स्पेशल कोर्ट की प्रासंगिकता

उच्चतम न्यायालय द्वारा केंद्र को दिशा निर्देश दिया गया है जिसमें केंद्र सरकार से यह कहा गया है कि वह राजनीतिज्ञों पर चल रहे मुकदमों के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन के लिए एक योजना तैयार करे। वस्तुतः न्यायालय द्वारा राजनीति को अपराध से मुक्त करने की दिशा में यह एक मील का पत्थर है। न्यायालय ने ऐसे कई निर्णय दिए हैं जो कानून निर्माताओं तथा सरकारी पद प्राप्त व्यक्तियों को भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार ठहराता है। हाल के वर्षों में अपराधीक चुनावी दंगल में धड़ल्ले से भाग लेते रहे हैं। वर्ष 2014 में न्यायालय ने चुने हुए राजनीतिक प्रतिनिधि के मामले को एक वर्ष में निपटाने का आदेश दिया था। न्यायालय अब इस बात के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है कि एक ऐसी न्यायिक तंत्र की व्यवस्था हो जो एक निश्चित समय सीमा में राजनीतिज्ञों के मामलों का निपटारा करे। न्यायालय के इस आदेश के मुताबिक केंद्र सरकार फंड के बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी जो स्पेशल कोर्ट के गठन के लिए आवश्यक होगा। साथ ही इस कार्य में राज्य सरकारों को भी संलग्न करना है।

सच तो यह है कि राजनीति से जुड़े लोगों अर्थात भूतपूर्व एमएलए/एमपी या वर्तमान में सांसद/विधानसभा सदस्य के खिलाफ चल रहे मामलों की सुनवाई अत्यंत धीमी होती है। ऐसी स्थिति में प्रभावशाली राजनीतिज्ञों को काफी समय मिल जाता है और वे बार-बार बेल प्राप्त करने, सुनवाई को टालने आदि में सफल हो जाते हैं। कुछ बहुत प्रसिद्ध नेताओं के मामले सफलतापूर्वक निपटाए गए हैं तथा उन्हें सजा भी हुई है लेकिन यह अपवाद है सामान्य बात नहीं। प्रभावशाली नेताओं के लिए फौजदारी मामले कुछ खास महत्व के नहीं होते बल्कि वे इसे एक तमगा समझते हैं जिसका चुनावी फायदा लेने में वे सफल भी हो जाते हैं।

हालांकि स्पेशल कोर्ट का गठन ऐसे मामलों को निपटाने का आदर्श तरीका नहीं हो सकता। वर्ष 2013 के एक अहम निर्णय में न्यायालय द्वारा अभियुक्त सांसद/विधान सभा सदस्य को तत्क्षण हटाने पर कानूनी रोक को हटा दिया था। स्पेशल कोर्ट के गठन के कारण अभियुक्त के विचार से यह इलजाम लगाया जा सकता है कि उन्हें जबरन बलि का बकरा बनाया जा रहा है तथा उसके खिलाफ भेदभाव बरता जा रहा है। कई तरह के अपराधों के लिए पहले से ही स्पेशल कोर्ट की व्यवस्था है। उदाहरण के लिए भ्रष्टाचार, आतंकवाद, (लैंगिक अपराध, बच्चों के प्रति) आदि के मामले स्पेशल कोर्ट द्वारा ही निपटाए जाते हैं।

राजनीतिज्ञों के लिए अलग से कोर्ट का गठन भेदभावपूर्ण है। सरकारी अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार की सुनवाई के लिए भी पहले से स्पेशल कोर्ट की व्यवस्था है। यह एक विचारणीय प्रश्न है कि क्या भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत सुनवाई के लिए अलग से व्यवस्था कराना सिर्फ इसलिए की अभियुक्त राजनीतिज्ञ है कहां तक उचित है। हालांकि इसके लिए कानूनी और नैतिक औचित्य प्रस्तुत किया जा सकता है।

गंभीर मामलों में वैसे लोगों के लिए अपराध की सुनवाई के लिए कुछ खास व्यवस्था की जा सकती है जो लोक सेवक हैं अर्थात राजनेता हैं या सरकारी पद पर है। इससे राजनेताओं को ही सर्वप्रथम इससे फायदा होगा क्योंकि उनका मामला जल्द ही हल हो जाएगा भले ही वो दागी हों। पहले भी एक वर्ष के अंतर्गत ऐसे मामलों के निपटारे के आदेश का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा था। स्पेशल कोर्ट इस मुद्दे का समाधान शायद कर भी दे लेकिन एक आदर्श हल यही है कि ऐसे मामलों की त्वरित कार्रवाई की जाए और वो भी सामान्य न्यायालय में।