जीएसएलवी एमके-III D-1

भारत ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के द्वितीय लॉन्च पैड से ‘फैट ब्याय’ उपनाम वाले जीएसएलवी एमके- III D-1 के प्रथम विकासात्मक उड़ान को प्रक्षेपित करने के लिए हाई थ्रस्ट क्रायोजेनिक इंजन सीई-20 का प्रक्षेपण किया। इस प्रक्षेपण के द्वारा भारत के अब तक के सबसे वजनदार उपग्रह जीसैट-19 को सटीक कक्षा में स्थापित किया गया।

  • उपर्युक्त उड़ान की सफलता से इसरो की भावी योजनाओं चंद्रयान-2 व मानव मिशन का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
  • जीएसएलवी एमके-3 देश का पहला ऐसा उपग्रह है जो अंतरिक्ष आधारित प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके तेज स्पीड वाली इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने में सक्षम है।
  • देश ऐसी क्षमता विकसित करने पर जोर दे रहा है जो फाइबर ऑप्टिक इंटरनेट की पहुंच से दूर स्थानों को जोड़ने में महत्वपूर्ण हो।
  • जीसैट-19 को पहली बार भारत में बनी लीथियम आयन बैटरियों से संचालित किया जा रहा है। इन बैटरियों को इसलिए बनाया गया है ताकि भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ाया जा सके। ऐसी बैटरियों का कार और बस जैसे इलैक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • पहली बार इसरो पूरी तरह नए तरीके के मल्टीपल फ्रीक्वेंसी बीम का इस्तेमाल कर रहा है जिससे इंटरनेट स्पीड और कनेक्टिविटी बढ़ जाएगी।
  • इस प्रक्षेपण से पूर्व तकइसरो के पास दो प्रक्षेपण रॉकेट थे। इनमें ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) सबसे भरोसेमंद रहा है। इससे अंतरिक्ष में 1-5 टन वजनी उपग्रह भेजे जा सकते हैं। दूसरा जीएसएलवी मार्क 2 है इसकी मदद से 2 टन वजनी उपग्रह भेजे जा सके हैं। लेकिन इसे भरोसेमंद नहीं माना जाता है। इसरो 4 टन भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए फ्रांस के एरियन-5 रॉकेट की मदद लेता रहा है।

सीई-20 इंजन (क्रायोजेनिक अपर स्टेजः सी25)

  • CE-20 उच्च दाहक (हाई थ्रस्ट) वाला स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन है जिसका उपयोग जीएसएलवी मार्क-3 यान के साथ भारी वजन के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए किया गया।
  • 28 टन थ्रस्ट की क्षमता इंजन, से युक्त CE-20 से 4 टन तक के पेलोड को अंतरिक्ष में भेजा सकता है।
  • यह इंजन भारी देशी संचार उपग्रहों को तो अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर ही सकता है, भारी विदेशी उपग्रहों को भी प्रक्षेपित कर राजस्व अर्जित कर सकता है।
  • यह भारत के मानव मिशन को भी ले जाने में सक्षम है।
  • सीई25 क्रायोजेनिक उपरी चरण में अति निम्न ताप पर 28 टन क्रायोजेनिक प्रोपैलेंट है।

जीसैट-19: भारत का सबसे वजनदार उपग्रह

  • यह एक संचार उपग्रह है जिसे प्रक्षेपण के 16 मिनट पश्चात भूतुल्यकालिक अंतरण कक्षा ‘जीटीओ’ (Geosynchronous Transfer Orbit-GTO) में स्थापित किया गया। यह उपग्रह भारत की संचार प्रणाली आधारिक संरचना को और मजबूत करेगा।
  • जीसैट-19 के साथ आवेशित पार्टिक्ल की निगरानी व प्रकृति के अध्ययन तथा अंतरिक्ष विकिरण का उपग्रहों एवं उसके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर प्रभाव के अध्ययन हेतु जियोस्टेशनरी रेडिएशन स्पेक्टोमीटर ‘जीआरएएसपी' (Geostationary Radiation Spectometer GRASP) भी भेजा गया है।
  • यह उपग्रह लघु उष्मा पाइप, फाइबर ऑप्टिक गाइरो, माइक्रो इलेक्ट्रो-मिकेनिकल सिस्टम (MEMS) एक्सीलीरोमीटर, कु-बैंड टीटीसी ट्रांसपौंडर व स्वदेशी लिथियम बैटरी जैसी प्रौद्योगिकियों का भी परीक्षण करेगा।

जीएसएलवी मार्क-3 के सफल परीक्षण से भारत का अंतरिक्ष विज्ञान में दबदबा बढ़ेगा। अंतरिक्ष में भारत मानव को भेजने में कामयाब हो सकेगा। जीएसएलवी मार्क थ्री के प्रक्षेपण से अमेरिका, रूस और चीन में व्यवसायिक दबाव को लेकर चिंता बढ़ जाएगी। वर्ष 1999 से 2017 तक इसरो 24 देशों के 180 विदेशी उपग्रहों को पीएसएलवी के जरिए प्रक्षेपित कर चुका है। इसरो के कम प्रक्षेपण खर्च और अचूक तकनीकी के कारण अमेरिका जैसे देश भी भारत के मुरीद हैं। अब जीएसएलवी मार्क -3 से इसरो अधिक वजनी उपग्रहों को भी प्रक्षेपित करके प्रक्षेपण बाजार का सिरमौर बनने की राह प्रशस्त किया है।