए 1990 के दशक में राजकोषीय संघवाद की संकल्पना

उच्च उपलब्धि सदैव उच्च अपेक्षा के ढांचे के अंतर्गत प्राप्त होती है - (May 2020)

विवेक उपाध्यायफरवरी 2020 में जब विश्व अभूतपूर्व स्वास्थ्य आपातकाल की तरफ बढ़ रहा था। एकदम अपरिचित से कोरोना वायरस का प्रकोप दुनिया पर छाने लगा। भारत जैसे देशों में इसके संक्रमण को अधिक से अधिक जांचों के माध्यम से ही रोका जा सकता था। विडंबना यह थी कि भारत जर्मनी से आयातित सीमित तथा महंगी जांच किट के भरोसे था। ऐसे में भारत के वैज्ञानिकों तथा चिकित्सकों पर अपेक्षाओं का भारी बोझ था। इसी समय एक वैज्ञानिक- पुणे स्थित स्काईलैब की शोध एवं विकास प्रमुख मीनल दखावे भोसले अपने आठ माह के गर्भ की जटिलताओं के साथ अस्पताल में जूझ

स्वास्थ्य एवं शिक्षा में निवेश के माध्यम से जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग - (May 2020)

दुर्गेश सिंहआईआईटी चेन्नई के 56वें दीक्षांत समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 21वीं सदी की नींव तीन स्तंभों- नवाचार, टीम वर्क और प्रौद्योगिकी पर टिकी है। राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में युवाओं की भागीदारी रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि तेजी से बदलते वैश्विक परिवेश में भारत को अनोखा जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त है। यह सर्वाधिक युवाओं वाला देश है तथा यह एक ऐसा लाभ है जो हमें वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के युग में बढ़त प्रदान करता है। हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है कि हम अपनी युवा शत्तिफ़ को कैसे सकारात्मक और सृजनात्मक रास्ते पर प्रेरित करें। 2055 तक भारत

नवीकरणीय ऊर्जा: भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं का विकल्प - (August 2020)

विवेक उपाध्याय ‘‘सम्पोषणीय ऊर्जा विकास के बिना सम्पोषणीय विकास नहीं किया जा सकता’’ स्वीडेन के पूर्व उपप्रधानमंत्री का यह वक्तव्य आज मुहावरे का रूप ले चुका है। इस वैश्विक स्वीकार्यता के समानान्तर, सुरक्षित, विश्वसनीय तथा समतापूर्ण आवश्यकताएं, स्वच्छ ऊर्जा विकास के समक्ष चुनौती भी प्रस्तुत कर रही हैं। पेरिस प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने के लिए कार्बन मुक्त स्वच्छ ऊर्जा का विकास आवश्यक है। इसका एक बड़ा हिस्सा प्रकृति पुनर्भरणीय नव्यकरणीय स्रोतों से आता है। इनमें सौर, पवन, जैव, लघु पनबिजली, भू-तापीय, ज्वारीय एवं तरंग ऊर्जाएं इत्यादि शामिल हैं। जीवाश्म ईंधनों ने औद्योगिक क्रांति तथा मानव विकास में महत्वपूर्ण योगदान

क्या वर्तमान दौर में इंटरनेट की सेंसरशिप आवश्यक है? - (February 2020)

देवेन्द्र प्रताप सिंहइंटरनेट ने लोगों को एक नया माध्यम प्रदान करके जहां एक ओर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को बढ़ावा दिया है, वहीं दूसरी ओर सूचना के मुक्त प्रवाह ने इसके विनियमन की आवश्यकता को भी रेखांकित किया है। यह एक ऐसी सुविधा है जो व्यक्ति के जीवन के दिन-प्रतिदिन के कार्यों को सरल और दक्ष बना रही है। इसके साथ ही आर्थिक विकास और लोकतंत्र के निर्माण में इंटरनेट की हिस्सेदारी से इनकार नहीं किया जा सकता। इसके द्वारा सूचनाओं और सुविधाओं के सहज एवं द्रुतगामी प्रवाह को देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि यह आधुनिक

जीवन, स्वयं को अर्थपूर्ण बनाने का अवसर है - (February 2020)

विवेक उपाध्यायअशफाकउल्ला खां का 27 वर्षीय अल्प जीवन भी महान क्रांतिकारी तथा राष्ट्रवादी शायर की मिसाल के रूप में याद किया जाता है। एक भरे-पूरे परिवार के इस सबसे छोटे युवक को भारत कृतज्ञता से याद करता है। प्रश्न उठता है कि क्या उनके परिवार के अन्य सदस्यों या उनकी पीढ़ी के अन्य मित्रें ने अपना जीवन नहीं जिया? क्या अर्थपूर्ण जीवन जीने वाले विशिष्ट या अवतारी होते हैं? उनके अन्दर कौन-सा ऐसा गुण होता है, जो उनके जीवन को उदाहरण और प्रेरणा बना देता है? क्या केवल प्राणोत्सर्ग ही जीवन को महान बनाता है?उपनिषद् व्यक्ति को ब्रह्मांड का अंश

भारत में वंचितों के लिए सार्वभौमिक न्यूनतम आय - (January 2020)

द विवेक उपाध्याय"जब तक गरीबी, अन्याय और घोर असमानताहमारी दुनिया में मौजूद है, हममें से कोई भीआराम नहीं कर सकता।"नेल्सन मंडेला का यह कथन राज्य की लोकल्याणकारी भूमिका से जुड़ा है। तात्पर्य यह है कि राजनैतिक व्यवस्था को नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं का ध्यान रखना चाहिए। वास्तव में आधुनिक तथा लोकतांत्रिक विश्व की पहली शर्त मानव केन्द्रित होना तथा सभी नागरिकों के सम्पूर्ण विकास पर अपना ध्यान केन्द्रित करना है। इस अर्थ में राज्य का प्रमुख लक्ष्य गरीबी, अन्याय व असमानता को दूर करने का होना चाहिए। ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ अर्थात सभी नागरिकों को राज्य द्वारा एक निश्चित आय प्रदान

पर्यावरणीय चिंताओं ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दिशा बदल दी है - (January 2020)

निबंधद दुर्गेश सिंहमहात्मा गांधी ने कहा था कि फ्प्रकृति मानव की आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकती है परन्तु मानव के लालच को नहींय् आज मानव के इसी लालच के परिणामस्वरूप कई पर्यावरणीय चिंताएं उभरी है- जैसे वायु प्रदुषण, वैश्विक तापन, जलवायु परिवर्तन आदि।सामान्य अर्थों में पर्यावरण हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अंतर्गत संपादित होती है। साथ ही हम अपनी समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं।

नए दौर में सुरक्षा बलों के प्रति परिवर्तित दृष्टिकोण - (May 2019)

बालाकोट हमला एक ऐसी घटना बन चुकी है, जिसे लेकर देश का राजनीतिक वर्ग, सेना, मीडिया और नागरिक सभी एकमत थे; साथ ही इस घटना ने सेना के प्रति परिवर्तित दृष्टिकोण को भी दर्शाया है। बालाकोट हमले के अगले दिन भारतीय मीडिया एक विचित्र युद्ध उन्माद में जाती दिखी, जो भारतीय समाज में बढ़ती एक खतरनाक प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है। राजनीतिक कीचड़ उछालना और राष्ट्रवाद तथा देशभक्ति की बयानबाजी के ढोल पीटना, राजनीतिक क्षेत्र में कुछ आसान लाभ हासिल करने के लिए देश के सबसे धर्मनिरपेक्ष संस्थान का राजनीतिकरण लगता है। यह दृष्टिकोण सेना प्रमुख बिपिन रावत द्वारा भी

आधुनिक जटिल समाज न्याय के विभेदीकृत सिद्धांतों की मांग करता है - (July 2020)

विवेक उपाध्यायएक विश्वव्यापी समस्या के रूप में कोविड-19 ने कदम-कदम पर प्रशासकों की कुशलता के साथ ही विधियों तथा राजनैतिक सिद्धांतों की प्रभावशीलता का भी परीक्षण किया। इसने अलग-अलग वर्गों की अलग-अलग समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता को उजागर कर दिया। जब इसे स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखा गया तब बुजुर्गों तथा बच्चों के विशेष बचाव पर ध्यान केन्द्रित किया गया। फिर प्रवासी भारतीयों की वतन वापसी के लिए मिशन ‘वन्देभारत’ चला। एक धार्मिक समुदाय की पुरातनपंथी और प्रतिगामी रूढि़यों से संघर्ष करना पड़ा। घरेलू हिंसा की बढ़ती शिकायतों से रूबरू होना पड़ा। सबसे बड़ी समस्या के रूप में प्रवासी

सतत विकास का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के जरिये ही प्राप्त किया जा सकता है - (December 2019)

विवेक उपाध्यायदिल्ली की चमचमाती सड़कों, फ्लाइओवर, दमकते बाजार, सत्ता के तेज के बीच मास्क लगाए हुए लोगों को देखकर ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय राजधानी का वैभव, शक्ति नेतृत्व, साधन-संसाधन नागरिकों को सांस लेने के लायक हवा की आपूर्ति भी नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी पर्यावरणीय स्थिति में विकास के सभी प्रतिमानों की कलई खुल जाती है। संदेश स्पष्ट हो जाता है कि बिना स्वच्छ पर्यावरण के समस्त भौतिक प्राप्तियां निरर्थक हैं।आवश्यक नहीं है कि पर्यावरणीय संकट इस प्रकार धीरे-धीरे ही अपना असर दिखाए, यह आकस्मिक तथा अप्रत्याशित भी हो सकता है; जैसे बांग्लादेश के भोला चक्रवात ने लाखों

समाज में व्याप्त असहिष्णुता मॉब लिंचिंग का कारण है? - (September 2019)

दुर्गेश सिंह असहिष्णुता, सहिष्णुता का ठीक विपरीतार्थक शब्द है जिससे एक इन्सान या समुदाय की सहनशीलता के अभाव का बोध होता है। जब कोई व्यक्ति अपने पूर्वाग्रहों के कारण किसी अन्य विचार, सिद्धांत, भाषा, धर्म या व्यक्ति के अस्तित्व को सहर्ष स्वीकार करने को तैयार नहीं होता तो ऐसी मनोवृत्ति को ही असहिष्णुता कहा जाता है। मुख्य रूप से धर्म के क्षेत्र में तो असहिष्णुता पायी ही जाती है_ साथ ही परिवार, समाज और राजनीतिक जीवन में भी असहिष्णुता दिखाई दे जाती है। आज तेजी से हो रहे पारिवारिक विघटन के मूल में इसके सदस्यों का अपने-अपने योगदान और अधिकार के प्रति अहम

प्रौद्योगिकी ने जितने रोजगार कम किए हैं, उससे कहीं अधिक बढ़ाए हैं - (October 2019)

आर्थिक विकास, मानव पूंजी के संचय तथा आधारभूत अवसंरचनाओं की मूलभूत आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। 1930 में जॉन मेनार्ड कीन्स ने कहा था कि प्रौद्योगिकी का कुशल उपयोग मनुष्य को 100 वर्षों के भीतर आराम तथा विलासिता के युग में ले जाएगा। कीन्स का मानना था कि भविष्य में यदि मनुष्य को संतुष्ट रहना है तो सभी को कुछ काम करना होगा और दिन के तीन घंटे पर्याप्त होंगे। वर्तमान में दुनिया इस तरह की वास्तविकता से बहुत दूर है। औद्योगिक फर्म, उत्पादन के लिए नई प्रौद्योगिकी अपनाते हैं, जिससे बाजार का विस्तार होता है और रोजगार के नए

जागरूक मतदाताः लोकतन्त्र का मजबूत स्तंभ - (October 2019)

भारतीय संविधान के अनुसार, लोकतंत्र की मूल अवधारणा चुनाव प्रक्रिया में नागरिकों की प्रत्यक्ष भागीदारी है। लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के सदस्यों का चयन, निर्धारित समय पर चुनाव द्वारा होता है और इस प्रकार लोकतंत्र में नागरिकों की अप्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित होती है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने कई फैसलों में कहा है कि लोकतंत्र भारतीय संविधान की आधारभूत विशेषता है। मतदान, लोकतंत्र की बुनियादी प्रक्रिया है जो लोगों को अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने का अधिकार देता है। हालांकि, सफल लोकतंत्र से जुड़े कई मुद्दे हैं जैसे क्या भारतीय मतदाताओं को सरकार के दिन-प्रतिदिन के कामकाज की जानकारी है?

ग्रामीण रूपान्तरण की चुनौतियाँ व अवसर - (October 2019)

भारत में ग्रामीण विकास की प्रक्रिया के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को शामिल करने की वजह से यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। भारत की कुल जनसंख्या का 72.2 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र में निवास करता है जिसके रूपान्तरण के लिए ग्रामीण जीवन के लगभग सभी पहलुओं जैसे कृषि, बुनियादी ढांचा, संचार, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा रोजगार के क्षेत्र में व्यापक सुधार की आवश्यकता है। हालांकि, पिछले पांच दशकों में ग्रामीण विकास की कई गतिविधियों और कार्यक्रम के शुरू करने से ग्रामीण क्षेत्र की स्थिति में परिवर्तन देखा गया है। हालांकि ग्रामीण विकास कार्यक्रम के अंतर्गत वंचित वर्ग के लोगों

अक्षय ऊर्जा, भविष्य की आवश्यकता है - (October 2019)

आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक बुनियादी आवश्यकता है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र जैसे कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्य एवं घरेलू उत्पादन क्षेत्र को ऊर्जा की आवश्यकता होती है। विश्व भर में विद्युत ऊर्जा के लिए वर्षों से पारंपरिक जीवाश्म ईंधन वाले विद्युत संयंत्र का उपयोग किया जाता है लेकिन अब धीरे-धीरे नवीनीकरण या अक्षय ऊर्जा इसका स्थान ले रही है। नवीकरणीय ऊर्जा का लाभ लेने के लिए, ऊर्जा उत्पादन करने वाले निकाय को पावरग्रिड तंत्र में सुधार करने और नयी ऊर्जा नीति बनाने की आवश्यकता है। अक्षय ऊर्जा का सृजन प्राकृतिक संसाधनों जैसे सूर्य के प्रकाश, पवन, पानी, अपशिष्ट

वैश्विक शरणार्थी संकटः समस्या एवं समाधान - (October 2019)

डॉ. अरविंद कुमार गुप्ता"बहुत मजबूर होकर लोग निकलते हैं अपने घर से,खुशी से कौन अपने मुल्क से बाहर रहा है।" उपरोक्त पंक्तियां शरणार्थियों के संबंध में इस रूप में बिल्कुल सटीक बैठती हैं कि कोई भी व्यक्ति अपने मूल स्थान को छोड़कर नई जगह पर अपनी स्वेच्छा से नहीं जाना चाहता, बल्कि परिस्थितियां उसे इसके लिये विवश करती हैं। वर्तमान का शरणार्थी संकट जो शायद द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे विकराल संकट है, के कारण आज लगभग 7 करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापितों अथवा शरणार्थियों का जीवन जीने को विवश हैं। संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी सम्मेलन जिसका आयोजन

बच्चों के प्रति बढ़ती हिंसाः समाज की गिरती नैतिकता का प्रतिबिंब - (August 2019)

अंकित सिंह"बचाव एवं सुरक्षा स्वतः ही संभव नहीं है, यह सामूहिक सर्वसम्मति और सार्वजनिक निवेश का परिणाम है। हमें अपने बच्चों को, जो कि समाज के सबसे कोमल और कमजोर नागरिक हैं, एक यातना और भय से मुक्त जीवन देना होगा!”-नेल्सन मंडेला उपरोक्त कथन के माध्यम से नेल्सन मंडेला ने व्यक्ति और समाज के मस्तिष्क में स्थित उन तन्तुओं को छुआ है जो उन मासूम जिंदगियों के प्रति संवेदन शून्य होते जा रहे है, जिसके कन्धों पर भविष्य की मानव सभ्यता को ऊंचाई पर ले जाने का दायित्व है। माना जाता है कि एक सुरक्षित, अलमस्त, बदमाशियों से भरा, हंसता

नारी-शक्ति को कैसे बल दें? - (November 2019)

भारतीय संविधान में सभी नागरिकों और समुदायों के सशक्तिकरण हेतु राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्वतंत्रता, समानता और न्याय प्रदान करने की व्यवस्था की गयी है।भारतीय संविधान की इस व्यवस्था के अंतर्गत महिलाओं को भी शामिल किया गया है।परंतु भारतीय समाज की अपनी पितृसत्तात्मक रूढि़वादिता और जटिलताओं के कारण सृष्टि निर्माता की अद्वितीय कृति महिलाओं को विकास के समुचित अवसर अभी तक प्राप्त नहीं हो पाएँ हैं।यद्यपि ऐसा नहीं है कि उनकी उन्नति के लिए प्रयास नहीं किए गए हैं, किन्तु अभी तक किए गए प्रयासों और वर्तमान समस्याओं के संदर्भाधीन नारी-शक्ति को बल प्रदान किया जा सकता है।महिला सशक्तिकरण