निजताः एक मौलिक अधिकार

किसी भी व्यक्ति की निजता अब उसका मौलिक अधिकार है एवं निजता का उल्लंघन उसके मौलिक अधिकारों का हनन। यह बात कहने में जितनी सीधी है उतनी सामान्य है नहीं। क्योंकि 24 अगस्त, 2017 से यह शब्द एक ऐसे अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है जो अब तक चली आ रही तमाम बहसों पर अपने प्रभाव छोड़ेगा चाहे वह आजादी की मांग हो, भोजन की पसंद हो, अंतर-जातीय/धार्मिक विवाह हों या फिर चाहे पहचान संबन्धित मामले ही क्यों न हों।

स्मरणीय है कि निजता के अधिकार का मुद्दा केंद्र सरकार की तमाम समाज कल्याण योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए आधार को अनिवार्य करने संबंधी केंद्र सरकार के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठा था। जिसके विरोध में अलग अलग याचिकाएं दायर की गई थीं, जिनमें कहा गया था कि कई योजनाओं में आधार कार्ड अनिवार्य किया जाना दरअसल व्यक्ति की निजता के अधिकारों का हनन है, आधार में बायोमेट्रिक आधारित आकड़ों के सार्वजनिक हो जाने के खतरे भी हैं।

इन याचिकाओं के संदर्भ में अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जब तक आधार कार्ड मामलों पर सुनवाई पूरी नहीं हो जाती तब तक सरकार को किसी भी रूप में आधार को अनिवार्य कर लोगों की निजता को खतरे में नहीं डालना चाहिए। इसके बावजूद आधार परियोजना के द्वारा भारत सरकार अब तक 90 से अधिक योजनाओं में आधार कार्ड को अघोषित रूप से अनिवार्य कर चुकी है। न्यायालय ने कहा कि आधार कार्ड पर फैसले के पहले इस विषय पर बहस किया जाना चाहिए कि निजता को किस दायरे में रखा जा सकता है, और सरकार का इस पर कितना नियंत्रण हो सकता है? अतः निजता को अति महत्वपूर्ण विषय मानते हुए, इस पर सुनवाई हेतु प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संवैधानिक पीठ का गठन किया गया, जिसमें प्रधान न्यायाधीश के अलावा जस्टिस जे- चेलमेश्वर, जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस राजेश कुमार अग्रवाल, जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे, जस्टिस डी-वाई- चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस- अब्दुल नजीर शामिल हैं।

सर्वाेच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने निजता के अधिकार पर दिए गए फैसले में कहा कि ‘यद्यपि संविधान में निजता के अधिकार के बारे में कहीं स्पष्ट उल्लेख नहीं है, किन्तु निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है। व्यक्ति तब तक स्वतंत्रतापूर्वक जीवन नहीं जी सकता जब तक कि उसको निजता का अधिकार न मिला हो। इसलिए जीवन और निजी स्वतंत्रता का अधिकार एक दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते हैं। ये वो अधिकार हैं जो मनुष्य के गरिमापूर्ण अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा हैं। ये अधिकार संविधान ने नहीं गढ़े हैं और न ही जीवन और स्वतंत्रता संविधान ने दी है बल्कि संविधान ने इन्हें मान्यता दी है साथ ही इन अधिकारों में राज्य के दखल देने की सीमा भी तय की है।

निजता के अधिकार को संविधान संरक्षण देता है, यह जीवन और निजी स्वतंत्रता की गारंटी से पैदा होता है। निजता का अधिकार, स्वतंत्रता और सम्मान की गारंटी देने वाले संविधान के अन्य मौलिक अधिकारों से भी मिलता है। निजता के संवैधानिक अधिकार को कानूनी मान्यता देना संविधान में कोई बदलाव करना नहीं है। और न ही कोर्ट कोई ऐसा संवैधानिक काम कर रहा है, जो संसद की जिम्मेदारी थी। निजता की बुनियाद में निजी रुझानों या झुकाव को बचाना, पारिवारिक जीवन की पवित्रता, शादी, बच्चे पैदा करना, घर और यौन रुझान जैसी चीजें शामिल हैं। एकांत में अकेले रहने का अधिकार भी निजता है। निजता किसी व्यक्ति की निजी स्वायत्ता की सुरक्षा करती है और जिंदगी के हर अहम पहलू को अपने तरीके से तय करने की आजादी देती है।

अगर कोई व्यक्ति सार्वजनिक जगह पर हो तो इसका मतलब निजता के अधिकार का खत्म हो जाना या छोड़ देना नहीं है। संवैधानिक पीठ ने सर्वाेच्च न्यायालय के उन दो पुराने फैसलों को भी खारिज कर दिया जिनमें निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था। यह फैसले 1954 में एमपी शर्मा मामले में छह जजों की पीठ ने और 1962 में खड़ग सिंह केस में आठ जजों की पीठ ने दिए थे। इन दोनों मामलों को केंद्र सरकार की तरफ से निजता के मौलिक अधिकार न होने के साक्ष्य के तौर पर संदर्भित किया गया था। सर्वाेच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि निजता के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पहलू हैं।

नकारात्मक पहलू राज्य को नागरिकों के जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का हनन करने से रोकता है और सकारात्मक पहलू राज्य पर इसके संरक्षण की जिम्मेदारी देता है। सूचना, जिससे कि आधार कार्ड भी संबंधित है के बारे में न्यायालय ने कहा कि ‘सूचना की निजता, निजता के अधिकार का ही एक चेहरा है। निजता को न केवल सरकार से खतरा है बल्कि गैर-सरकारी तत्वों से भी खतरा है। हम सरकार से ये सिफारिश करते हैं कि डेटा सुरक्षा के लिए कड़ी व्यवस्था की जाए’।