शहरी मामले और प्रशासन

पिछले 5 वर्षों से ‘स्वच्छ भारत’, ‘मेट्रो रेल एक्सटेंशन’, ‘ग्रीन मोबिलिटी’, ‘स्मार्ट सिटीज’ आदि शब्द प्रायः सुनने को मिल रहे हैं। ये सभी प्रचलित शब्द शहरी मामलों से संबंधित हैं। शहरी मामले और इसका प्रशासन सर्वोच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से एक है, जिसके लिए वर्ष 2018-19 केंद्रीय बजट का 2% हिस्सा यानी 41,765 करोड़ रुपये के आवंटित किया गया था।

  • भारतीय आबादी का 31.1% (SECC, 2011 के अनुसार) शहरी क्षेत्रों में केंद्रित है। भारत शहरी विकास के मामले में दुनिया में तीसरे (पहला चीन और दूसरा यू.एस.ए.) स्थान पर है। भले ही वह जनसंख्या के आकार में दूसरे स्थान पर है।
  • शहरी जीवन की लालसा और बेहतर जीवन की तलाश ने शहरीकरण की गति को तेज कर दिया है। शहरी संस्थानों को शहरीकरण से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करना मुश्किल हो रहा है।
  • आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को शहरी क्षेत्रों में भीड़भाड़, अपशिष्ट निपटान, प्रदूषण, यातायात भीड़, मलिन बस्तियों के विकास, आवास की जरूरत आदि जैसे समस्याओं से निपटने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।