पहली बार मानव शरीर में डीएनए एडिटिंग

वैज्ञानिक समुदाय पहली बार एक आनुवंशिक उत्परिवर्तन (Genetic mutation) की मरम्मत के लिए मानव भ्रूण में जीन को संपादित करने में कामयाब रहे हैं, इससे उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इस तरह की प्रक्रिया प्रयोगशाला स्थितियों के बाहर उपलब्ध हो सकती है। अगस्त 2017 में पहली बार अमेरिका में जीन संवर्द्धित इंसानी भ्रूण विकसित किया गया है। भ्रूण को एडिटिंग करने वाली इस तकनीक में कई प्रकार के कैंसर सहित कई लाइलाज रोगों को रोकने की क्षमता है लेकिन सुरक्षा चिंताओं और नैतिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए विश्व समुदाय इसे अपनाने में अभी हिचकिचा रहा है। इस आलेख में डीएनए तकनीक, इससे संबंधित सुरक्षा चिंताओं और नैतिक मुद्दों का विश्लेषण किया गया है।

इस प्रयोग में अमेरिका में वैज्ञानिकों ने एक स्वस्थ महिला के अंडाणु और उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) वाले पुरूष का स्पर्म लिया और इन दोनों के मिलन से विकसित हुए भ्रूण में वैज्ञानिकों ने म्यूटेशन को खोज निकाला और उसे काटकर बाहर कर दिया और उसकी जगह स्वस्थ डीएनए कड़ी लगायी गयी परन्तु लैब में विकसित किये जाने वाले ऐसे भ्रूणों को गर्भ में प्रतिस्थापित करने की जगह कुछ दिन बाद खत्म कर दिया गया।

डीएनए एडिटिंग तकनीक कैसे काम करती है?

डीएनए एडिटिंग तकनीक (CRISPR/Cas9) ठीक वर्ड प्रोसेसिंग प्रोग्राम के ढूंढें और प्रतिस्थापित फंक्शन (Find and Replace function) की तरह काम करती है इसमें सिंथेटिक गाइड अणु, स्वस्थ डीएनए कॉपी, डीएनए कटिंग एंजाइम युक्त एक कोशिका को मानव कोशिका में प्रवेश कराया गया था जहां पर विशेषरूप से निर्मित सिंथेटिक गाइड अणु लक्षित डीएनए के दोषपूर्ण भाग की खोज करता है उसके बाद डीएनए कटिंग एंजाइम डीएनए के उस दोषपूर्ण भाग को काट देता है जिसे बाद में स्वस्थ डीएनए कॉपी से बदल दिया जाता है।

क्रिस्पर/कैस-9 (CRISPR /Cas-9) क्या है?

क्रिस्पर/कैस-9 (CRISPR/Cas-9), (Clustered regularly interspaced short palindromic repeats) का संक्षिप्त रूप है। यह एक तरह की आणविक कैंची है, जिसका इस्तेमाल वैज्ञानिक विसंगति वाले जीन हटाने में करते हैं।

दरअसल इस तकनीक में Cas-9 नामक एक विशेष एंजाइम का प्रयोग किया जाता है जिससे किसी विसंगति वाले जीन को निशाना बनाना संभव है। CRISPR/Cas 9 तकनीक असल में कैंचियों के जोड़े की तरह काम करती है। यह बीमारी के लिए जिम्मेदार जीनोम के खास हिस्से को काट देती है। कटिंग से खाली हुई जगह को नए डीएनए से भर दिया जाता है। चित्र में इसे विस्तार से समझाया गया है।

जीन एडिटिंग व सुरक्षा सम्बन्धी मुद्दे

इस तकनीक से सम्बंधित दूसरी प्रमुख चिंता मानव प्रजाति की सुरक्षा से सम्बंधित है। अगर अतीत की बात करें तो अक्सर ऐसा हुआ है कि किसी दवा के शुरूआती चरण में उसे मनुष्य के लिए वरदान माना गया परन्तु 40-50 साल बाद उस दवा के भयंकर दुष्प्रभाव सामने आए, कई बार इस प्रकार के प्रभाव अनुत्क्रमणीय भी देखे गये, ऐसे में बिना पूर्व अनुसंधान किए इस तकनीक को अपनाने से इस बात की संभावना रहेगी की डीएनए में किये जा रहे यह बदलाव मनुष्य प्रजाति के लिए घातक साबित हो सकते हैं।

पूर्व अनुसंधान करने के बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती कि इस प्रकार के कोई दुष्प्रभाव सामने नहीं आयेंगे क्योंकि मनुष्य अपने ज्ञान के स्तर को दिन प्रतिदिन विकसित कर रहा है जो यह भी दर्शाता है कि अभी मनुष्य ज्ञान के सर्वाेच्च स्तर पर नहीं है, वो केवल अपने वर्तमान स्तर के आधार पर अनुसंधान कर रहा है। पूर्व अनुसंधान के बाद भी नगण्य ही सही लेकिन इस तकनीक के दुष्प्रभाव की संभावना तो रहेगी ही, अतः इस संबंध में गंभीरता से विचार किया जाना ही चाहिये।