ध्वनि प्रदूषण

अनियंत्रित, अत्यधिक तीव्र एवं असहनीय ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता को ‘डेसिबल इकाई’ में मापा जाता है। शून्य डेसिबल, ध्वनि की तीव्रता का वह स्तर है जहाँ से ध्वनि सुनाई देने लगती है। फुसफुसाहट में बोलने पर ध्वनि की तीव्रता 30 डेसिबल होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार 40 से 50 डेसिबिल तक की ध्वनि मनुष्य के सहने लायक होती है। उससे अधिक की तीव्रता की ध्वनि मनुष्य के लिये हानिकारक होती है। मानव के परिप्रेक्ष्य में ध्वनि का स्तर निम्न प्रकार है-

क्र.सं.

क्रिया

ध्वनि का स्तर (डेसिबल में)

1.

सामान्य श्रवण की सीमा

20

2.

सामान्य वार्तालाप

50-60

3.

सुनने की क्षमता में गिरावट

75

4.

चिड़चिड़ाहट

80

5.

मांस-पेशियों में उत्तेजना

90

6.

दर्द की सीमा

120

ध्वनि प्रदूषण का कारण

  1. औद्योगिक क्षेत्रें में उच्च ध्वनि क्षमता के पावर सायरन, हॉर्न तथा मशीनों के द्वारा होने वाले शोर।
  2. शहरों एवं गाँवों में किसी भी त्योहार व उत्सव में, राजनैतिक दलों के चुनाव प्रचार व रैली में लाउडस्पीकरों का अनियंत्रित इस्तेमाल/प्रयोग।
  3. अनियंत्रित वाहनों के विस्तार के कारण उनके इंजन एवं हार्न के कारण।
  4. जनरेटरों एवं डीजल पम्पों आदि से ध्वनि प्रदूषण।

ध्वनि प्रदूषण का नियंत्रण

  1. यथासंभव लाउडस्पीकरों का प्रयोग प्रतिबंधित कर देना चाहिये। जब तक अत्यंत आवश्यक न हो इनके प्रयोग की अनुमति नहीं देनी चाहिये। लाउडस्पीकरों का प्रयोग चिकित्सालयों एवं शिक्षण संस्थानों आदि से 500 मी- से अधिक दूरी पर ही किया जाना चाहिये।
  2. घरों में रेडियो, टेप, टेलीविजन का प्रयोग कम आवाज में करना चाहिये।
  3. वाहनों के हार्न का प्रयोग कम से कम करना चाहिये।
  4. वाहनों के सायलेंसरों एवं इंजन की देखभाल समय से करनी चाहिये।
  5. हवाई जहाजों एवं जेट विमानों को निर्धारित ऊँचाई पर ही उड़ना चाहिये।
  6. पटाखों का प्रयोग कम से कम करना चाहिये।
  7. सड़कों के किनारे वृक्ष लगाकर ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
  8. ध्वनि प्रदूषण से बचाव के साधन जैसे-ईयर प्लग, ईयर पफ आदि का प्रयोग करके ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
  9. रेलगाड़ी से उत्पन्न शोर को बैलास्ट विहीन रेल पथों के निर्माण द्वारा दूर किया जा सकता है।
  10. ध्वनि प्रदूषण से ग्रसित सड़कों एवं मकानों को ध्वनि निरोधी बनाना चाहिये।