उपासना स्थल अधिनियम

मई 2022 में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर एक शिवलिंग पाये जाने के दावों के बीच 30 साल से अधिक पुराना उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 [Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991] एक बार फिर चर्चा में है।

महत्वपूर्ण तथ्य: यह अधिनियम किसी भी पूजा/उपासना स्थल की यथास्थिति को बनाए रखता है, जैसा कि वह 15 अगस्त, 1947 को था।

  • अयोध्या में विवादित स्थल को इस अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया था, जिससे इस कानून के लागू होने के बाद भी सुनवाई चलती रही।

अधिनियम के तहत छूट: प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा संरक्षित प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक, पुरातात्विक स्थल और अवशेष।

  • ऐसा वाद जिसे अंतिम रूप से निपटा दिया गया हो।
  • कोई भी विवाद जो पक्षों द्वारा सुलझाया गया हो या किसी स्थान का स्थानांतरण जो अधिनियम के शुरू होने से पहले सहमति से हुआ हो।

अधिनियम के प्रावधान: अधिनियम की धारा 3 किसी भी धार्मिक संप्रदाय के उपसाना स्थल के पूर्ण या आंशिक रूप से परिवर्तन पर रोक लगाती है।

  • धारा 4(1) में घोषणा की गई है कि 15 अगस्त, 1947 तक अस्तित्व में आए उपासना स्थलों की धार्मिक प्रकृति "यथावत बनी रहेगी"।
  • धारा 4(2) कहती है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप के परिवर्तन के संबंध में किसी भी अदालत के समक्ष लंबित कोई कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी।
  • धारा 5 में प्रावधान है कि अधिनियम रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।