प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) किसी देश के दीर्घकालीन आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाता है। कारण है, यह न केवल पूंजी का एक बेहतर ड्डोत है अपितु प्रौद्योगिकी अंतरण, आधारभूत संरचना की मजबूती, उत्पादकता में वृद्धि और नए रोजगार अवसर सृजन के जरिए घरेलू अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा का विस्तार भी करती है। एफडीआई, निर्यात को बढ़ाने में भी अपना महती भूमिका अदा करता है। भारत में एफडीआई को विकास के एकसाधन के रूप में जाना जाता है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा

एफडीआई/इक्विटी का%

प्रवेश मार्ग

रक्षा विनिर्माण

100

49% तक स्वतः अनुमोदित मार्ग शेष FIPB से अनुमति के बाद

इंश्योरेंश

49

स्वतः अनुमोदित मार्ग से

दूरसंचार

100

49% तक स्वतः अनुमोदित मार्ग से एवं शेष FIBP से अनुमति के बाद

पेंशन व्हाइट लेबल

49

स्वतः अनुमोदित मार्ग से

एटीएम ऑपरेशन गैर बैंकिंग वित्तीय

100

स्वतः अनुमोदित मार्ग

संस्थान

100

स्वतः अनुमोदित मार्ग

ई.कामर्स एकल ब्रांड उत्पाद

100

स्वतः अनुमोदित मार्ग

के खुदरा स्यापार

100

49 तक स्वतः अनुमादित मार्ग से एवं शेष FIBP की अनुमति में शेष FIBP की अनुमति में

भारत सरकार की एफडीआई नीति का उद्देश्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में उछाल लाकर विकास प्रक्रिया को गति देना है। भारत में एफडीआई प्रवाह बढ़ने का मुख्य कारण है उच्च स्तर के कुशल एवं कम लागत वाले मैन पॉवर की मौजूदगी। इस तरह के मैन पॉवर की मौजूदगी से बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग, नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग एवं इंजीनियरिंग प्रोसेस आउटसोर्सिंग वाले क्षेत्रें में एफडीआई का अन्तर्प्रवाह पहले बढ़ रहा था लेकिन यूरोपीय वित्तीय संकट, आर्थिक वृद्धि व शेयर मार्केट में गिरावट आदि के कारण इसमें फिलहाल कमी आई है।

भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पूंजी प्रवाह के लिए सर्वाधिक आकर्षक माध्यम है क्योंकि इससे अद्यतन प्रौद्योगिकी आने के साथ अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है। हाल के वर्षों में भारत एक आकर्षक निवेश स्थल के रूप में उभरा है जिसका कारण उदारीकृत निवेश माहौल, आर्थिक विकास के अवसरों हेतु स्थिर तथा ठोस आर्थिक और राजनीतिक आधार होना है जबकि विदेशी पूंजी निवेश भारतीय कॉरपोरेट की बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा को प्रदर्शित करता है।

इस प्रकार एफडीआई के द्वैत प्रभाव का आशय है कि जहां एक ओर विश्व भारत में बाजार संभावना को ध्यान में रख रहा है, वहीं दूसरी ओर भारतीय कंपनियां विदेशों में तेजी से अधिग्रहण करने में सफल रही हैं। नीतियों, बेहतर आधारभूत संरचना और वित्तीय क्षेत्र में सुधारों से भारत में एफडीआई अन्तर्प्रवाह में औसतन बढ़ोतरी हुई है। यह भारत में अपेक्षाकृत बेहतर निवेश माहौल और एफडीआई को आकर्षित करने हेतु निरंतर किए गए उदारीकृत उपायों को दर्शाता है।

अंकटाड की विश्व निवेश रिपोर्ट 2015 के अनुसार भारत में एफडीआई अन्तर्प्रवाह वर्ष 2014 मेंएक वर्ष पहले की तुलना में 22% बढ़कर 34 अरब डॉलर तक पहुंच गया। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की बड़ी कंपनियों के लिए चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरा सबसे आकर्षक निवेश स्थल बनकर उभरा है। दक्षिण एशिया में भारत प्रमुख रूप से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हासिल करने वाला शीर्ष देश रहा है। भारत में सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मॉरीशस के रास्ते आया है।

क्या है एफडीआई?

सामान्यतः किसी एक देश की कंपनी द्वारा दूसरे देश में किया गया निवेश ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ कहलाता है। ऐसे निवेश से निवेशकों को दूसरे देश की उस कंपनी के प्रबंधन में कुछ हिस्सा प्राप्त हो जाता है जिसमें उनका पैसा निवेश हुआ रहता है। किसी निवेश को एफडीआई की श्रेणी में शामिल करने के लिए कम से कम कंपनी में विदेशी निवेशकों को 10% शेयर खरीदना पड़ता है।

इसके साथ उसे निवेश वाली कंपनी से मताधिकार भी हासिल करना पड़ता है। एफडीआई की दो विधाएं होती हैं. इनवार्ड और आउटवार्ड। इनवार्ड एफडीआई में विदेशी निवेशक भारत में कंपनी शुरू कर वहां के बाजार में प्रवेश कर सकता है। इसके लिए वह किसी भारतीय कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम बना सकता है या पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी यानी सब्सिडियरी आरंभ कर सकता है। अगर वह ऐसा नहीं करना चाहता तो यहां इकाई की विदेशी कंपनी का दर्जा बरकरार रखते हुए भारत में संपर्क परियोजना या शाखा कार्यालय खोल सकता है।