यमुना लिंक नहर विवाद

सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर से जल बंटवारे के विवाद पर 2004 में राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय से मांगी गई सलाह पर शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए-आर- दवे की अध्यक्षता वाली न्यायाधीशों की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ नेअपने निर्णय में कहा कि पंजाब सरकार का ‘पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004’ असंवैधानिक है। मतलब यह कि इस निर्णय के पश्चात सतलुज यमुना लिंक नहर बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह राय राष्ट्रपति की सिफारिश पर दी है। अब सुप्रीम कोर्ट का 2002 और 2004 का फैसला प्रभावी हो गया, जिसमें केंद्र सरकार को नहर का कब्जा लेकर लिंक निर्माण पूरा करना है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से चार सवालों के जवाब मांगे थे, जोकि इस प्रकार के थे;

  1. क्या पंजाब का पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 संवैधानिक है?
  2. क्या ये एक्ट इंटरस्टेट वाटर डिस्प्यूट एक्ट 1956 और पंजाब रिओर्गनाइजेशन एक्ट 1966 के तहत सही है?
  3. क्या पंजाब ने रावी-व्यास बेसिन को लेकर 1981 के एग्रीमेंट को सही नियमों के तहत रद्द किया है?
  4. क्या पंजाब इस एक्ट के तहत 2002 और 2004 में सुप्रीम कोर्ट की डिक्री को मानने से मुक्त हो गया है?

क्या है पूरा मामला?

  • 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के साथ विवाद शुरू,
  • 24 मार्च, 1976: केंद्र सरकार का पानी बंटवारे का नोटिफिकेशन, सतलुज, रावी और ब्यास नदी के पानी का बंटवारा होना था। हरियाणा राज्य बनने के बाद केंद्र ने 1976 में पंजाब को 3.5 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी हरियाणा को देने का आदेश दिया। इस अतिरिक्त पानी को भेजने के लिए सतलुज यमुना लिंक नहर पर 1980 में काम शुरू हुआ लेकिन पंजाब ने 95 फीसदी काम पूरा होने के बाद काम रोक दिया था। पंजाब ने केंद्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी,
  • 31 दिसंबर, 1981: पंजाब ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ली, मुद्दा राजनीतिक हुआ, अकाली दल ने फैसले के खिलाफ मोर्चा खोला,
  • 8 अप्रैल, 1982: इंदिरा गांधी ने नहर की नींव रख दी। पंजाब में आतंकवादियों ने भी इसे मुद्दा बनाया
  • 1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौता,
  • 1990 तक 750 करोड़ रुपये की लागत से नहर का एक बड़ा हिस्सा तैयार,
  • 15 जनवरी, 2002: पंजाब को नहर का बाकी हिस्सा बनाने का निर्देश,
  • 2004 में पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट 2004 पास, पंजाब सरकार के फैसले को यूपीए सरकार ने राष्ट्रपति की राय के लिए भेजा।
  • पंजाब कैबिनेट ने नहर पर खर्च हरियाणा का पैसा लौटाने का फैसला किया,
  • जिन लोगों से जमीन ली गई उन्हें जमीन लौटाने का फैसला।

केंद्र का रूखः दरअसल, केंद्र ने 2004 के अपने रुख को कायम रखा था जिसके तहत संबद्ध राज्यों को खुद से इस विषय पर अपने विवादों को सुलझाना चाहिए। केंद्र ने इस मामले में किसी का पक्ष नहीं लिया और इस विषय में एक तटस्थ रूख रखे हुए था जिसमें न्यायालय ने अन्य राज्यों राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर का रुख दर्ज किया है।

पंजाब का पक्षः एसवाईएल यानी सतलुज यमुना लिंक नहर के मामले में पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दािखल किया था। पंजाब सरकार ने कहा था कि जब समझौता हुआ था तब के हालात और अब के हालात में बहुत फर्क आ गया है। पंजाब में जो पानी है वह उसके लिए ही पूरा नहीं पड़ रहा है ऐसे में हरियाणा को पानी कैसे दे सकते हैं। पंजाब में पहले ही पानी में 16 फीसदी की कमी आ गई है।

हरियाणा का पक्षः हरियाणा सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया था कि पंजाब सरकार द्वारा उठाया जा रहा यह कदम 2004 प्रेजीडेंशियल रेफरेंस के तहत बनाए गए पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्घ्ट 2004 को बेकार कर देगा जिसके तहत यह तय किया गया था कि पंजाब सरकार हरियाणा से रावी, ब्यास और सतलुज नदी का पानी साझा करेगी। इसके लिए सतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजना का खाका तैयार किया गया था जिससे कि पंजाब द्वारा हरियाणा को पानी की जलापूर्ति की जा सके। ऐसे में पंजाब सरकार इस परियोजना से पीछे हटकर अगर किसानों को अधिग्रहित जमीन लौटा देती है तो उनकी यह कार्रवाई संघीय प्रणाली पर प्रहार है और इससे अव्यवस्था कायम हो जाएगी।