मृत्यु दंड का औचित्य

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट ‘द ग्लोबल रिव्यू ऑफ द डेथ पेनल्टी, 2016’ को प्रकाशित की। रिपोर्ट के अनुसार चीन में मौत की सजा के आंकड़ा वर्ष 2016 में दुनिया में सबसे ज्यादा है। वर्ष 2016 में दुनियाभर में 1,032 लोगों को मौत की सजा दी गई, जबकि मौत की सजा के इससे ज्यादा मामले अकेले चीन में ही सामने आए। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के बाद ईरान, सऊदी अरब, इराक और पाकिस्तान में सबसे ज्यादा मौत की सजा दी गई। वहीं इस दौरान पुरे विश्व में 3,117 लोगों को मौत की सजा सुनाई गयी।

अमेरिका को इस सूची में मिस्र के बाद 7 वां स्थान दिया गया। वर्ष 2016 के दौरान भारत में 136 लोगों को मौत की सजा सुनाई गयी लेकिन इस दौरान एक भी व्यक्ति मौत को सजा नहीं दी गयी। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में फिलहाल 400 से अधिकलोग या तो फांसी दिए जाने या फिर उसे आजीवन कारावास में बदले जाने का इंतजार कर रहे हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2001 से 2011 के दौरान देश की विभिन्न अदालतों ने हर साल औसतन 132 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इनमें से हर साल 3-4 सजाओं की ही पुष्टि की।

उल्लेखनीय है कि मानवाधिकार संगठनों द्वारा मौत की सजा को समाप्त किये जाने की मांग की जाती रही है और वर्तमान में पूरे विश्व में 141 देशों में मौत की सजा के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है। एक तरफ जहाँ पुरे विश्व के दो तिहाई देशों ने इस सजा को समाप्त कर दिया है वहीं बाकि देशों में यह सजा अभी भी जारी है। भारत में मौत की सजा को समाप्त किये जाने की मांग होती रही है। हालांकि भारत सरकार के रुख से साफ है कि वह फिलहाल मौत की सजा को खत्म करने की पक्षधर नहीं है। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र ने 10 वर्ष पहले जब मौत की सजा पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखा था तब भारत ने इसके विरोध में वोट डाला था। उस समय सरकार ने अपने फैसले के समर्थन में दलील दी थी कि उसे अपने देश के कानूनों को तय करने का संप्रभू अधिकार है और मौत की सजा बेहद बिरले मामलों में ही दी जाती है। दरअसल, किसी मानवीय चूक से न्याय नहीं मिलने की वजह से किसी को मौत की सजा देने की आशंका ही मानवाधिकार संगठनों का प्रमुख तर्क है। एमनेस्टी इंटरनेशनल और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की ओर से किए गए अध्ययनों से साफ है कि किसी को मौत की सजा देने के फैसले की प्रक्रिया एकतरफा और पक्षपातपूर्ण है। मौत की सजा का विरोध कर रहे संगठनों का सवाल है कि किसी को फांसी पर लटका दिए जाने के बाद अगर पता चलता है वह बेकसूर था तो इस अन्याय की भरपाई कैसे हो सकती है। मौजूदा जटिल न्याय प्रणाली में ऐसी मानवीय गलतियों की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकताद्य दूसरी ओर, मौत की सजा जारी रखने के पक्षधर लोगों व संगठनों की दलील है कि खासकर महिलाओं व बच्चों के खिलाफ गंभीर अपराध के मामलों में मौत की सजा ऐसे अपराधों की पुनरावृत्ति रोकने की दिशा में अहम भूमिका निभाएगी। लेकिन वर्ष 2014 में अमेरिका में हुए एक अध्ययन में इस बात के कोई ठोस सबूत नहीं मिले थे कि मौत की सजा से ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाने में सहायता मिलती है।