भारतीय संविधान की विशेषताएं

भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  1. मूलतः लिखित एवं निर्मित संविधान;
  2. संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, लोकतंत्रत्मक, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य;
  3. विश्व का सबसे विशाल संविधान;
  4. संसदीय शासन पद्धति;
  5. अनम्यता एवं नम्यता का सम्मिश्रण;
  6. एकल नागरिकता;
  7. न्यायपालिका की सर्वोच्चता एवं संसदीय सर्वोच्चता का सम्मिश्रण;
  8. मौलिक अधिकारों की व्यापकता;
  9. राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की विवेचना;
  10. वयस्क मताधिकार;
  11. लोक कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना;
  12. विश्व शांति एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा का पक्षधर आदि।

स्वतंत्र भारत का प्रथम मंत्रिमंडल (1947)

  • जवाहरलाल नेहरूः प्रधानमंत्री, वैदेशिक मामले, वैज्ञानिक अनुसंधान
  • सरदार वल्लभ भाई पटेलः गृह, सूचना एवं प्रसारण, राज्य
  • डॉ. राजेंद्र प्रसादः खाद्य एवं कृषि
  • मौलाना अबुल कलाम आजादः शिक्षा
  • जॉन मथाईः रेलवे एवं परिवहन
  • आर.के.शणमुगम शेट्टीः वित्त
  • डॉ. बी.आर.अंबेडकरः विधि
  • जगजीवन रामः श्रम
  • सरदार बलदेव सिंहः रक्षा
  • राजकुमारी अमृत कौरः स्वास्थ्य
  • सी.एच.भावाः वाणिज्य
  • रफी अहमद किदवईः संचार
  • श्यामा प्रसाद मुखर्जीः उद्योग एवं आपूर्ति
  • वी.एन.गाडगिलः कार्य, खनन एवं विद्युत

भारतीय संविधान की संघात्मक बनाम एकात्मक विशिष्टताः

भारतीय संविधान में संघात्मक व्यवस्था के निम्नलिखित लक्षण हैं;

  1. संविधान की सर्वोच्चताः भारतीय संविधान इस देश का सर्वोच्च कानून है। इस संविधान की व्यवस्थाएं केन्द्रीय सरकार और सभी राज्य सरकारों पर बन्धनकारी है और किसी भी सरकार द्वारा इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। वस्तुतः इस देश में कोई भी शक्ति संविधान के ऊपर नहीं है।
  2. केन्द्र तथा राज्यों में पृथक्-पृथक् सरकारें:भारत में वर्तमान में 29 राज्य और 7 केन्द्र शासित प्रदेश हैं। सभी राज्यों में अपनी-अपनी सरकारे हैं तथा केन्द्र में पृथक् केन्द्रीय सरकार है।
  3. शक्तियों का विभाजनः भारत के केन्द्र तथा राज्य के मध्य शक्तियों का विभाजन किया गया है इसके अंतर्गत तीन सूचियां बनाई गई हैं; संघीय सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची। कनाडा की भांति अवशिष्ट विषय केन्द्र के पास सुरक्षित रखे गए हैं।
  4. स्वतन्त्र सर्वोच्च न्यायालयः भारतीय संविधान के द्वारा संरक्षक के रूप में कार्य करने के लिए सोपानगत स्वतन्त्र न्यायालयों की स्थापना की गई है जिसके शीर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय है।
  5. राज्यों का सदनःराज्य सभा जो कि भारत का उच्च सदन है, को राज्यों का सदन बनाया गया है, किन्तु इसमें राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है।
  6. संविधान संशोधन की प्रणालीःसंविधान के संशोधन के लिए पूर्णतः संघीय प्रणाली अपनायी गई है। विशेष महत्व के संविधान संशोधनों में राज्यों की सहमति लेना आवश्यक होता है।

भारतीय संविधान में एकात्मक लक्षण निम्नलिखित हैं;

  1. केंद्र के पक्ष में शक्ति-वितरणः शक्ति वितरण के द्वारा केन्द्र को अधिक प्रबल बनाया गया है। समवर्ती सूची के विषयों पर केन्द्र और राज्य दोनों को अधिकार दिया गया लेकिन पारस्परिक विरोध की स्थिति में केन्द्रीय कानून भी मान्य होंगें साथ ही अवशिष्ट विषय भी केन्द्र को सौंप दिए गए। इससे स्पष्ट है कि शक्ति विभाजन केन्द्र के पक्ष में है।
  2. राज्य तथा संघ के लिए एक ही संविधानःराज्यों तथा संघ के लिए एक ही संविधान बनाया गया है। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करते हुए उसे संघ के अधीन पृथक संविधान रखने का अधिकार है।
  3. एकल नागरिकताः आम तौर पर संघीय राज्यों में नागरिकों को संघ तथा इकाइयों की अलग-अलग नागरिकता प्राप्त रहती है अर्थात् उनकी नागरिकता दोहरी होती है। जैसे- संयुक्त राज्य अमेरिका में लेकिन संघात्मक राज्यों के विपरीत भारत में केवल इकहरी नागरिकता पाई जाती है। राज्यों की पृथक् नागरिकता प्राप्त नहीं है।
  4. एकीकृत न्याय व्यवस्थाः संघात्मक शासन प्रणाली में केन्द्र तथा राज्यों के लिए अलग-अलग न्याय व्यवस्था होती है, जैसे सं-रा- अमेरिका में लेकिन समस्त भारत में इकहरे न्यायालय का प्रबंध है। विभिन्न राज्यों के न्यायालय न केवल संघीय हैं, वरन् उन्हें उसी के अधीन काम करना पड़ता है।
  5. राज्यपालों की नियुक्तिः भारत के विभिन्न राज्यों के राज्यपालों की बहाली राष्ट्रपति करता है। वे राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद पर आसीन रह सकते हैं। यद्यपि वे राज्य प्रशासन के अधीन होते हैं, लेकिन उन्हें केन्द्रीय सरकार के अभिकर्ता (Agent) के रूप में कार्य करना पड़ता है।
  6. संकटकालीन उद्घोषणाः राष्ट्रपति को भारतीय संविधान अनेक संकटकालीन अधिकार देता है।
  7. प्रांतों को स्वायत्तता नहीं: संविधान के अनुच्छेद 3 के अन्तर्गत संसद किसी भी राज्य की सीमाओं को बदल सकती है तथा राज्य का अस्तित्व भी समाप्त कर सकती है।
  8. राज्यसभा में राज्यों को समान प्रतिनिधित्व नहीं: संघीय शासन की एक यह भी व्यवस्था है कि केन्द्रीय व्यवस्थापिका के उच्च सदन में विभिन्न इकाईयों को समान प्रतिनिधित्व दिया जाता है। लेकिन भारतीय संविधान में ऐसा प्रावधान नहीं किया गया है। यहां प्रतिनिधित्व का आधार राज्यों की जनसंख्या को रखा गया है। इससे संघीय सिद्धांत का उल्लंघन होता है।
  9. राज्य के विधेयक पर केन्द्रीय नियंत्रणः राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति लेनी पड़ती है।
  10. आर्थिक सहायता के लिए राज्यों की केन्द्र पर निर्भरताः आर्थिक क्षेत्र में राज्य आत्मनिर्भर नहीं हैं। अतः केन्द्र पर ही उसे आर्थिक सहायता हेतु निर्भर रहना पड़ता है जिससे राज्यों की स्वायत्तता खतरे में पड़ गई है।
  11. नीति आयोगः एक प्रशासकीय आदेश द्वारा इसकी स्थापना की गई है। इसके फैसले संघ तथा राज्य सरकार दोनों को मानने पड़ते हैं।

संविधान की उद्देशिका

‘हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय; विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता; प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26-11-1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मर्पित करते हैं।’