जल (प्रदूषण निरोध एवं नियंत्रण) अधिनियम-1974

भारत सरकार द्वारा वर्ष 1974 में यह अधिनियम पारित किया गया था तथा इसके अंतर्गत जल प्रदूषण को इस प्रकार परिभाषित किया गया- जल के भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक गुणों में किसी भी प्रकार के द्रव, गैस या ठोस पदार्थों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होने से हुए परिवर्तन या प्रदूषण जो अशुद्धियां पैदा करे या पानी को मानव स्वास्थ्य या सुरक्षा अथवा घरेलू, व्यापारिक, औद्योगिक, कृषि या अन्य यथोचित उपायों अथवा जंतुओं या पौधे या जलीय जीवों के जीवन तथा स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं। इस अधिनियम की मुख्य बातें निम्नवत हैं-

  • इस अधिनियम के तहत केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा राज्य प्रदूषण बोर्डों को स्वायत्तशासी संस्था का दर्जा प्रदान किया गया है। ये जल प्रदूषण के लिए योजनाएं बनाकर उन्हें लागू करते हैं। मानकों का उल्लंघन होने पर बोर्ड को न्यायिक कार्रवाही करने की भी शक्ति प्राप्त है।
  • यह अधिनियम जल प्रदूषण का निरोध, नियंत्रण, हतोत्साहन, जल की स्वच्छता की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • यह जहां प्रदूषण के स्तर को नापने का बंदोबस्त करता है, वहीं प्रदूषकों के लिए दंड का भी प्रावधान करता है। तीन माह की कैद या 10,000 जुर्माना हो सकता है। दोनों दंड एक साथ भी दिए जा सकते हैं।