ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियमः लैंगिक न्याय या भेदभाव

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019 संसद द्वारा पारित कर दिया गया है और इसे 5 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई है। यह उन लोगों के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है, जो लैंगिक पहचान के दोहरी धारणा (binary notions of gender) की पुष्टि नहीं करते हैं।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति

यह अधिनियम एक ऐसे व्यक्ति के रूप में एक ट्रांसजेंडर को परिभाषित करता है, जिसका जन्म के समय लिंग उसके कथित लिंग के साथ मेल नहीं खाता है। इसमें ट्रांस-पुरुष, ट्रांस-महिलाएं (ऐसे व्यक्ति को सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी या हार्माेन थेरेपी या लेजर थेरेपी या इस तरह की अन्य थेरेपी से गुजरना पड़ा है), मध्यलिंगी (intersex) विभिन्नता वाले व्यक्ति, जेंडर क्वीर (queer) और ऐसे सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति, जैसे किन्नर, हिजड़ा, अरावनी और जोगता शामिल हैं।

  • जिला मजिस्ट्रेट ट्रांसजेंडर व्यक्ति को पहचान का प्रमाण-पत्र जारी करता है। इस प्रमाण-पत्र को प्राप्त करने वाला व्यक्ति अपने लैंगिक पहचान को ‘ट्रांसजेंडर’के रूप में दर्शाएगा।

पृष्ठभूमि

  • 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। यह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों को मान्यता देता है और उनको अपनी लैंगिक पहचान निर्धारित करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • इसने केंद्र और राज्य को तीसरे लिंग (third gender) को कानूनी मान्यता देने का निर्देश दिया। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि उनके खिलाफ कोई भेदभाव न हो और विशिष्ट सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का निर्माण किया जाए।
  • अगस्त 2016 में सरकार ने लोकसभा में ट्रांसजेंडर विधेयक पेश किया और इसे सामाजिक न्याय और अधिकारिता संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया; जिसने एक साल से भी कम समय में अपनी रिपोर्ट पेश की; लेकिन वह विधेयक 16वीं लोकसभा के विघटन के साथ समाप्त हो गया।
  • वर्तमान अधिनियम ऐसे विधेयक से बना है, जिसे सरकार ने जुलाई 2019 में लोकसभा में पेश किया और उसके बाद संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया।

मुख्य विशेषताएं

अधिनियम में निम्नलिखित प्रावधान हैं:

  • भेदभाव के खिलाफ प्रतिबंधः शैक्षिक संस्थानों, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं आदि में ट्रांसजेंडर व्यक्ति के खिलाफ भेदभाव रोकना।
  • पहचान की मान्यताः ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान करना और उन्हें स्वयं की लिंग पहचान का अधिकार प्रदान करना।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का कल्याणः ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के संचालन का प्रावधान।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषदः अधिनियम ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषद गठित करने का प्रावधान करता है, जो इनके अधिकारों की सुरक्षा से सम्बंधित उपायों पर सलाह देने के साथ ही कल्याणकारी योजनाओं की निगरानी और मूल्यांकन से सम्बंधित होगा। इस परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री के द्वारा की जाएगी।
  • दंडः ट्रांसजेंडर व्यक्ति को शारीरिक या यौन शोषण सहित किसी भी प्रकार का नुकसान पहुंचाने पर सजा का प्रावधान करता है, जो छः महीने से दो साल तक हो सकता है।

अधिनियम का प्रभाव

  • दो प्रमुख सकारात्मक निष्कर्ष हैं: भीख मांगने को अपराध के श्रेणी से हटाना और चिकित्सा जांच समितियों को हटाना।
  • यह अधिनियम ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए प्रशासन की ओर से अधिक जवाबदेह बनाएगा।
  • इस अधिनियम से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को वृहत पैमाने पर लाभ मिलेगा, जो इस तबके के खिलाफ कलंक, भेदभाव और शोषण को कम करेगा। इससे उन्हें समाज की मुख्यधारा में सम्मिलित करने में सहूलियत होगी।
  • इससे समावेशिता को बढ़ावा मिलेगा और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज का उत्पादक सदस्य बनाया जा सकेगा।

आलोचना

यह अधिनियम किसी व्यक्ति को स्वयं की लैंगिक पहचान निर्धारित करने का अधिकार नहीं देता है, केवल प्रमाण-पत्र के आधार पर किसी व्यक्ति के ‘ट्रांसजेंडर’रूप में पहचानने की अनुमति देता है। इसके लिए उन्हें सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी से गुजर कर प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन करना होता है।

  • यह नालसा (NALSA) बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स व्यक्तियों को बिना मेडिकल हस्तक्षेप के अपने लिंग की पहचान करने का संवैधानिक अधिकार है। अदालत ने कहा कि "प्रत्येक व्यक्ति की स्व-परिभाषित यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग है और यह आत्मनिर्णय, गरिमा और स्वतंत्रता के सबसे बुनियादी पहलुओं में से एक है।"
  • यह अधिनियम समुदाय के लिए शिक्षा और रोजगार में आरक्षण पर मौन है।
  • सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि इंटरसेक्स समुदाय को ट्रांसजेंडर्स की परिभाषा में शामिल करना अनुचित है, क्योंकि सभी इंटरसेक्स लोग खुद को ट्रांस-लोगों के रूप में नहीं पहचानते हैं। यह सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ है, जिसने स्वयं को पुरुष, महिला या ट्रांसजेंडर के रूप में पहचान करने के अधिकार को मान्यता दी है। यह इंटरसेक्स व्यक्तियों को ‘ट्रांसजेंडर’के रूप में लैंगिक पहचान प्राप्त करने के लिए मजबूर करेगा।
  • ‘ट्रांस चाइल्ड’के निवास स्थान के निर्धारण (जैविक परिवार या सामुदायिक परिवार के साथ) में अदालत के आदेश की आवश्यकता होगी, यह मानव अधिकार का उल्लंघन है।
  • इनके साथ बलात्कार होने पर सिर्फ छः महीने से दो साल तक सजा का प्रावधान है, जबकि एक महिला के साथ बलात्कार की सजा आजीवन कारावास है। यहां तक कि उनके जीवन को खतरे में डालने पर अधिकतम दो साल की जेल की सजा है। समुदाय ने चिंता जताई है कि उनके खिलाफ अपराधों को ‘छोटा’माना गया है।

सुझाव

ऊपर उल्लिखित समस्याओं को दूर करने के लिए सभी हितधारकों के सक्रिय समर्थन और सर्वसम्मति की आवश्यकता है, ताकि मूल संरचना में वैध या प्रासंगिक परिवर्तन किया जा सके।

  • कानून का ईमानदारी से कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए गठित राष्ट्रीय परिषद में ट्रांसजेंडर समुदाय का प्रतिनिधित्व बढ़ाना।
  • ट्रांसजेंडर समुदाय के आर्थिक सशक्तिकरण के अभाव ने कानून के सभी प्रमुख प्रावधानों को अप्रभावी बना दिया गया है। समुदाय के आर्थिक उत्थान और समाज में उनकी सामाजिक स्थिति को बढ़ाने के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय का शिक्षा और रोजगार में आरक्षण सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा।