भारत के लिए मेथनॉल अर्थव्यवस्था

पेट्रोलियम क्षेत्र की अनिश्चितताओं से निर्भरता घटाने और अपनी अर्थव्यवस्था को उससे पृथक करने की प्रवृत्ति हाल के वर्षों में पूरी दुनिया में देखी गई है। ऐसी ही एक पहल ‘मेथनॉल इकोनॉमी‘ की अवधारणा है, जिसे लगभग सभी विकासशील और विकसित देशों द्वारा सक्रिय रूप से अपनाया गया है। भारत को एक तीव्र वृद्धि वाली अर्थव्यवस्था होने के नाते संबंधित पर्यावरणीय खतरों को कम करने की आवश्यकता है। इस मुद्दे से निपटने के लिए नीति आयोग ने भारत में सभी स्तरों पर मेथनॉल अर्थव्यवस्था के कार्यान्वयन का एक रोडमैप तैयार किया है।

इस बदलाव से लाभ

  • मेथनॉल आसानी से वृद्धि किया जा सकने वाला और टिकाऊ ईंधन है, क्योंकि इसे विभिन्न प्रकार के पदार्थों से बनाया जा सकता है।
  • मेथनॉल करीब-करीब शून्य प्रदूषण सुनिश्चित करता है, क्योंकि यह कोई कण पदार्थ और कालिख नहीं उत्सर्जित करता और लगभग शून्य एसओएक्स (SOX) और एनओएक्स (NOX) उत्सर्जन सुनिश्चित करता है।
  • मेथनॉल सभी आंतरिक दहन इंजनों में कुशलता से जलता है; इसलिए यह परिवहन में पेट्रोल और डीजल दोनों को हटा सकता है।
  • धुआं रहित चूल्हा के प्रयोग से घरेलू प्रदूषण को कम करके महिलाओं के स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।
  • हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और अंततः ‘‘हाइड्रोजन आधारित ईंधन प्रणाली" की ओर बढ़ने के लिए आदर्श विकल्प है।
  • मेथनॉल में बदलाव के लिए बुनियादी ढांचे में न्यूनतम संशोधन और वितरण बुनियादी ढांचे में न्यूनतम पूंजी की आवश्यकता होती है।
  • सार्वजनिक परिवहन में क्रांति, आयात कमीे के साथ ही शहरी प्रदूषण की समस्या को हल करता है।
  • एचएफओ (हैवी फ्रयूल ऑयल) से मेथनॉल में परिवर्तन डीजल औद्योगिक बॉयलर के प्रतिस्थापन को सुनिश्चित करने के कारण बिजली क्षेत्र को पुनः व्यवहार्य बनाता है।

मेथनॉल रसोई ईंधन कार्यक्रम

नामरूप स्थित असम पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड ने भारत के पहले कनस्तर आधारित ‘‘मेथनॉल-आधारित रसोई ईंधन कार्यक्रम" को शुरू किया है। यह पारंपरिक एलपीजी ईंधन से सस्ता है और उत्तर पूर्व भारत की ऊर्जा मांगों को पूरा करेगा। यह परियोजना कच्चे तेल के आयात को कम करने, स्वच्छ, लागत प्रभावी और प्रदूषण-मुक्त खाना पकाने के ईंधन को उपलब्ध कराने के भारत के प्रयास का स्वाभाविक विस्तार है। उदाहरण के लिए, मणिपुर में 850 रुपये कीमत वाले एक एलपीजी सिलेंडर के बराबर ऊर्जा के मेथनॉल की लागत 650 रुपये है। नीति आयोग अकेले मेथनॉल प्रयोग से देश के 20 प्रतिशत कच्चे तेल आयात को घटाने और भारत को मेथनॉल आधारित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए काम कर रहा है।

भारत ने विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी की

5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के आयोजन के लिए मेजबान देश के रूप में भारत को चुना गया था। इस वर्ष का विषय ‘‘प्लास्टिक प्रदूषण का अंत" था। हर साल दुनिया में अरबों की संख्या में एक बार प्रयोग होने वाले या डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैग का उपयोग किया जाता है, जो अंत में समुद्र में चले जाते हैं। यह गंभीर परिदृश्य समुद्री जीवन के साथ-साथ स्थलीय जीवन के लिए भी खतरा है।

चक्रवात ओखी के दौरान स्थिति की गंभीरता देखी गई, जिसके परिणामस्वरूप पूरे भारत के पश्चिमी तट पर प्लास्टिक के मलबे का ढेर लग गया। इस समस्या को हल करने के लिए भारत ने 2022 तक एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक के उपयोग को समाप्त करने की योजना बनाई है। प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने का सबसे अच्छा तरीका प्लास्टिक का पुनर्चक्रण (Recycle) और खपत कम करना है। यह केवल तभी सुनिश्चित हो सकता है, जब प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के नियमों और भावना का पालन किया जाए।

चुनौतियां

  • ऊर्जा क्षेत्र में सख्त प्रवर्तन कानूनों और वैधानिक निकायों का अभाव प्रगति को बाधित करता है।
  • पेट्रोलियम उद्योग से लॉबिंग के साथ-साथ राजनीतिक परिपक्वता की कमी बदलाव को धीमा कर सकती है।
  • भारत में एक व्यापक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का अभाव।
  • एक नए वैकल्पिक ईंधन के लिए बदलाव के प्रति लोगों में जागरूकता के अभाव के साथ-साथ निष्क्रियता।
  • मेथनॉल अनुसंधान को वित्तीय प्रोत्साहन से लोकलुभावन विकास एजेंडे की ओर परिवर्तन।

आगे की राह

  • CO2 को एकत्र करने की एक सरल व्यवस्था सुनिश्चित करना ताकि उद्योगों के ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का दोहन मेथनॉल उत्पादन के लिए किया जा सके।
  • मेथनॉल अर्थव्यवस्था को वाणिज्यिक और व्यवहार्य चरण तक पहुंचना सुनिश्चित करना।
  • एक व्यापक योजना बनाना, जो राष्ट्रीय रणनीतिक कदम के रूप में कच्चे तेल आयात के समयबद्ध प्रतिस्थापन को निश्चित करे।
  • मेथनॉल आधारित सम्मिश्रण से पेट्रोल में 100 प्रतिशत मेथनॉल में बदलाव।
  • शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में अपशिष्ट संग्रह और प्रबंधन प्रणाली को नियमित बनाना।
  • सरकारी विभागों को प्रदूषकों से शून्य कार्बन उत्सर्जक संगठनों में बदलना।
  • मेथनॉल पर निर्भर अंतर्देशीय जलमार्ग-आधारित परिवहन में स्थानांतरण के द्वारा रसद (लॉजिस्टिक) क्षेत्र का परिवर्तन।