ओबोरः चीन की महत्वाकांक्षी योजना

2049 में चीनी गणराज्य की 100वीं वर्षगाँठ है इस उपलक्ष्य में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में, 2049 तक चीन की, एशिया, यूरोप और अफ्रीका में व्यापक पहुंच बनाने के लिए व्ठव्त् परियोजना प्रस्तावित की थी। जिसे 2049 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। इस परियोजना को आधुनिक इतिहास की सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी पहल के रूप में देखा जा रहा है।

  • इस परियोजना में चीन को एशिया, यूरोप और अफ्रीका के बाजारों से जोड़ने के लिये सड़क, रेल और बंदरगाह परियोजनाओं का निर्माण करने की योजना है।
  • इसमें दो मार्गों को प्रस्तावित किया गया है।
  • एक, स्थल मार्ग जिसे वन बेल्ट या रेशम मार्ग आर्थिक पट्टी भी भी कहा जा रहा है।
  • यहाँ बेल्ट से तात्पर्य सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट से है जो तीन स्थल मार्गों से मिलकर बनी है।
  • चीन, मध्य एशिया और यूरोप को जोड़ने वाला मार्ग।
  • चीन को मध्य व पश्चिम एशिया के माध्यम से फारस की खाड़ी और भूमध्यसागर से जोड़ने वाला मार्ग।
  • चीन को दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया और हिन्द महासागर से जोड़ने वाला मार्ग।
  • दूसरा, सामुद्रिक मार्ग जिसे वन रोड या सामुद्रिक रेशम मार्ग भी कहा जा रहा है।
  • यहाँ रोड से तात्पर्य 21वीं सदी की समुद्री सिल्क रोड से है जिसमें दक्षिण चीन सागर को हिन्द महासागर, भूमध्य सागर होते हुए चीन से यूरोप को जोड़ने तथा दक्षिण चीन सागर के माध्यम से ही चीन से दक्षिण प्रशांत तक व्यापार करने की योजना है।

ओबोर पर क्या होनी चाहिये भारत की रणनीति?

सर्वप्रथम जब तक चीन के साथ, चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का हल न निकले तब तक भारत को ओबोर पर चीन के साथ बात नहीं करनी चाहिए, क्योंकि भारत की सम्प्रभुता सर्वाेपरि है। साथ ही चीन को यह एहसास कराना होगा कि भारत अभी एशिया की तीसरी बड़ी अर्थवयवस्था है। तथा जल्द ही विश्व की सबसे बड़ी अर्थवयवस्था होगी साथ ही भारत एक बड़ा बाजार है। भारत के ओबोर में शामिल न होने से ओबोर के सफल होनें की कल्पना भी संभव नहीं है। चीन भी यह समझता होगा कि 2000 वर्षों तक भारत चीन से हर मामले में आगे रहा और अभी भी भारत के पास अकूत संभावनाएँ हैं। अगर चीन वर्तमान है तो भारत भविष्य है।

वर्तमान में भू-राजनीति (geo - politics) को अर्थव्यवस्था से अलग नहीं किया जा सकता दोनों एक-दूसरे पर आश्रित हैं। जापान और दक्षिण कोरिया का भी चीन से बहुत विवाद है लेकिन वे चीन में तब भी बहुत ज्यादा निवेश कर रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह कि आर्थिक मुद्दे को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। वैसे भी वर्तमान समय में बहुध्रुवीय विश्व में, बड़ी शक्तियों के मध्य समन्वय, वैश्विक शासन व्यवस्था का एक अच्छा मार्ग बनकर उभर रहा है। इसलिए अगर चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का कोई हल निकलता है (जैसे इसको ओबोर का भाग न मानना, इसका नाम बदलना या भारत के घोषित क्षेत्र के लिए भारत से समझौता करना न की पाक से या भारत पाक दोनों से एक अंतरिम समझौता करना आदि) तब निम्नलििखत बातों को ध्यान में रखते हुए ओबोर में शामिल हुआ जा सकता है-

  • 20वीं सदी तक नाथू ला के माध्यम से ल्हासा और कोलकाता को जोड़ने वाला पुराना मार्ग वस्तु एवं सेवाओं के व्यापार का एक मुख्य जरिया हुआ करता था। भारत को चाहिए कि, भारत के माध्यम से तिब्बत को बाहरी दुनिया से जोड़ने वाले इस मार्ग का ओबोर के तहत पुनरुद्धार किया जाए इससे भारत को सामरिक और व्यापारिक लाभ प्राप्त होगा।
  • जहाँ तक ओबीओआर के माध्यम से चीन के बढ़ते प्रभुत्व का प्रश्न है तो भारत को भी ऐसे ही कुछ प्रोजेक्ट लाने होंगे। भारत को धीरे धीरे ओबोर के समानांतर मार्गों को विकसित करना होगा जैसेकि इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्टेशन कॉरिडोर (INSTC), एशिया अफ्रीका विकास गलियारा आदि।
  • जापान ने भी ओबोर परियोजना में शामिल होने से इनकार कर दिया है और प्रशांत और यूरेशियन क्षेत्रें को कवर करने हेतु अगल परियोजना का विकास करना चाहता है, जिसमें दक्षिण कोरिया भी साझीदार है। भारत को भी भारतीय उपमहाद्वीप में क्षेत्रीय संपर्क विकसित करने के लिये बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया, जापान और बहुपक्षीय संस्थानों के साथ मिलकर काम करना चाहिये।
  • भारत को चीन के साथ लगने वाली समस्याग्रस्त सीमाओं पर अपनी सामरिक क्षमता में वृद्धि करनी चाहिए।