दुर्लभ और उपेक्षित रोगों से पीडि़त लोग

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उपेक्षित ट्रॉपिकल डिजीज (Neglected Tropical Diseases - NTDs) की सूची ए में सर्पदंश को भी शामिल कर लिया है। इससे इस बीमारी हेतु और धन आवंटित किया जा सकेगा, ताकि इसमें और व्यापक एवं गहन शोध की जा सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस कदम से विकासशील देशों में सर्पदंश से होने वाली मृत्यु को कम करने में मदद मिलेगी। वर्ष में 2013 में उपेक्षित ट्रॉपिकल डिजीज सूची से इसे हटा दिया गया था।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन के मुताबिक दुनिया में हर साल करीब 50 लाख लोग सर्पदंश के शिकार होते हैं, जिनमें से एक लाख से अधिक लोगों की जान चली जाती है, जबकि करीब पांच लाख आंशिक अक्षमता के शिकार हो जाते हैं। इनमें अधिकतर लोग अफ्रीका, दक्षिण एशिया, मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रें में रहते हैं।एक अन्य अनुमान के मुताबिक सर्पदंश से अकेले भारत में हर साल करीब 46 हजार लोग असमय जान गंवा देते हैं, जिनमें सर्वाधिक संख्या कामकाजी उम्र के लोगों की होती है। इनमें अधिकतर ग्रामीण इलाकों के झोपड़ीनुमा या खपड़ैल घरों में रहनेवाले गरीब लोग होते हैं।

इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों में न तो सर्पदंश के उपचार की पर्याप्त व्यवस्था है, न ही सांपों से सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए गंभीर प्रयास किये जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसे एनटीडीएस में शामिल करने के बाद अब न केवल इसके सर्वसुलभ उपचार के बारे में दुनियाभर के वैज्ञानिक गंभीरता से शोध करेंगे, बल्कि इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए दुनियाभर में बेहतर प्रयास भी किये जायेंगे।

एनटीडीएस क्या है?

उपेक्षित ट्रॉपिकल डिजीज (एनटीडी) उष्णकटिबंधीय संक्रमणों का एक विविध समूह है जो अफ्रीका, एशिया और अमेरिका के विकासशील क्षेत्रें में कम आय वाले आबादी में विशेष रूप से पाया जाता है। यह वायरस, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ और हेलमन्थ (Helminths) जैसे विभिन्न रोगजनकों के कारण होता है। उप-सहारा अफ्रीका में एक समूह के रूप में इन बीमारियों का प्रभाव मलेरिया और तपेदिक के बराबर है। एनटीडी का सह-संक्रमण एचआईवी/ एड्स और तपेदिक भी अधिक घातक है।

बीस (20) उपेक्षित ट्रॉपिकल डिजीज को डब्ल्यूएचओ द्वारा प्राथमिकता दी गई है, हालांकि अन्य संगठन एनटीडीएस को अलग तरह से परिभाषित करते हैं। सन् 2017 में क्रॉमोब्लोस्मोकोसिस (Chromoblastomycosis), गहरे मायकोसेस, खुजली (deep mycoses, scabies) और एक्टोपैरासाइट्स और सर्पदंश को इस सूची में शामिल किया गया है।

इन उपेक्षित बीमारियों पर नियंत्रण हेतु अगले पांच से सात वर्षों में 2 बिलियन अमरीकी डॉलर से 3 बिलियन अमरीकी डॉलर के बीच धन की आवश्यकता होने का अनुमान है। कुछ दवा कंपनियों ने इसके लिए आवश्यक सभी दवा जो उपचार के लिये आवश्यक हैं मुफ्त देने की घोषणा की हुई है। हालांकि, विकसित देशों में रोकथाम के उपाय अक्सर अधिक सुलभ होते हैं, लेकिन यह गरीब देशों में सार्वभौमिक रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं।

एनटीडीएस को नियंत्रित करने हेतु किए गए उपाय

एनटीडीएस के उपचार के लिए उपलब्ध दवाओं को अब डब्लूएचओ द्वारा आवश्यकदवाओं (Essential Medicines) की सूची में शामिल किया गया है और फार्मास्युटिकल कंपनियां दान कार्यक्रमों (Donation Programmes) के माध्यम से उन्हें लोगों को आसानीसे उपलब्ध करा रही हैं। इन कार्यक्रमों के माध्यम से एनटीडीएस के नियंत्रण हेतु देशों की प्रतिबद्धता और बढ़ गई है साथ ही दवाओं के वितरण के लिए नये दृष्टिकोण (जैसे सामुदायिक-निर्देशित हस्तक्षेप या स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रमों के माध्यम से) को विकसित किया है। इससे बड़े पैमाने पर कुछ एनटीडीएस (ट्रेकोमा, ओंकोकेरासिआसिस, लिम्फेटिक फिलारायसीस, मिट्टी-प्रेषित हेल्मेंथ्स और स्किस्टोसोमासिस) को नियंत्रित करने में काफी मदद मिली है। धीरे-धीरे यह कार्यक्रम काफी बड़ा बनता जा रहा है और इसका फायदा वैश्विक स्तर पर लोगों को मिल रहा है। मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन प्रोग्राम को लागू करने से भी काफी लाभ हुआ है। सामुदायिक निर्देशित उपचार (Community Directed Treatment) को बड़े पैमाने पर लागू करने का सुझाव दिया गया है, ताकि जरूरी दवाईयां आम लोगों तक आसानी से पहुंच सके। इसके तहत समुदाय दवाओं के उपयोग, संग्रह और वितरण की जिम्मेदारी लेते हैं।

एनटीडीएस: भारत की पहल

19 अप्रैल, 2017 को जारी एनटीडीएस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की चौथी रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने 82 फीसदी उप-जिलों में ‘कालाजार' को समाप्त करने का लक्ष्य हासिल कर लिया है। कालाजार एक नेग्लेक्टड ट्रापिकल डिजिज(एनटीडी) के रूप में जाना जाता है। भारत द्वारा एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि, एक अन्य बिमारी ‘यॉज’ को खत्म कर देना है। यह त्वचा से जुड़ी एक पुरानी बीमारी है। वर्ष 2015 में गरीब बच्चे इससे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। डब्ल्यूएचओ ने भारत को इस महत्वपूर्ण लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रथम सदस्य राज्य के रूप में मान्यता दी है।

उल्लेखनीय है कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2015 में 100 करोड़ लोगों का नेग्लेक्टड ट्रापिकल डिजिज (एनटीडी) से इलाज किया गया। इन बीमारियों में कुष्ट रोग, हाथी रोग, कालाजार और परजीवी कीड़े की वजह से होने वाली बीमारी ‘शिस्टोसोमासिस’ प्रमुख थे। 10 करोड़ से अधिक एनटीडीएस के लिए इलाज और देखभाल की जरूरत वाले लोगों की सबसे बड़ी संख्या भारत, इंडोनेशिया और नाइजीरिया में है। भारत ने वर्ष 2017 के अंत में ‘लिशमानियासिस’ और ‘लसीका फिलारियासिस' ('Leishmaniasis' and 'Lymphatic Filariasis') जैसी बीमारियों को खत्म करने का लक्ष्य रखा है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक, मार्गरेट चैन के अनुसार 'सोने की बीमारी और हाथी रोग जैसे पुरानी बीमारी को कम करने में डब्लूएचओ ने रिकॉर्ड प्रगति की है।' पिछले 10 वर्षों में, लाखों लोगों को विकलांगता और गरीबी से बचाया गया है। डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार अब जब अधिक संख्या में देश एनटीडी समाप्त कर रहे हैं, उपचार की आवश्यकता वाले लोगों की संख्या वर्ष 2010 के दो बिलियन से कम हो कर वर्ष 2015 में 1-6 बिलियन तक पहुंच गया है, जो इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति को दर्शाता है।