चंद्रयान-2: भारत का ऑर्बिटर-लैंडर-रोवर मिशन

चंद्रयान-2 मिशन इसरो के पिछले मिशनों की तुलना में एक महत्वपूर्ण तकनीकी उन्नति का प्रतिनिधित्व करता है। इस मिशन में चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव की खोज का लक्ष्य रखा गया था। चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे। इसका उद्देश्य चंद्रमा के केवल एक क्षेत्र का अध्ययन करना नहीं, बल्कि एक ही मिशन में चन्द्रमा के बहिर्मंडल (exosphere), सतह और चंद्रमा की उप-सतह का भी अध्ययन करना है।

चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास का पता लगाने तथा सतह में विविधता का अध्ययन करने के लिए इसकी सतह का व्यापक मानचित्रण आवश्यक है। चंद्रमा पर पानी की उत्पत्ति का अध्ययन करने के साथ चन्द्र सतह के नीचे और चंद्र बहिर्मंडल में पानी के अणुओं के वितरण का अध्ययन आवश्यक है।

चंद्र का दक्षिण ध्रुव विशिष्ट है, क्योंकि चंद्र सतह का यह क्षेत्र हमेशा छाया में रहता है और उत्तरी ध्रुव की तुलना में बहुत बड़ा है। इसके आसपास के क्षेत्रों में पानी की उपस्थिति की संभावना है। इसके अलावा दक्षिण ध्रुव क्षेत्र में ठंडे जाल (cold traps) के सामान क्रेटर हैं, जो प्रारंभिक सौर मंडल का जीवाश्म रिकॉर्ड रखते हैं।

ऑर्बिटरः इसका वजन 2,397 किलोग्राम है और यह बेंगलुरु के बयालू में स्थित भारतीय गहन अंतरिक्ष नेटवर्क (Indian Deep Space Network - IDSN) के साथ-साथ विक्रम लैंडर से संचार करने में सक्षम है।

ऑर्बिटर पेलोड्स

टेरेन मैपिंग कैमरा 2 (टीएमसी 2)

इसका प्राथमिक उद्देश्य पैंक्रोमेटिक स्पेक्ट्रल बैंड (0.5-0.8 माइक्रोन) का उपयोग कर, 100 किमी की चंद्र ध्रुव कक्षा से 5 मीटर की उच्च स्थानिक रिजॉल्यूशन (spatial resolution) से 20 किमी क्षेत्र का मानचित्रण करना है। टीएमसी 2 द्वारा एकत्र किया गया डेटा हमें चंद्रमा के विकास के बारे में जानकारी देगा और चंद्र सतह का 3 डी मानचित्र तैयार करने में मदद करेगा।

चंद्रयान 2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (CLASS)

मैग्नीशियम, एल्युमिनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन और सोडियम जैसे प्रमुख तत्वों की उपस्थिति की जांच करने के लिए चंद्रमा की एक्स-रे प्रतिदीप्ति (X-ray Fluorescence-XRF) को मापता है।

सोलर एक्स-रे मॉनिटर (XSM)

यह सूर्य और उसके कोरोना द्वारा उत्सर्जित एक्स-रे का निरीक्षण करता है। इन किरणों में सौर विकिरण की तीव्रता को मापता है और सीएलएएसएस का समर्थन करता है।

ऑर्बिटर हाई रिजॉल्यूशन कैमरा (OHRC)

यह लैंडिंग साइट की उच्च-रिजॉल्यूशन छवियां प्रदान करता है और अलग होने से पहले किसी भी क्रेटर या बोल्डर का पता लगाकर लैंडर का सुरक्षित रूप से सतह पर उतरना सुनिश्चित करता है।

इमेजिंग आईआर स्पेक्ट्रोमीटर (IIRS)

इसका उपयोग चंद्रमा के खनिज विज्ञान सम्बन्धी एवं अस्थिर मानचित्रण (mineralogical and volatile mapping) और जल/ हाइड्रॉक्सिल लक्षणों कावर्णन के लिए किया जाता है।

डुअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक एपर्चर रडार (DFSAR)

इस पेलोड के मुख्य वैज्ञानिक उद्देश्य चंद्रमा के ध्रुव क्षेत्रों का उच्च-रिजॉल्यूशन मैपिंग करना और इन क्षेत्रों में पानी-बर्फ का मात्रात्मक अनुमान लगाना है।

चंद्रयान 2 एटमोस्फियरिक कंपोजिशनल एक्सप्लोरर 2 (CHACE 2)

इसका प्राथमिक उद्देश्य चंद्रमा के बहिर्मंडल की संरचना और वितरण का इन-सीटू (in-situ) अध्ययन करना है।

डुअल फ्रीक्वेंसी रेडियो साइंस (DFRS) प्रयोग

इसका उपयोग चंद्र आयनमंडल में इलेक्ट्रॉन घनत्व के अस्थायी विकास का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।

लैंडर- इसे भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम ए. साराभाई के नाम पर ‘विक्रम’के रूप में नामित किया गया है। इसका वजन 1,471 किलोग्राम है।

विक्रम पेलोड्स

रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फियर एंड एटमॉस्फियर (RAMBHA)

इसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह के परिवेश का इलेक्ट्रॉन घनत्व, तापमान और सतह के पास चंद्र प्लाज्मा घनत्व (lunar plasma density) के अस्थायी विकास को मापना है।

चंद्राज सरफेस थर्माे-फीजिकल एक्सपेरिमेंट (ChaSTE):

यह चंद्र सतह की ऊर्ध्वाधर तापमान प्रवणता और तापीय चालकता को मापता है।

चंद्र भूकंपीय गतिविधि के लिए साधन (Instrument for Lunar Seismic Activity-ILSA)

इसका प्राथमिक उद्देश्य लैंडिंग साइट के चारों ओर भूकंप प्रवणता को चिह्नित करना है।

रोवरः प्रज्ञान नामक रोवर 6 पहियों वाला एक रोबोट वाहन है, जिसका वजन 27 किलोग्राम है।

प्रज्ञान पेलोड्स

अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS)

इसका प्राथमिक उद्देश्य लैंडिंग स्थल के पास चंद्रमा की सतह की मौलिक संरचना को निर्धारित करना है।

लेजर प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS)

मुख्य उद्देश्य लैंडिंग साइट के पास तत्वों की प्रचुरता की पहचान और उनका निर्धारण करना है।

निष्क्रिय प्रयोग (Passive Experiment)

लेजर रिट्रॉफ्रलेक्टर ऐरे (LRA)

यह पृथ्वी की चंद्र प्रणाली (Earth's Moon system) को समझने और चंद्रमा की आतंरिक संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सहायक है।

  • लॉन्चिंग वाहनः जीएसएलवी एमके- III (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle Mark-III )।
  • जीएसएलवी एमके-III, चंद्रयान-2 को निर्धारित कक्षा में ले गया था। यह तीन चरणीय वाहन भारत का अब तक का सबसे शक्तिशाली लांचर है, जो 4 टन के उपग्रहों को जीटीओ (Geosynchronous Transfer Orbit - GTO) में लॉन्च करने में सक्षम है। इसके घटक हैं: एस 200 सॉलिड रॉकेट बूस्टर (सॉलिड स्ट्रैप-ऑन मोटर्स), एल 110 लिक्विड स्टेज और सी 25 अपर स्टेज (क्रायोजेनिक अपर स्टेज)।

चंद्रयान-2 के चुनौतीपूर्ण पहलू

इस मिशन की कुछ तकनीकी चुनौतियां इस प्रकार हैं:

  • सॉफ्ट लैंडिंगः प्रणोदन प्रणाली में थ्रोटलेबल इंजन (throttleable engines) शामिल हैं, जो सॉफ्ट लैंडिंग को लैंडिंग सुनिश्चित करता है।
  • मिशन प्रबंधनः इसमें विभिन्न चरणों का प्रबंधन शामिल है, जिसमें प्रोपेलेंट, इंजन, ऑर्बिट एंड ट्रैजेक्टरी डिजाइन शामिल हैं।
  • लैंडर विकासः इसमें नौवहन, मार्गदर्शन एवं नियंत्रण, खतरे से बचने के लिए सेंसर, संचार प्रणाली और सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर लेग मैकेनिज्म।
  • रोवर डेवलपमेंटः लैंडर से अलग होने का तंत्र, रोविंग मैकेनिज्म (चंद्र सतह पर), पावर सिस्टम, थर्मल सिस्टम, कम्युनिकेशन और मोबिलिटी सिस्टम का विकास और परीक्षण।

चंद्रयान-2 मिशन का महत्व

चंद्र सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग और रोविंग सहित प्रमुख प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रदर्शन करना।

  • इस मिशन का उद्देश्य स्थलाकृति, खनिज विज्ञान, सतह रासायनिक संरचना, थर्माे-भौतिक विशेषताओं एवं वातावरण के विस्तृत अध्ययन के माध्यम से चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास की बेहतर समझ के लिए हमारे ज्ञान का विस्तार करना है।