जलवायु परिवर्तन का ‘सुपर एल नीनो’ पर प्रभाव

शोधकर्ताओं ने पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण एल नीनो (El Nino) की घटनाओं में वृद्धि होने की संभावना है। यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय जलवायु शोधकर्ताओं के एक दल द्वारा मनोआ इंटरनेशनल पैसिफिक रिसर्च सेंटर (Manoa International Pacific Research Center - IPRC) में हवाई विश्वविद्यालय (University of Hwaaii) के बिन वांग (Bin Wang) के नेतृत्व में किया गया।

प्रमुख तथ्य

इस अध्ययन में 1901 से 2017 के बीच हुई एल नीनो की 33 घटनाओं की जांच की गयी और निष्कर्ष निकाला गया है कि 1970 के दशक के अंत में प्रशांत महासागर में एल नीनो की उत्पत्ति हुई थी। एल नीनो से वहां पर हजारों मील की दूरी तक एक पश्चिमवर्ती बदलाव हुआ और साथ ही एल नीनो की चरम घटनाओं में वृद्धि हुई।

  • एल नीनो का पश्चिम की ओर बढ़ना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका अर्थ है कि एल नीनो अब प्रशांत महासागर के क्षेत्र में विस्तृत रूप से बन रहा है।
  • एल नीनो दक्षिणी दोलन, विश्व के कई क्षेत्रों में चरम मौसम की घटनाओं का कारण बन सकता है। भारत में मानसून सहित जलवायु परिवर्तन की संभावनाओं को जानने के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है।
  • भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में एल नीनो, गर्म तापमान तथा मानसूनी वर्षा को प्रभावित करने के लिए मुख्य कारक है।

अल नीनो की घटनाओं में वृद्धिः अध्ययन में उन कारकों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि तथा मध्य प्रशांत में तेज हवाओं में बदलावों को नियंत्रित करते दिख रहे थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण एल नीनो घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है।

सामाजिक अर्थव्यवस्था पर प्रभावः यदि मानवजनित गतिविधियों के कारण पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन जारी रहता है, तो लगातार होने वाली एल नीनो की घटनाओं से सामाजिक-आर्थिक स्थिति प्रभावित होगी। इन स्थितियों से बचने के लिए मानवीय गतिविधियों को वैश्विक जलवायु मॉडल के अनुरूप बदलने की जरूरत है।

पारिस्थितिक क्षतिः 1982, 1998 तथा 2015-2016 में होने वाली एल नीनो की घटनाओं से वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है। इसके प्रभाव से दुनिया भर में प्रवाल भित्तियां नष्ट हो सकती हैं और अफ्रीका व एशिया के कुछ हिस्सों में बाढ़ आ सकती है। विश्व के दूसरे हिस्सों में नमी के कारण भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।