रेल सुरक्षा

1962 में कुंजरु कमेटी का गठन हुआ और इस समिति ने 359 सिफारिशें की। 1968 में गठित बांचू समिति ने 499 सिफारिशों के साथ रेल दुर्घटनाओं के लिए रेल कर्मचारियों को जिम्मेदार माना और रेलवे ट्रैक की अल्ट्रासोनिक जांच की सिफारिश की लेकिन सिफारिशों को दरकिनार कर दिया गया।

राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोषः मंत्रालय द्वारा एक समिति का गठन किया गया है। जो एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के सुरक्षा कोष का सृजन करेगा।

वर्ष 2003-2008 की अवधि के दौरान कार्यान्वित रेल सुरक्षा विशेष निधि (SRSF) चरण-I में, भारतीय रेलों की सुरक्षा में सुधार करने के लिए 16,318 करोड़ रुपये का खर्च शामिल था। इसमें मुख्य रूप से पुलों, सिग्नलिंग प्रणालियों, रेलपथ और चल स्टॉक से संबंधित पुरानी परिसंपत्तियों का बदलाव शामिल था।

सितंबर 2011 में अनिल काकोदकर की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय सुरक्षा समिति का गठन किया गया था। समिति ने अनुमान व्यक्त किया था कि रेल सुरक्षा सहित उसकी समस्त सिफारिशों को लागू करने के लिए पांच वर्ष की अवधि में 1,03,110 करोड़ रुपये परिव्यय की आवश्यकता होगी। अर्थात् पांच वर्ष की अवधि तक प्रतिवर्ष लगभग 20,000 करोड़ रुपये की जरुरत होगी।

स्वच्छ रेल स्वच्छ भारत

‘स्वच्छ रेल स्वच्छ भारत’ मिशन को कार्यान्वित करने के लिए हाउसकीपिंग का नया आंतरिक व्यवस्था विभाग बनाया गया है।

बायो टॉयलेट टैंकः यात्रियों को स्वास्थ्यवर्धक वातावरण उपलब्ध कराने और स्टेशन परिसर/रेल परिपथ को स्वच्छ रखने की संपूर्ण प्रतिबद्धता के साथ भारतीय रेल ने कोचों में उपयोग के लिए पर्यावरण के अनुकूल बायो-टॉयलेट का विकास किया है। इस तकनीक का विकास भारतीय रेल और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन-डीआरडीओ ने संयुक्त रूप से किया है।

प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप से दुर्घटनाओं पर नियंत्रणः इंजन ड्राइवरों की गलती के कारण होने वाली दुर्घटनाओं के मामले को प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप के माध्यम से हल किया जा रहा है।

स्वचालित रेलगाड़ी सुरक्षा (ATP) प्रणालियां इंजन ड्राइवरों की गलती या फिर अधिक गति के कारण टक्कर से होने वाले सुरक्षा संबंधी खतरे को कम करती है।

टक्कर रोधी उपकरणः टक्कर-रोधी उपकरण ट्रेनों पर लगाया जाने वाला उपकरण है और यह एक सुरक्षा उपकरण के रूप में कार्य करता है। नार्थ-ईस्ट फ्रंटियर रेलवे पर यह सफलतापूर्वक काम कर रहा है। यह उपकरण सिग्नलिंग प्रणाली और इंटरलॉकिंग प्रणाली से जोड़ा गया है।

राष्ट्रीय रेल विकास योजना

जनवरी, 2003 में रेलवे नेटवर्क को सुदृढ़ बनाने के लिए रेल विकास निगम की स्थापना की गई। 15,000 करोड़ रुपये की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत निम्नलिखित तीन परियोजनाएं शामिल हैं-

हरित रेल गलियाराः 114 किलोमीटर लंबा मनामुदुरई-रामेश्वरम रूट देश का प्रथम हरित रेल गलियारा है। यह गलियारा 24 जुलाई, 2016 को आरंभ हुआ। इसके 10 यात्री कोचों में जैव शौचालयों का प्रावधान किया गया है।

स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजनाः वर्ष 2000 में चार महानगरों दिल्ली, कोलकाता, मुंबई व चेन्नई को जोड़ने वाले उच्च यातायात घनत्व रेल मार्गों को सुदृढ़ किया गया। इसके तहत 5846 किमी. लंबे रेल मार्गों का दोहरीकरण, मालगाडि़यों की गति को बढ़ाकर 100 किमी. प्रति घंटा करने तथा टर्मिनलों व जंक्शन स्टेशनों के नवीनीकरण आदि के कार्य भी सम्पादित किया जाना है।

अनुभूति कोचः अनुभूति कोच स्कीम के तहत 2014 में शताब्दी एवं राजधानी रेलगाडि़यों में अद्यतन आधुनिक सुविधाओं एवं सेवाओं से युक्त एक कोच लगाया गया है। ऐसा पहला कोच चंडीगढ़-दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस में लगाया गया, जिसके पश्चात अन्य शताब्दी एवं राजधानी एक्सप्रेस में इसकी शुरुआत की गई।

हीरक चतुर्भुज नेटवर्कः सड़क मार्ग की तर्ज पर भारतीय रेलवे उच्च गति की रेलगाडि़यों (बुलेट ट्रेन) के लिए अलग से ट्रैक का निर्माण करेगा, जिसे ‘हीरक चतुर्भुज नेटवर्क’ (Diamond Quadrilateral Network) कहा जाएगा। मुंबई-अहमदाबाद के बीच पहली बुलेट ट्रेन जापानी पूंजी एवं तकनीकी से बनाई जा रही है।

समर्पित माल ढुलाई मार्ग परियोजनाः समर्पित माल ढुलाई मार्ग (डी.एफ.सी.) परियोजना पूर्वी एवं पश्चिमी समर्पित माल ढुलाई मार्ग (डीएससी) एक मेगा परिवहन परियोजना है, जिसमें परिवहन क्षमता को बढ़ाने, परिवहन की इकाई कीमतों को कम करने और सेवा की गुणवत्ता को बढ़ाया जाता है।