चीन का आर्कटिक विस्तार

चीन ने अपनी आर्कटिक नीति को लेकर आधिकारिक तौर पर पहला श्वेत पत्र जारी किया। चीनी राज्य परिषद के सूचना कार्यालय द्वारा जारी इस श्वेत पत्र में चार मुख्य बिन्दुओं का उल्लेख है-

  • आर्कटिक की परिस्थिति और परिवर्तन,
  • चीन और आर्कटिक के संबंध,
  • चीन की आर्कटिक नीति और मूल सिद्धांत,
  • आर्कटिक मामले में चीन की हिस्सेदारी।

आर्थिक भूमंडलीकरण और क्षेत्रीय एकीकरण के विकास के साथ रणनीति, अर्थव्यवस्था, विज्ञान व तकनीक, पर्यावरण, जहाजरानी और संसाधन में आर्कटिक का मूल्य निरंतर बढ़ रहा है। आर्कटिक मामले न केवल आर्कटिक क्षेत्र के बल्कि बाहर के देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समग्र हितों से जुड़े हैं, जिसका विश्वव्यापी महत्व और प्रभाव है। चीन आर्कटिक मामले में सकारात्मक हिस्सेदार, निर्माणकर्ता और योगदानकर्ता है। चीन आर्कटिक विकास के लिए चीनी बुद्धि और शक्ति प्रदान करेगा।

चीन की भौगोलिक स्थिति

चीन भौगोलिक दृष्टि से आर्कटिक से करीब देश है। आर्कटिक की प्राकृतिक स्थिति और बदलाव से चीन के जलवायु और पर्यावरण पर प्रत्यक्ष असर पड़ता है और चीन के कृषि, वन, मत्सय उद्योग और सागर क्षेत्र के आर्थिक लाभ से संबंधित है।

आर्कटिक नीति

आर्कटिक नीति में कहा गया है कि उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र या आर्कटिक क्षेत्र में घटती हुई बर्फ कई चीजों पर प्रभाव डालती है, जैसे स्थानीय मौसम,पर्यावरण, स्थानीय खेती। समुद्री उद्योग, जलमार्ग का विकास ये सारे मुद्दे मानवता से जुड़े हैं। इसका सीधा असर उन देशों पर भी पड़ता है जो आर्कटिक क्षेत्र में नहीं हैं, जैसे की चीन।

चीन सभी पक्षों का आदर, सहयोग, साझी जीत और निरंतर विकास के बुनियादी सिद्धांतों पर कायम रहकर विभिन्न पक्षों के साथ आर्कटिक की पहचान, सुरक्षा, इस्तेमाल और प्रशासन में भाग लेगा और पोलर सिल्क रोड के माध्यम से आर्कटिक से जुडे क्षेत्रें से सहयोग बढ़ाएगा ताकि आर्कटिक के शांतिपूर्ण, स्थिर और निरंतर विकास के लिए योगदान दिया जाए। इसमें ओबोर को आर्कटिक तक ले जाने की योजना बनाई गई है। इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग के कारण खुले नए रास्तों का जहाजों की आवाजाही के लिए विकास किया जाएगा। चीन ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट एंड वन रोड (ओबोर) के विस्तार का खाका पेश किया है।

चीन की रणनीति

चीन विभिन्न उद्यमों को बुनियादी ढांचों के निर्माण और प्रायोगिक व्यावसायिक यात्रओं के लिए प्रोत्साहित करेगा। इससे ‘पोलर सिल्क रोड’ अपनी आकृति लेगा। चीन आशा करता है कि सभी पक्ष आर्कटिक शिपिंग मार्गों के विकास के माध्यम से ‘पोलर सिल्क रोड’ का निर्माण करेंगे। चीन की क्षेत्र में तेल, गैस, खनिज संसाधनों, गैर जीवाश्म ऊर्जा और पर्यटन के विकास पर भी नजर है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के स्थाई सदस्य के तौर पर चीन इस क्षेत्र में शांति और स्थायित्व बनाये रखने की जिम्मेदारी उठाना चाहता है।

आर्कटिक परिषद

  • स्थापनाः 1996 में ओटावा (कनाडा) में
  • उद्देश्यः आर्कटिक प्रदेश के लोगों का कल्याण सुनिश्चित करने के लिये आर्कटिक विषयों पर नियमित अंतर-सरकारी परामर्श की व्यवस्था करना; स्थायी विकास सुनिश्चित करना, और; पर्यावरण की रक्षा करना।
  • प्रकारः उच्च स्तरीय अंतरसरकारी संगठन।
  • सदस्य देश (8): कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • पर्यवेक्षक सदस्य (12): जर्मनी, अंतर्राष्ट्रीय आर्कटिक विज्ञान समिति, नीदरलैंड, पोलैंड, उत्तरी मंच, यूनाइटेड किंगडम, भारत, चीन, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर।

दरअसल, इस क्षेत्र में चीन अपने हितों का विस्तार कर रहा है। आर्कटिक में रूस की यमाल तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) परियोजना में चीन की बड़ी हिस्सेदारी भी है। इससे चीन को हर साल 40 लाख टन एलएनजी मिलने की उम्मीद है। उत्तरी समुद्र मार्ग से जहाजों की आवाजाही होने से पारंपरिक स्वेज नहर मार्ग की अपेक्षा करीब 20 दिनों की बचत होगी।

उल्लेखनीय है कि चीन एक गैर आर्कटिक देश है। इसके बावजूद वह उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में अपनी सक्रियता तेजी से बढ़ा रहा है। चीन 2013 में आर्कटिक काउंसिल का पर्यवेक्षक सदस्य बना था। इस क्षेत्र में चीन की सक्रियता पर कई आर्कटिक देश चिंता जाहिर करचुके हैं। उन्हें आशंका है कि चीन इसकी आड़ में सेना की तैनाती कर सकता है।

अंतराष्टीय कानून, UNCLOS जैसी संधि इस क्षेत्र में संसाधनों की खोज और अनुसन्धान की इजाजत देता है। नए समुद्री रास्तों की तलाश, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से इस क्षेत्र का व्यापक महत्त्व उजागर हुआ है।

आर्कटिक क्षेत्र के कई इलाकों में विवाद है जैसे की उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में आर्कटिक राज्यों में विवाद है, कनाडा इसे अपना घरेलु जलमार्ग मानता है जबकि अमेरिका इसे अंतर्राष्ट्रीय जलमार्ग मानता है। फिनलैंड और नॉर्वे इस पर अनुसंधान कर रहे हैं की क्या आर्कटिक में रेलवे प्रोजेक्ट मुमकिन है और अगर हां तो ये कितना मुनाफे का होगा। ये नार्डिक इलाकों को आर्कटिक तट से जोड़ने का काम करेगा, जिससे एशिया के बाजार यूरोप के भूमध्यसागर से लेकर रूस के उत्तर दक्षिण रूट तक आसानी से पहुँच सकते हैं।

चीन की आर्कटिक नीति, उसके महत्वाकांक्षा और लक्ष्य को बढ़ावा देती है। 2014 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन को उत्तर ध्रुवीय छेत्र की उभरती हुई शक्ति बताया है।

हालाँकि चीन ने कहा है कि आर्कटिक पॉलिसी के तहत चीन सभी अंतर्राष्ट्रीय सन्धि और कानून के मुताबिक काम करेगा लेकिन चीन के दक्षिण चीन सागर और ओबोर परियोजना में अपनाये गये आचरण को देखकर इस वादे में सच्चाई प्रतीत नहीं होती है।

ओबोर या बेल्ट रोड इनिशिएटिव क्या है?

2049 में चीनी गणराज्य की 100वीं वर्षगाँठ है। इस उपलक्ष्य में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में 2049 तक चीन की, एशिया, यूरोप और अफ्रीका में व्यापक पहुंच बनाने के लिए OBOR परियोजना प्रस्तावित की थी। जिसे 2049 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। इस परियोजना को आधुनिक इतिहास की सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी पहल के रूप में देखा जा रहा है।

  • इस परियोजना में चीन को एशिया, यूरोप और अफ्रीका के बाजारों से जोड़ने के लिये सड़क, रेल और बंदरगाह परियोजनाओं का निर्माण करने की योजना है।
  • इसमें दो मार्ग प्रस्तावित किये गए हैं।
  • एक, स्थल मार्ग जिसे वन बेल्ट या रेशम मार्ग आर्थिक पट्टी भी कहा जा रहा है। यहाँ बेल्ट से तात्पर्य सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट से है जो तीन स्थल मार्गों से मिलकर बनी है।
    • चीन, मध्य एशिया और यूरोप को जोड़ने वाला मार्ग।
    • चीन को मध्य व पश्चिम एशिया के माध्यम से फारस की खाड़ी और भूमध्यसागर से जोड़ने वाला मार्ग।
    • चीन को दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया और हिन्द महासागर से जोड़ने वाला मार्ग।
  • दूसरा, सामुद्रिक मार्ग जिसे वन रोड या सामुद्रिक रेशम मार्ग भी कहा जा रहा है।
  • यहाँ रोड से तात्पर्य 21वीं सदी की समुद्री सिल्क रोड से है, जिसमें दक्षिण चीन सागर को हिन्द महासागर व भूमध्य सागर होते हुए चीन से यूरोप को जोड़ने तथा दक्षिण चीन सागर के माध्यम से ही चीन से दक्षिण प्रशांत तक व्यापार करने की योजना है।