राज्य की विशेषज्ञता प्राप्त कार्रवाही टीमें

राज्यों को आपदा से निपटने के लिए अपनी-अपनी विशेषज्ञता प्राप्त कार्रवाही टीमें गठित करने की भी सलाह दी गई है, जिन्हें केंद्र सरकार प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए सहायता उपलब्ध करवा रही है।

राज्य सरकारों को सलाह दी गई है कि वे आपदा राहत निधि में अपने वार्षिक आवंटन के 10 प्रतिशत भाग का उपयोग खोज एवं बचाव उपकरण और संचार उपकरण प्राप्त करने पर व्यय कर सकते हैं।

क्षेत्रीय कार्रवाही केंद्र (आरआरसी)

15 क्षेत्रीय कार्रवाही केंद्रों की पहचान की गई है और इन्हें आवश्यक खोज बचाव उपकरणों के भण्डारण के लिए विकसित किया जा रहा है। जिससे की इस प्रकार के उपकरणों की नजदीकी केंद्र से आपात स्थल पर अविलम्ब पहुंचाया जा सके।

दुर्घटना कमान प्रणाली

आपदा कार्रवाही प्रबंधन के व्यवसायीकरण के लिए एक दुर्घटना नियंत्रण प्रणाली लागू की जा रही है। इस प्रणाली में दुर्घटना प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं में प्रशिक्षित दुर्घटना कमाण्ड और अधिकारियों के साथ विशेषज्ञता प्राप्त दुर्घटना कमाण्ड दलों की व्यवस्था है।

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक आंकड़ा कोष (डाटा बेस)

आपदा प्रबंधन के लिए वेब पर उपलब्ध एक केंद्रीकृत डाटाबेस 2011 से प्रचलन में आ गया है। भारतीय आपदा संसाधन नेटवर्क, आपदा राहत के लिए विशिष्ट उपकरणों और मानव शक्ति संसाधनों सहित आवश्यक और विशिष्ट संसाधनों की एक राष्ट्र स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक सूची है।

संचार नेटवर्क

बड़ी आपदा आने की स्थिति में सर्वप्रथम सामान्यतः संचार सुविधा प्रभावित होती है चूंकि ऐसी स्थिति में सामान्यतः परम्परागत संचार नेटवर्क प्रणाली खराब हो जाती है। इसलिए यह निर्णय लिया गया है की पर्याप्त रूप से संसाधनों से युक्त एक बहुप्रणाली, बहु चैनल संचार प्रणाली स्थापित की जाए।

आपदा राहत निधि (सीआरएफ)

बारहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर आवंटित राशि सहित प्रत्येक राज्य के लिए इस निधि का गठन किया गया है। इस निधि में भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा 3:1 के अनुपात में योगदान किया जाता है। गंभीर प्रकृति की आपदा आने की स्थिति में राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता निधि से अतिरिक्त केंद्रीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण की राष्ट्रीय योजना

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा 1 जून, 2016 को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना, 2016 तैयार किया गया और यह योजना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमति प्राप्त आपदा जोखिम न्यूनीकरण (2015-2030) के सेंडाई फ्रेमवर्क के अनुरूप है।

आपदा जोखिम को कम करने के लिए योजना

किसी भी आपदा की स्थिति में कार्रवाई या प्रतिक्रिया करने के लिये एक निर्धारित ढांचा तैयार किया गया है जिसके केंद्र में एनडीएमए को रखा गया है और सूचना एवं प्रसारण मंत्रलय आपदा की पूर्व चेतावनी देगी। इस योजना में इस बात का उल्लेख किया गया है कि दिव्यांगों की विशेष आवश्यकताओं के मद्देनजर निर्माण गतिविधियों का ध्यान रखा जाए और महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के पुनर्वास के लिये एक विशेष अनुभाग की भी स्थापना की जाए। आपदा प्रबंधन अधिनियम के अनुसार इसे प्रतिवर्ष एक बार संशोधित किया जाना है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना 2016 की विशेषताएं

  • इसमे पहली बार जानवरों के बचाव के अलावा बड़े पैमाने पर सूखे से निपटने के भी प्रावधान शामिल किये गए हैं।
  • एनडीएमपी सूखे के विभिन्न पहलुओं और प्रभावों को न्यूनतम करने के लिए चेतावनी प्रणाली स्थापित करना ताकि देश भविष्य में सूखे की समस्या से बेहतर तरीके से निबटने के लिए तैयार रहे।
  • इस योजना के अनुसार चक्रवात को समझना और उसकी भविष्यवाणी करना भारतीय मौसम विभाग और अंतरिक्ष विभाग की जिम्मेदारी होगी। राज्य ग्रामीण और शहरी निकायों के माध्यम से सहायता प्रदान करते हुए निगरानी का काम संभालेंगे।

आपदा प्रबंधन योजना 2016 में आपदा को न्यून करने की चुनौतियां

आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 11 के तहत इस योजना को तैयार करना जरूरी बनाया गया था लेकिन इसके प्रावधानों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी नहीं बनाया गया।

आपदा की स्थिति आने पर सशस्त्र बलों या केंद्रीय एजेंसियों की तैनाती करने को लेकर भी कोई दिशानिर्देश नहीं दिये गए हैं बल्कि योजना के परिचय में लिखा गया है कि ऐसा करना राज्य सरकार के विशेषाधिकार में है। केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रलयों और विभागों को अलग से अपनी जरूरत के हिसाब से आपदा प्रबंधन की योजनाओं को तैयार करने बाद में उन्हें अधिसूचित करवाना होगा। इस योजना के अनुसार इसकी तमाम सिफारिशों को लागू करने में 15 वर्ष तक का समय लग सकता है।