आदर्श आचार संहिता का महत्व

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (Free and fair elections) लोकतंत्र का प्रमुख आधार है। इसमें सभी पार्टियों के प्रतिभागियों को चुनाव के दौरानमतदाताओं को अपनी नीतियां और कार्यक्रम पेश करने के लिए एक समान अवसर प्राप्त होता है। इस संदर्भ में, आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) की प्रासंगिकता है। आदर्श आचार संहिता सभी राजनीतिक दलों के अभियान को निष्पक्ष और पार्टियों के बीच स्वस्थ संघर्ष और शांति व्यवस्था सुनिश्चित करता है। इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि सत्तारूढ़ दल केंद्र या राज्यों के किसी भी चुनाव में अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए अपनी आधिकारिक स्थिति का दुरुपयोग न करे।

आदर्श आचार संहिता चुनाव के दौरान पार्टियों और उम्मीदवारों के विशेष आचरण और व्यवहार के लिए मानदंडों का एक सेट है। विशिष्ट तथ्य यह है कि यह एक ऐसा दस्तावेज था जो राजनीतिक दलों की सहमति के साथ उत्पन्न और विकसित हुआ।इसकी उत्पत्ति 1960 में बनी हुई है जब 1960 में केरल में विधानसभा चुनाव के लिए इसके एक छोटे से सेट 'Dos and Don'ts' के रूप में शुरू किया गया।

चुनाव आयोग की भूमिका

चुनाव आयोग स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव कराने के लिए अपने संवैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन में उम्मीदवारों सहित राजनीतिक दलों के लिए चुनाव आचार संहिता का पालन करना सुनिश्चित करता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 में यह सुनिश्चित किया जाता है कि चुनाव उद्देश्यों के लिए आधिकारिक मशीनरी का दुरुपयोग नहीं किया जाये। इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि मतदाताओं को रिश्वत और प्रलोभन, धमकियों जैसे चुनावी अपराध, भ्रष्टाचार और भ्रष्ट व्यवहार को सभी तरह से रोका जाये।

आचार संहिता को वैधानिक दर्जाः चुनाव आयोग की राय

कुछ हिस्सों में आदर्श आचार संहिता को वैधानिक दर्जा देने की बात की जाती है। लेकिन चुनाव आयोग आदर्श आचार संहिता को ऐसा दर्जा देने के पक्ष में नहीं है। निर्वाचन आयोग के अनुसार कानून की पुस्तक में आदर्श आचार संहिता को लाना केवल अनुत्पादक (प्रतिकूल) होगा। हमारे देश में निश्चित कार्यक्रम के अनुसार सीमित अवधि में चुनाव कराये जाते हैं। सामान्यतः किसी राज्य में आम चुनाव निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित करने की तिथि से लगभग 45 दिनों में कराया जाता है। इस तरह आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन संबंधी मामलों को तेजी से निपटाने का महत्व है।

यदि आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को रोकने तथा उल्लंघनकर्ता के विरुद्ध चुनाव प्रक्रिया के दौरान सही समय से कार्रवाई नहीं की जाती तो आदर्श आचार संहिता का पूरा महत्व समाप्त हो जाएगा तथा उल्लंघनकर्ता उल्लंघनों से लाभ उठा सकेगा। आदर्श आचार संहिता को कानून में बदलने का अर्थ यह होगा कि कोई भी शिकायत पुलिस/मजिस्ट्रेट के पास पड़ी रहेगी। न्यायिक प्रक्रिया संबंधी जटिलताओं के कारण ऐसी शिकायतों पर निर्णय संभवतः चुनाव पूरा होने के बाद ही हो सकेगा।

आदर्श आचार संहिता विकास गतिविधियों में बाधक नहीं

राजनीतिक दलों द्वारा अक्सर यह शिकायत सुनने को मिलती है कि आदर्श आचार संहिता विकास गतिविधियों की राह में बाधा उत्पन्न करती है। लेकिन आदर्श आचार संहिता के सीमित अवधि में लागू किये जाने पर भी जारी विकास गतिविधियां रोकी नहीं जाती और उन्हें बिना किसी बाधा के आगे जारी रखने की अनुमति दी जाती है और ऐसी नई परियोजनाएं जो शुरू नहीं हुई हैं चुनाव पूरी होने तक स्थगित कर दी जाती हैं। ऐसे काम जिनके लिए अकारण प्रतीक्षा नहीं की जा सकती जैसे आपदा की स्थिति में राहत कार्य आदि उन्हें मंजूरी के लिए चुनाव आयोग के समक्ष भेजा जा सकता है।

1962 में लोकसभा के आम चुनाव में चुनाव आयोग ने सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को आदर्श आचार संहिता परिचालित किया और राज्य सरकारों से अनुरोध किया गया कि वे संहिता को स्वीकार करें। 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में आदर्श आचार संहिता का पालन किया गया। आदर्श आचार संहितामौजूदा स्वरुप-1991 में आदर्श आचार संहिता को समेकित और अपने मौजूदा रूप में पुनः जारी किया गया था।

आदर्श आचार संहिता को उच्चतम न्यायालय से न्यायिक मान्यता मिली है। आदर्श आचार संहिता के प्रभाव में आने की तिथि को लेकर उत्पन्न विवाद पर भारत संघ बनाम हरबंस सिंह जलाल तथा अन्य में 26 अप्रैल, 2001 को उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि चुनाव तिथियों की घोषणा संबंधी निर्वाचन आयोग की प्रेस विज्ञप्ति या इस संबंध में वास्तविक अधिसूचना जारी होने की तिथि से आदर्श आचार संहिता लागू होगी। उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि आयोग द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के समय से आदर्श आचार संहिता लागू होगी। प्रेस विज्ञप्ति जारी होने के दो सप्ताह बाद अधिसूचना जारी की जाती है।

उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय से आदर्श आचार संहिता के लागू होने की तिथि से जुड़ा विवाद हमेशा के लिए समाप्त हो गया। इस तरह आदर्श आचार संहिता चुनाव घोषणा की तिथि से चुनाव पूरे होने तक प्रभावी रहती है।