इसरो व सीएमएफ़आरआई के मध्य समझौता

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से तटीय आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिए, ‘केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान’ (CMFRI) तथा इसरो के ‘अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र’ (SAC) ने हाल ही में एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये। समझौते के अनुसार ‘छोटी आर्द्रभूमियों’ (small wetlands) को बहाल करने के उद्देश्य से तटीय क्षेत्र में स्थित इन वेटलैंड्स के मानचित्रीकरण, मान्यता देने तथा उन्हें संरक्षित करने के लिए दोनों संस्थाएं एक साथ मिलकर काम करने पर सहमत हो गईं है।

इन संस्थानों का उद्देश्य आर्द्रभूमि की पहचान करना, उनका सीमांकन करना तथा तटीय मत्स्यपालन (small wetlands) जैसे उपयुक्त आजीविका विकल्पों के माध्यम से निम्नीकृत आर्द्रभूमि (degraded wetlands) की बहाली करना है।

प्रमुख्य बिंदु

समझौते में तटीय आजीविका कार्यक्रमों (Coastal Livelihood Programmes) के माध्यम से इन वेटलैंड्स के संरक्षण की बात कही गई है।

  • तटीय आर्द्रभूमियों के संरक्षण हेतु एक मोबाइल ऐप तथा 2.25 हेक्टेयर से छोटी आर्द्रभूमियों के पूर्ण डेटाबेस वाला केंद्रीकृत पोर्टल विकसित किया जाएगा।
  • एप्लीकेशन का उपयोग आर्द्रभूमि की वास्तविक समय पर निगरानी एवं हितधारकों और तटीय लोगों को सलाह देने के लिए किया जाएगा।
  • समझौता के अनुसार, इसरो के ‘अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र’ द्वारा पहले से ही विकसित राष्ट्रीय वेटलैंड एटलस को CMFRI द्वारा प्रदान किए जाने वाले आर्द्रभूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक मापदंडों के आंकड़ों के साथ अद्यतन किया जाएगा।
  • सीमांकित तटीय आर्द्रभूमि के वास्तविक समय के आंकड़ों से निम्नीकृत आर्द्रभूमि के लिए एक संरक्षण योजना विकसित करने में काफी मदद मिलेगी।

छोटी आर्द्रभूमियां: छोटे वेटलैंड देश भर में 5 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को कवर करते हैं, वहीं केरल में ऐसे 2,592 छोटे वेटलैंड हैं।

  • देश भर में छोटे आर्द्र क्षेत्र कई कारणों से अत्यधिक उपेक्षित हैं। जलवायु परिवर्तन से प्रेरित वर्षा ने ऐसी आर्द्रभूमि की भौतिक-रासायनिक विशेषताओं को काफी बदल दिया, इसे वर्ष 2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान स्पष्ट रूप से देखा गया था।

सीएमएफआरआईः भारत सरकार द्वारा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रलय के अधीन 3 फरवरी, 1947 को केन्द्रीय समुद्री मत्स्यिकी अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गयी और वर्ष 1967 में इस संस्थान को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन कर दिया गया।