भारत में उग्रवाद के विभिन्न रूप

भारत में उग्रवाद मात्र वामपंथी उग्रवाद के रूप में ही विद्यमान नहीं रहा है बल्कि यह पंजाब, पूर्वोत्तर भारत में अलगाववाद, पृथकतावाद के रूप में, जम्मू एवं कश्मीर में आतंकवाद के रूप में दिखाई पड़ा है। पंजाब में 1970 से 1990 के दशकों में पृथक देश की मांग होने लगी, जिसका मुख्य कारण विकास से उत्पन्न कमियों को नहीं माना जा सकता। यहां पाकिस्तान का प्रभाव ज्यादा देखा जा सकता था। इस काल में पंजाब में खालिस्तान बनाने की मांग के समर्थन में सशस्त्र विद्रोह की भूमि तैयार हो गई थी किन्तु इसे 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार से काबू कर लिया गया।

रोशनी परियोजना

नक्सली हिंसा से ग्रसित जिलों में युवाओं के लिए रोजगारोन्मुखी कौशल विकास हेतु प्रारंभ। ग्रामीण विकास मंत्रलय द्वारा (जून 2003 में) नक्सल प्रभावित 24 जिलों में 3 वर्ष के लिए लागू। 50000 युवाओं को कौशल दक्षता प्रदान कर रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य है (18-35 वर्ष आयुवर्ग)।

24 जिलों में प्रायोगिक तौर पर लागू होगा।

6 - झारखंड 6 - उड़ीसा

5 - छत्तीसगढ़ 2 - बिहार

1 - आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश,

महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश

  • कुल व्यय का वहन अनुपात, केंद्र: राज्य -75: 25
  • लाभान्वितों में कम से कम 50% महिलाएं होंगी।
  • जनजातीय जनसंख्या को प्राथमिकता दी जाएगी।

पूर्वोत्तर भारत में स्वायत्ता एवं पृथक राष्ट्र के मुद्दे को लेकर आंतरिक विद्रोह कीशृंखला विद्यमान रही है। यहां के विद्रोहों को भारत की असमानता रूपी विकास की प्रक्रिया के विरुद्ध देखा जा सकता था। इस अलगाववादी आंदोलन को वा“य एवं आंतरिक आतंकवादी संगठनों द्वारा समर्थन प्रदान किया जाता रहा है।

उल्फा, नागा विद्रोही गुट (खापलांग) आदि इस क्षेत्र में विद्रोही गतिविधियों को संचालित करते रहते हैं। वहीं पूर्वी भारत यथा-पं- बंगाल, उड़ीसा, बिहार, मध्य-भारत उत्तर प्रदेश का दक्षिणी भाग, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा द- भारत- महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों में वामपंथी उग्रवाद देखा गया है। जिसे नक्सलवाद/माओवाद से भी जोड़ा जाता है।