नक्सलवाद

नक्सलवाद, कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के उस आंदोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ। नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से हुई है जहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 में सत्ता के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की।

वामपंथी उग्रवाद

  • सामान्य शब्दों में वामपंथ एक विचारधारा है, जिसमें विचारक का मूल बल आर्थिक संबंधों एवं सामाजिक वर्चस्व की वजह से हो रहे शोषण, असमानता आदि पर होता है।
  • वामपंथ की विचारधारा सत्ता/राज्य का अस्वीकार कर चरमपंथी विकल्प या मार्ग को अपनाने की बात करती है। हालांकि कुछ वामपंथी विचारधारा के लोग राज्य के अंतर्गत ही संसदीय विकल्पों को अपनाते हैं।
  • ‘वामपंथी उग्रवाद’ शब्द का प्रचलन भारत में प्रायः नक्सलवाद/माओवाद के संदर्भ में किया जाता है। इसके तहत लोग भारतीय राज्य को एक शोषक के रूप में मानते हैं तथा संबंधित क्षेत्र के लोगों, आदिवासियों को वहां की भूमि पर अधिकार दिलाने एवं भारतीय राज्य से उनको मुक्त कराने हेतु सशस्त्र विद्रोह का सहारा लेते हैं।
  • यह आरंभ में कई प्रदेशों में छोटे-छोटे आंदोलन, जो आगे सशस्त्र विद्रोह में परिवर्तित हो गए, के रूप में शुरू हुआ था और पिछले 2 दशक से इन विद्राहों के समुच्चय को वामपंथी उग्रवाद के रूप में जाना जाता है।
  • वामपंथी उग्रवाद का सबसे मुख्य विद्रोह नक्सलवाद के नाम से जाना जाता है। इसके लिए हमें नक्सलवाद को विस्तार से समझने की आवश्यकता होगी।

मजूमदार चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसकों में से एक थे और उनका मानना था कि भारतीय मजदूरों और किसानों की दुर्दशा के लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार हैं, जिसकी वहज से उच्च वर्गों का शासन तंत्र और फलस्वरूप कृषितंत्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया है।

1967 में ‘‘नक्सलवादियों’’ ने कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों की एक अखिल भारतीय समन्वय समिति बनाई। इन विद्रोहियों ने औपचारिक तौर पर स्वयं को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से अलग कर लिया और सरकार के खिलाफ भूमिगत होकर सशस्त्र लड़ाई छेड़ दी। 1971 के आंतरिक विद्रोह (जिसके अगुआ सत्यनारायण सिंह थे) और मजूमदार की मृत्यु के बाद यह आंदोलन एकाधिक शाखाओं में विभक्त होकर कदाचित अपने लक्ष्य और विचारधारा से विचलित हो गया।

आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनीतिक पार्टी बन गये हैं और संसदीय चुनावों में भाग भी लेते हैं। लेकिन बहुत से संगठन अब भी छद्म लड़ाई में लगे हुए हैं। नक्सलवाद के विचारधारात्मक विचलन की सबसे बड़ी मार आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और बिहार को झेलनी पड़ रही है।