मवेशी व्यापार पर प्रतिबंध

हाल ही में पर्यावरण मंत्रलय द्वारा नया कानून लाया गया है ताकि मवेशी व्यापार को नियमित किया जा सके। परंतु इस नये कानून से बफैलो मीट उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है। यह प्रभाव तत्क्षण देखने को मिल सकता है। इस नये नियम से कृषि पर भी अत्यधिक दबाव पड़ेगा क्योंकि नये कानून को पशुधन पर लागू किया जाना है जो कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अवयव है। इस कानून से किसानों पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा क्योंकि पशुधन से प्राप्त उत्पाद का प्रयोग खेती में करते हैं। इसके अलावा इस नये कानून से संघवाद की संकल्पना को भी गहरा धक्का लगेगा क्योंकि यह कानून राज्यों के अधिकारों का भी अतिक्रमण करता है। जानवरों पर अत्याचार की रोकथाम (पशुधन बाजार का नियमन) संबंधी कानून बिक्री के लिए पशुओं की हत्या पर रोक लगाता है। इस कानून के अन्तर्गत भैंसों एवं ऊंटों को पशुधन में शामिल किया गया है। वस्तुतः पशुधन के व्यापार को सीमित किया गया है क्योंकि जब पशुओं की खरीद बिक्री की जाती है तो यह पता लगाना मुश्किल होता है कि इसका उद्देश्य क्या है?

पशुओं का व्यापार शताब्दियों से वैध था परंतु अब इस प्रक्रिया को नौकरशाहों के जिम्मे रखा गया है जिससे लालफीताशाही के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा।

भारत में बफैलो के मीट का व्यापार बड़े पैमाने पर हाे रहा है। वर्ष 2015-16 में बफैलो मीट का निर्यात 26,684 करोड़ तक पहुंच गया था। परंतु इस नये कानून से अब इस व्यापार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं है। दुधारु मवेशी की उत्पादक अवधि सीमित होती है।

अतः पशुधन आधारित अर्थव्यवस्था किसानों द्वारा इन पशुओं के बेचे जाने की क्षमता पर निर्भर करती है। अन्य उद्योग यथा मीट, चमड़ा, साबुन, ऑटोमोबाइल, ग्रीस आदि इन पशुओं अथवा इसके उत्पाद पर निर्भर करती है। अतः पशुधन के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने का अर्थ है दूसरे उद्योगों को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित करना जिसके कारण लाखों रोजगार भी प्रभावित होंगे।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 246 (3) राज्यों को पशुधन के संरक्षण के लिए कानून बनाने का अधिकार देता है। राज्यों के इस अधिकार का अतिक्रमण कर इस नये कानून ने संघ एवं राज्यों के बीच टकराव का रास्ता खोल दिया है। इसके अलावा पशुओं की हत्या को रोकने हेतु निगरानी करने वाले लोगों ने भी पशुधन के व्यापार को नुकसान पहुंचाया है। नया कानून तुरंत लागू नहीं किया जाएगा। अतः सरकार को चाहिए कि इस कानून के आर्थिक एवं राजनीतिक दुष्परिणामों से पहले इसे समाप्त कर दे। इस कानून को इस दलील के आधार पर सही ठहराया जा रहा है कि इससे पशुओं पर होने वाले अत्याचार पर रोकथाम लगेगा। परन्तु यह दलील संतोषप्रद नहीं है।

सच तो यह है कि इस नये कानून से मवेशियों पर अत्याचार बढ़ेगा और किसान अब अवैध तरीके से पशुओं की खरीद बिक्री करेंगे खासकर वैसे पशुओं को जो अनुत्पादक बन चुके हो। भारत में पहले से ही रोजगार सृजन की दर कम है।