उच्च न्यायालय

संविधान के अनुच्छेद 214 के अंतर्गत सभी राज्यों के लिए एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गयी है, परंतु अनुच्छेद 231 के तहत संसद को अधिकार है, कि वह एक से अधिक राज्य के लिए भी एक ही उच्च न्यायालय रखे। उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश एवं उतने अन्य न्यायाधीश होते हैं जितने आवश्यकतानुसार समय-समय पर राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं (अनुच्छेद 216)। उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश से विचार-विमर्श के पश्चात् नियुक्त होता है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति से पूर्व राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेता है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए वही व्यक्ति योग्य होता है, जो किसी उच्च न्यायालय या अन्य ऐसे न्यायालयों में निरंतर कम से कम दस वर्षों तक अधिवक्ता रहा हो या उसे भारत के न्याययिक कार्य में 10 वर्ष का अनुभव हो। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की अवस्था तक अपने पद पर बने रह सकते हैं। उनके वेतन राज्यों की संचित निधि से दिये जाते हैं एवं उन पर राज्य विधायिकाओं द्वारा विवाद नहीं किया जा सकता है। उनके वेतन एवं अन्य सुविधाओं को उनके कार्यकाल में घटाया नहीं जा सकता।

अधिकार क्षेत्रः उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 225 में इस प्रकार वर्णन किया गया हैः

  1. उच्च न्यायालय अपने क्षेत्रधिकार में आने वाले न्यायालयों तथा न्यायाधिकरणों के कामकाज की देख-रेख करता है और यह सुनिश्चित करता है कि निचली अदालतें अपने दायित्वों का समुचित निर्वाह करें।
  2. सिविल तथा अपराधिक मामलों में अपील के लिए उच्च न्यायालय ही सर्वोच्च न्यायालय होता है।
  3. उच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय होता है और उसे अपनी अवमानना के लिए दंडित करने के अधिकार सहित अभिलेख न्यायालय के सभी अधिकार प्राप्त होते हैं।

न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया

उच्च व उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के पद की गरिमा को सुनिश्चित करने के लिए उन्हें उनके पद से हटाने के संबंध में संविधान में विशेष प्रक्रिया उपबंधित है।

अनुच्छेद 124(4) के अनुसार, ष्टउच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जायेगा, जब तक कि कदाचार या असमर्थता के आधार पर इस तरह से हटाये जाने के लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन पर उसी सत्र में राष्ट्रपति ने अनुमति न दे दी हो।ष्ट अनुच्छेद 124(5) में यह प्रावधान है कि संसद ष्टउपरोक्त प्रावधान हेतु समावेदन के रखे जाने की तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता की जांच और उसे साबित करने की प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन कर सकेगी।ष्ट

संसद ने उपरोक्त संदर्भ में ‘न्यायाधीश (जांच) अधिनियम-1968’ को अधिनियमित किया है। इसके अनुसार न्यायाधीश को उसके पद से हटाने के लिए कम से कम 100 सदस्यों द्वारा लोकसभाध्यक्ष को नोटिस दिया जाना आवश्यक है।

लोकसभाध्यक्ष का यह विशेषाधिकार है कि वह न्यायाधीश को हटाने की मांग को स्वीकार करे या नहीं। यदि लोकसभाध्यक्ष न्यायाधीश को पद से हटाने का नोटिस स्वीकार कर लेता है तो वह न्यायाधीश पर लगाये गये आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन करता है।

यदि जांच समिति की रिपोर्ट में न्यायाधीश पर लगाये गये आरोप सही पाये जायें तो वह रिपोर्ट लोकसभाध्यक्ष को सौंपती है। अध्यक्ष उस रिपोर्ट को संसद के समक्ष विचारार्थ रखता है। यदि संसद विशेष बहुमत से न्यायाधीश को हटाने संबंधी आदेश पारित कर देती है, तो राष्ट्रपति न्यायाधीश को उसके पद से हटा देते हैं।

जनहित याचिकाएं

मुकदमेबाजी के इस नये ढंग की शुरुआत करने वाले न्यायमूर्ति पी-एन- भगवती की राय में लोकहित संबंधी मुकदमेबाजी का उद्देश्य संविधान और समाज के असुरक्षित वर्गों को प्रदत्त कानूनी तथा विशेषाधिकारों का अनुपालन तथा उन्हें सामाजिक न्याय दिलाना है। इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए याचिकादाता, लोकप्राधिकारी तथा न्यायालय- तीनों को अनिवार्यतः सम्मिलित प्रयास करना होता है।