प्रवासनः सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव

प्रवास की स्थिति हमारे समाज में निरंतर चली आ रही है। व्यक्ति अपनी आजीविका, शिक्षा, रहन-सहन और पारिवारिक स्तर को ऊंचा उठाने के लिए प्रवास कर रहे हैं। भारतीय समाज की मुख्य विशेषता ‘संयुक्त परिवार' है। जो कि परिवार, परम्परा और समाज में संतुलन बनाये रखती है। यदी आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए तो प्रवास के कारण संयुक्त परिवारों में विघटन होता नजर आता है। आधुनिक समय में प्रवास तथा पलायन के कारण पुराने सामाजिक तत्वों का कोई मूल्य नहीं रह गया। आधुनिकीकरण, नगरीकरण और औद्योगीकरण ने सामाजिक मूल्यों को बदल दिया है। संयुक्त परिवार एकल परिवार में परिवर्तित होते जा रहे हैं। साथ ही प्रवास के कारण सामाजिक विघटन, पारिवारिक विघटन और धार्मिक विघटन जैसी समस्याओं का जन्म हो रहा है।

भारत में प्रवासन पर ग्रामीण स्थिति

1971 की जनगणना के अनुसार भारत में 79.78 फीसद जनसंख्या ग्रामीण थी, जो समय के साथ-साथ घटती जा रही है। इसी तरह दस वर्ष के अन्तराल के पैमाने में ग्रामीण जनसंख्या 1981 में 76.27, 1991 में 74.28, 2001 में 72.22 तथा 2011 में 68.70 फीसद में सिमट कर रह गयी। इस तरह घटती जनसंख्या को देखकर कहा जा सकता है कि एक समय ऐसा भी आएगा, जब गांव समाप्त हो चुके होंगे। मानव विकास का इतिहास इस बात का साक्षी है कि मनुष्य आदिकाल से प्रवास करता आया है। प्रवास को समस्या इसलिए भी कहा गया है कि इसके कारण जनसंख्यात्मक भार में असंतुलन पैदा हो रहा है। एक तरफ क्षेत्र की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है तो दूसरी ओर जनसंख्या घट भी रही है।

प्रवास एक सामाजिक समस्या है। भारतवर्ष में प्रवास ग्रामों से नगरों की ओर हो रहा है। ग्रामीण जनसंख्या शीघ्रता से नगरों की ओर पलायन कर रही है। क्योंकि अच्छे जीवन की तलाश हर व्यक्ति करता है। इसके अतिरिक्त अन्य कारणों को भी प्रवास की समस्या का जिम्मेदार माना जा सकता है। उदाहरण के लिए ग्रामीण क्षेत्रें से लघु/कुटीर उद्यागों का पतन होना, कृषि की समाप्ति होना, भूमिहीन कृषक, गरीबी की समस्या, सामाजिक अयोग्यतायें, अधिक मजदूरी की इच्छा, नगरों का आकर्षण, बेरोजगारी आदि अनेक कारण अध्ययन क्षेत्र में सामने आये हैं।

यदि ग्रामीणों को पारिवारिक प्रवास के आधार पर विभक्त करें तो आंकड़ों के अनुसार 72 प्रतिशत ग्रामीणों के परिवार से प्रवास हुआ है तथा 28 प्रतिशत ग्रामीणों के परिवार से प्रवास नहीं हुआ है। वहीं अगर पारिवारिक प्रवास के कारकों की बात करें तो 61.11 प्रतिशत ग्रामीणों के परिवार से बेरोजगारी के कारण प्रवास हुआ है। जिससे स्पष्ट होता है कि ग्रामीण क्षेत्रें में बेरोजगारी अथवा आय के सधनों की कमी है। दूसरी ओर 16.66 प्रतिशत ग्रामीणों के परिवार से उचित शिक्षा के लिए प्रवास हुआ है। जिससे स्पष्ट होता है कि ग्रामीण क्षेत्रें में शिक्षक और शिक्षण संस्थानों का भी अभाव है। साथ ही 5.55 प्रतिशत पारिवारिक प्रवास व्यवसाय के लिए, 8.34 प्रतिशत गांव में साधन एवं सुविधा की कमी होने के कारण तथा 8.34 प्रतिशत पारिवारिक प्रवास उपरोक्त सभी कारणों के होने से हुए हैं।

प्रवासन पर सामाजिक व आर्थिक स्थिति

ग्रामीण क्षेत्रें में बढ़ रही प्रवास की समस्या के कारण उत्पन्न हुयी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति अध्ययन के आंकड़ों के अनुसार अत्यधिक नकारात्मकता को प्रदर्शित करती है। अवलोकन के तथ्यों से स्पष्ट होता है कि ग्रामीण क्षेत्रें में प्रवास से पूर्व आय का मुख्य साधन कृषि था, परन्तु प्रवास की बढ़ती समस्या ने कृषि उत्पादन में कमी उत्पन्न की है। वर्तमान के आंकड़ों के अनुसार 24 प्रतिशत उत्तरदाता कृषि को गांवों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने वाला आय का साधन मानते हैं, तो 38 प्रतिशत उत्तरदाता नौकरी (रोजगार) को तथा 38 प्रतिशत ग्रामीणों ने कृषि और नौकरी, दोनों को प्राथमिकता दी है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि प्रवास के बाद गांवों में जनसंख्या की कमी हुयी है, जिस कारण गांव में कृषि करने वाले लोगों की कमी हो रहे हैं और कृषि प्रधान देश से कृषि की समाप्ति हो रही है। दूसरी तरफ जो नौकरी कर रहे हैं, वह भी नगरों में प्रवासी बनकर अपनी रोजी-रोटी का बंदोबस्त कर रहे हैं और उसी रोजी से अपने परिवार का पालन-पोषण भी कर रहे हैं। इस प्रकार की आर्थिक स्थिति को अच्छी आर्थिक स्थिति का दर्जा नहीं दिया जा सकता।