गोपनीयता बनाम प्रभावी प्रशासनः आधार संशोधन अधिनियम

24 जून, 2019 को राज्य सभा द्वारा आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया गया था। इसने 2 मार्च, 2019 को प्रख्यापित अध्यादेश की जगह ली, जिसका उद्देश्य उच्चतम न्यायालय के उस फैसले को निष्प्रभावी करना था, जिसने आधार अधिनियम की धारा 57 को समाप्त कर दिया, जो दूरसंचार कंपनियों और बैंकों जैसी निजी संस्थाओं को आधार डेटा का उपयोग करने की अनुमति देता था।

मुख्य विशेताएं

आधार संख्या धारक का ऑफलाइन सत्यापनः संशोधन किसी व्यक्ति की पहचान के ‘ऑफलाइन सत्यापन’की अनुमति देता है। यह भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा निर्दिष्ट माध्यम से किया जाता है। यह सूचित सहमति (informed consent) पर आधारित होगा और आधार का उपयोग करने वाली एजेंसियां आधार संख्या या बायोमेट्रिक जानकारी एकत्र, उपयोग या संग्रहित नहीं करेंगी।

  • अधिनियम टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) 2002 में संशोधन करता है, ताकि बैंक और दूरसंचार कंपनियां स्वैच्छिक ऑनलाइन प्रमाणीकरण (ई-केवाईसी) या आधार के ऑफलाइन सत्यापन या सरकार द्वारा अधिसूचित किसी भी अन्य दस्तावेज के सत्यापन के माध्यम से अपने ग्राहकों की पहचान निर्धारित कर सकें। इसके अलावा, किसी व्यक्ति के पास आधार नंबर नहीं होने पर भी उसे किसी भी सेवा से वंचित नहीं किया जाएगा।

भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1885

अधिनियम तार और बेतार टेलीग्राफी, टेलीफोन, टेलीटाइप, रेडियो संचार और डिजिटल डेटा संचार के उपयोग को नियंत्रित करता है। भारतीय क्षेत्र में तार और बेतार संचार के सभी प्रकार के माध्यमों की स्थापना, रख-रखाव, संचालन, लाइसेंसिंग और निगरानी के लिए सरकार को विशेषाधिकार प्रदान करता है, जैसे सिम कार्ड जारी करना, सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल, शौकिया रेडियो आदि।

  • टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5 को आमतौर पर वायर-टैपिंग क्लॉज के रूप में जाना जाता है, जो सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक हित में किसी भी लाइसेंस प्राप्त टेलीग्राफ पर आधिपत्य करने का अधिकार सरकार को देता है।
  • पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि टेलीफोन टैपिंग एक व्यक्ति की गोपनीयता पर एक गंभीर आक्रमण है। हालांकि, अधिनियम में उल्लिखित कुछ परिस्थितियों के तहत वैध अवरोधन (interception) किया जा सकता है।