भारत की मध्य एशियाई रणनीति एवं एससीओ

भारत शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation) के 17वें शिखर सम्मलेन के दौरान इस संगठन का पूर्णकालिक सदस्य बन गया। भारत की पूर्ण सदस्यता के बाद रूस और चीन की अगुवाई वाला एससीओ विश्व मंच पर एक शक्तिशाली रक्षा और राजनीतिक मंच के रूप में उभरा है। रूस एवं चीन के प्रभुत्व वाले इस सुरक्षा समूह का यह पहला विस्तार है। इस संगठन को नाटो को संतुलित करने वाले संगठन के तौर पर देखा जा रहा है। गौरतलब है कि रूस ने इस संगठन में भारत की सदस्यता का पुरजोर समर्थन किया था।

भारत की सदस्यता का मार्गः सोवियत संघ के विघटन तथा शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात विश्व में एकध्रुवीय व्यवस्था स्थापित हुई तथा अमेरिका एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा। यह स्थिति रूस के अस्तित्व के लिए संकट पैदा कर रही थी। दूसरी ओर, चीन की शक्ति भी बढ़ रही थी। इन दोनों देशों की चिंता इस बात को लेकर थी कि नये शक्ति समीकरण का मुकाबला कैसे किया जाए तथा अपने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय हितों की रक्षा कैसे की जाए? इन दोनों देशों की मिली-जुली चिंताओं से शंघाई सहयोग संगठन का अस्तित्व सामने आया।

2001 में रूस और चीन की मिली-जुली चिंताओं से यह संगठन अस्तित्व में आया जब रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाखस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने शंघाई में एक शिखर-सम्मेलन में एससीओ की नींव रखी। हालांकि भारत, ईरान और पाकिस्तान को 2005 में अस्ताना में संपन्न सम्मेलन में पर्यवेक्षकों के रूप में जरूर शामिल किया गया था। जून, 2010 में ताशकंद में संपन्न एससीओ के सम्मेलन में नई सदस्यता पर लगी रोक हटाई गई थी, और इस प्रकार संगठन के विस्तार का रास्ता साफ हो गया। जुलाई, 2015 में रूस के उफा में हुए एससीओ के सम्मेलन में भारत को सदस्य बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई।

भारत के लिए शंघाई सहयोग संगठन के निहितार्थः संगठन का पूर्णकालिक सदस्य बनने के बाद भारत को उसे आतंकवाद से निपटने के लिए समन्वित कार्रवाई पर जोर देने, क्षेत्र में सुरक्षा तथा रक्षा से जुड़े विषयों पर व्यापक रूप से अपनी बात रखने में आसानी होगी। भारत एससीओ के सदस्य के रूप में इस क्षेत्र में आतंकवाद के खतरे से निपटने में बड़ी भूमिका निभा सकेगा तथा संगठन के सदस्य देशों के आपसी सहयोग से आतंकवाद के िखलाफ संघर्ष को नई गति मिलेगी।

एससीओ के अधिकांश सदस्य देशों में तेल और प्राकृतिक गैस के प्रचुर भंडार हैं अतः मध्य एशिया में प्रमुख गैस एवं तेल अन्वेषण परियोजनाओं तक भारत की पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी। इस संगठन का सदस्य बनने के उपरांत भारत की प्राथमिकता सदस्य देशों के साथ ज्यादा से ज्यादा संपर्क बढ़ाने की होगी। भारत ने स्पष्ट किया है कि वह संपर्क बढ़ाने के पक्ष में हैं, लेकिन सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीयता का सम्मान होना चाहिए। उल्लेखनीय है कि चीन की ‘‘वन बेल्ट, वन रोड' (OBOR) परियोजना को लेकर भारत का विरोध है क्योंकि इस परियोजना से भारत की संप्रभुता और अखंडता को धक्का लगता है।

भारत और पाकिस्तान, के इस संगठन का सदस्य बनने से मध्य एशिया में व्यापार और निवेश की संभावनाएं बढ़ गई हैं।यह संगठन इस पूरे क्षेत्र की समृद्धि के लिए जलवायु परिवर्तन, शिक्षा, कृषि, ऊर्जा और विकास की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। क्षेत्रीय परिप्रेक्ष में देखा जाये तो एससीओ अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के मद्देनजर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।