अधिनियम/संशोधान (ग्रामीण विकास)

भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापना अधिनियम, 2013 और इससे सम्बंधित अध्यादेश 2015

  • भूमि अधिग्रहण को आसान बनाने और इस प्रक्रिया में शामिल सभी पक्षों को संतुष्ट करने के लिए अधिनियम पारित किया गया था। अधिनियम की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:

सहमतिः 3 श्रेणियों के लिए अलग-अलग सहमति आवश्यक हैं-

  1. सरकारी परियोजनाएं: कोई सहमति की आवश्यकता नहीं।
  2. पीपीपी प्रोजेक्ट्सः 70% जमीन मालिकों को सहमति आवश्यक
  3. निजी प्रोजेक्ट के लिएः 80% जमीन मालिकों को सहमति आवश्यक हैं। सभी परियोजनाओं के लिए सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट को आवश्यक बना दिया गया है।

सीमाएं: अधिनियम लागू नहीं होगा, यदि परियोजना राष्ट्रीय महत्व की है (सामाजिक प्रभाव आंकलन द्वारा मान्य) और वैकल्पिक पुनर्वास प्रदान किया जाता है।

सुरक्षा उपायः शिकायतों के समाधान के लिए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापना प्राधिकरण की स्थापना की गई।

अधिग्रहित जमीन पर पांच वर्ष के अन्दर काम शुरू नहीं हुआ तो जमीन वापस करनी होगी।

विवादास्पद संशोधनः संशोधन सहमति से 5 प्रकार की परियोजनाओं को छूट देता है, जो हैं -

  1. राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाएं, रक्षा या रक्षा उत्पादन की तैयारी सहित।
  2. अवसंरचना परियोजनाएं जिनमें पीपीपी के तहत शामिल हैं, जहां भूमि का स्वामित्व सरकार में निहित है।
  3. सरकार और इसके उपक्रमों द्वारा स्थापित औद्योगिक गलियारे।
  4. विद्युतीकरण सहित ग्रामीण आधारभूत संरचना।
  5. गरीब लोगों के लिए किफायती आवास।
  • इन छूटों के कारण काफी समस्याएँ पैदा हुई; क्योंकि अधिनियम में वर्णित लोगों की सहमति से सम्बंधित प्रावधान को दरकिनार करने का आरोप लगाया गया।