समुद्री एवं तटीय सुरक्षा ढांचा

तटीय पुलिस का क्षेत्रधिकार समुद्र (सीमान्तर्गत जलक्षेत्र) में 12 नाविक मील तक है और तट रक्षक का क्षेत्रधिकार बेसलाइन से अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) की सीमाओं तक अर्थात समुद्र में 0 से 200 नाविक मील तक है। 200 नाविक मील से आगे का क्षेत्र (हाई सी) भारतीय नौसेना के क्षेत्रधिकार के अन्दर आता है समस्त तट पर त्रि-स्तरीय तटीय सुरक्षा समुद्री पुलिस, भारतीय तट रक्षक और भारतीय नौसेना द्वारा उपलब्ध कराई जाती है। भारतीय नौसेना को समग्र समुद्री सुरक्षा के लिए उत्तरदायी प्राधिकरण के रूप में नामित किया गया है, जिसमें तटीय सुरक्षा एवं अपतटीय सुरक्षा शामिल है।

तट रक्षक को तट रक्षक अधिनियम, 1978 के तहत अपने सभी समुद्री जोनों में भारत के हितों की सुरक्षा करने का अधिदेश दिया गया है। भारतीय तट रक्षक को तटीय पुलिस द्वारा गश्त लगाए जाने वाले क्षेत्रें सहित सीमान्तर्गत जलक्षेत्र में तटीय सुरक्षा के लिए उत्तरदायी प्राधिकरण के रूप में भी नामित किया गया है। तट रक्षक महानिदेशक को तटीय कमांड के रूप में पदनामित किया गया है और वे तटीय सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों में केन्द्र और राज्य की एजेंसियों के बीच समग्र समन्वय के लिए उत्तरदायी हैं।

भारत की तटरेखा

भारत की तटरेखा 7,516.6 कि.मी. है जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिन्द महासागर और पश्चिम में अरब महासागर सहित मुख्यभूमि और द्वीपों से घिरी है। इस तटरेखा पर नौ राज्य अर्थात गुजराज, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल तथा चार संघ राज्य क्षेत्र अर्थात दमन एवं दीव, लक्षद्वीप, पुडुचेरी और अण्डमान एवं निकोबार द्वीपसमूह अवस्थित है। इन राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रें में द्वीपों सहित तटरेखा की लम्बाई नीचे दी गई हैः

क्रम सं.

राज्य/संघ राज्य क्षेत्र

लम्बाई (कि-मी-)

1

गुजरात

1214.70

2

महाराष्ट्र

652.60

3

गोवा

101.00

4

कर्नाटक

208.00

5

केरल

569.70

6

तमिलनाडु

906.90

7

आंध्र प्रदेश

963.70

8

ओडिसा

476.70

9

पश्चिम बंगाल

157.50

10

दमन और दीव

45.50

11

लक्षद्वीप

132.00

12

पुडुचेरी

47.60

13

अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह

1962.00

कुल

7516.60

तट रक्षक को तट पर कार्यरत विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय और आसूचना के आदान-प्रदान हेतु क्रियात्मक प्रबंध मुहैया कराने के लिए तट संबंधी अग्रणी आसूचना एजेंसी के रूप में कार्य करने के लिए नामित किया गया है।

समुद्री सीमा का प्रबंधन

  • वर्ष 2008 के मुंबई हमले (26/11), पंजाब स्थित पठानकोट एयरफोर्स बेस पर आतंकी हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादियों ने भारत की समुद्री सीमा से भारत में प्रवेश किया था जो भारत के समुद्री सीमा प्रबंधन पर प्रश्न चिन्ह लगता है।
  • सागरों और महासागरों पर देशों के अधिकार और जिम्मेदारियां निर्धारित करने के लिए विश्व समुदाय ने एक संधि की हुई है जिसे ‘संयुक्त राष्ट्र की समुद्री कानून संधि (United Nations Convention on the Law of the Sea: UNCLOS)’ के नाम से जाना जाता है। UNCLOS एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो विश्व के सागरों और महासागरों पर देशों के अधिकार और जिम्मेदारियां निर्धारित करता है और समुद्री साधनों के प्रयोगों के लिए नियम स्थापित करता है। यह संधि सन् 1982 में तैयार हो गयी लेकिन 60 देशों द्वारा इस पर हस्ताक्षर करने पर ही लागू होने की प्रारंभिक शर्त के कारण यह सन् 1994 से लागू हुई। सन् 2011 तक 161 देश इस पर हस्ताक्षर कर चुके थे। इस संधि के प्रमुख प्रावधान निम्नलििखत हैं-
  • आंतरिक जल (Internal waters): जब हम समुद्र किनारे के ढेढ़े-मेढ़े तट को मिलाते हुए एक काल्पनिक सीधी रेखा खींचते हैं, तो उस रेखा को आधार रेखा कहा जाता है। स्थलीय भाग व आधार रेखा के बीच जो समुद्री जल पाया जाता है उसे ‘आंतरिक जल’ कहते हैं। यह वे सारे जलाशय और नदियाँ होती हैं जो किसी देश की जमीनी सीमा के भीतर हों। इनपर राष्ट्र अपनी मन-मर्जी के नियम बना सकते हैं। किसी अन्य राष्ट्र की नौका को इनमें घुसने का या इनका प्रयोग करने का कोई अधिकार नहीं है।
  • क्षेत्रीय जल (Territorial waters): आधार रेखा से 12 समुद्री मील के भीतर के क्षेत्र को क्षेत्रीय जल या उस राष्ट्र की प्रादेशिक समुद्री सीमा कहते हैं। इसमें वह राष्ट्र अपना कानून बना सकता है और जिस साधन का जैसे चाहे प्रयोग कर सकता है। विदेशी नौकाओं को इस क्षेत्र से निष्छल परिवहन करने का अधिकार है, जिसका अर्थ है कि वे बिना रुके सीधे इस क्षेत्र से होकर अपनी मंजिल तक जा सकते हैं। उस राष्ट्र की सुरक्षा और शान्ति को किसी भी तरह से भंग करने का या भंग करने की धमकी देने का कोई अधिकार नहीं है। आपातकालीन स्थितियों में राष्ट्र को इस निष्छल परिवहन पर भी कुछ समय तक रोक लगाने का अधिकार है।
  • संलग्न क्षेत्र (Contiguous zone): क्षेत्रीय जल से 12 समुद्री मील आगे तक (यानि तट से 24 समुद्री मील आगे तक) राष्ट्रों को अधिकार है के वे चार पहलुओं पर अपने कानून लागू कर सकें - प्रदूषण, कर (लगान), सीमाशुल्क और अप्रवासन (इम्मीग्रेशन), इस क्षेत्र को संलग्न क्षेत्र कहते हैं।
  • अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive economic zones): क्षेत्रीय जल के अंत से 200 समुद्री मील बाहर के क्षेत्र में केवल उसी राष्ट्र का साधनों पर आर्थिक अधिकार है, चाहे वह समुद्र के फर्श से या उसके नीचे से तेल या अन्य साधन निकालना हो, चाहे वह मछली पकड़ने का अधिकार हो। इस क्षेत्र से विदेशी नौकाएं और विमान खुली छूट के साथ निकल सकते हैं। यहां विदेशी राष्ट्रों और कम्पनियों को संचार तारे भी समुद्र के फर्श पर लगाने का अधिकार है।
  • उच्च सागर (High Sea): अनन्य आर्थिक क्षेत्र के बाहर का क्षेत्र उच्च सागर कहलाता है।

भारत की समुद्री सीमा की लम्बाई 7,516.6 किमी है जोकि दक्षिण-पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और सुदूर दक्षिण-पूर्व में थाइलैंड और इंडोनेशिया से लगती है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार के साथ भारत की स्थलीय सीमा और समुद्री सीमा दोनों जुड़ी हैं। भारत अपने कुल अंतरराष्ट्रीय वस्तु व्यापार का 95 प्रतिशत हिस्सा समुद्री परिवहन के द्वारा आयात-निर्यात करता है। 26/11 और पठानकोट एयरफोर्स बेस जैसे हमले भी समुद्री सीमा के महत्व पर प्रकाश डालते हैं।

26 नवंबर को हुए मुंबई आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं, जिनके तहत भारतीय तट रक्षक (आईसीजी) को समुद्री सीमा में तटीय सुरक्षा के लिए जिम्मेदार प्राधिकरण के रूप में नामित किया गया है। भारतीय नौसेना तटीय सुरक्षा और अपतटीय सुरक्षा सहित समुद्री सुरक्षा के लिए समग्र रूप से जिम्मेदार है। उल्लेखनीय है कि भारतीय तटों की सुरक्षा राज्य समुद्री पुलिस, भारतीय तट रक्षक और भारतीय नौसेना की त्रि-स्तरीय प्रणाली द्वारा सुनिश्चित की जाती है। भारत द्वारा समुद्री सीमा की सुरक्षा के लिए किये गये प्रयास निम्नलिखित हैं।

  • द्वीपसमूहों के समग्र विकास के लिए 1382 भारतीय ऑफ-शोर द्वीपसमूहों की पहचान की गई है।
  • द्वीपसमूहों के सैटेलाइट इमेजरीज एवं संपूर्ण जियोस्पेशियल डाटाबेस वाले आइलैंड इनफॉरमेशन सिस्टम नामक सुरक्षित वेब पोर्टल विकसित किया गया है।
  • 26/11 के बाद राष्ट्रीय कमांड नियंत्रण संचार और खुफिया नेटवर्क (NCCCIN or NC3IN) बनाया गया हैः इसका मुख्यालय गुरुग्राम में है। इसके जरिये समुद्री क्षेत्रें में लगाए गये राडार और कैमरों की मदद से तटीय सुरक्षा की निगरानी की जाती है।
  • 26/11 के बाद तटरक्षक बल को अधिक शक्तियाँ दी गई हैं क्षेत्रीय जल की जिम्मेदारी भी तटरक्षक बल को दे दी गई है। भारतीय तट रक्षक बल साल में दो बार तटीय सुरक्षा अभ्यास का आयोजन करता है, जिसमें सभी तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सभी हितधारक शामिल होते हैं। भारतीय तटरक्षक, तटीय सुरक्षा के सभी मामलों में केंद्र एवं राज्य के मध्य समग्र रूप से समन्वय का कार्य करती है।
  • तटीय पुलिस के प्रशिक्षण के लिए गुजरात में राष्ट्रीय समुद्री पुलिस प्रशिक्षण संस्थान और राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस प्रशिक्षण अकादमियों में राज्य समुद्री पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना को सैद्धांतिक मंजूरी दी गई है।
  • तटीय सुरक्षा के सभी पहलुओं को ध्यान रखते हुए उनकी निगरानी और समन्वय तंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए सरकार ने राज्य और जिला स्तर पर एक संस्थागत तंत्र तैयार किया है और साथ ही तटीय सुरक्षा की समीक्षा हेतु गृह मंत्रलय की संचालन समिति को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती प्रदान की गई है।
  • तटीय राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के तटीय क्षेत्रें में गश्त लगाने और निगरानी से संबंधित बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने के उद्देश्य से तटीय सुरक्षा योजना का संचालन किया जा रहा है।
  • इस योजना के तहत सभी तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तटीय पुलिस स्टेशनों, चेक पोस्ट, चौकियों और पुलिस की नावों को बांधने के लिए घाटों के निर्माण हेतु सहायता प्रदान की जाती है। वर्तमान में, इस योजना के द्वितीय चरण का कार्य प्रगति पर है। मछुआरों की नावों को स्वचालित पहचान प्रणाली से जोड़ा गया है। तटीय क्षेत्रें में विभिन्न बलों के बीच संयुक्त अभ्यास किया जा रहा है।
  • अवैध आवाजाही पर नजर रखने के लिए मछली पकड़ने की नौकाओं के पंजीकरण को अनिवार्य बना दिया गया है और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर मछुआरों को संवेदनशील बनाने के लिए भारतीय तट रक्षक द्वारा समुदायों से बातचीत के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। और यदि नौका का आकार 20 मीटर से अधिक है तो GIS टैग लगाना अनिवार्य किया गया है।
  • तटीय सुरक्षा प्रणाली को सत्यापित करने, परिचय पत्र एवं पंजीकरण दस्तावेज उपलब्ध कराने तथा समुद्र में मछुआरों को जागरूक करने के लिए नियमित रूप से बोर्डिंग ऑपरेशन किये जाते हैं।
  • मछुआरों एवं तटीय आबादी को सुरक्षा के विषय में संवेदनशील बनाने हेतु समय-समय पर भारतीय तटरक्षक द्वारा सामुदायिक अंतर्व्यवहार कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। प्रशिक्षित होकर ये लोग तटीय सुरक्षा के ढांचे में आँख व कान के सदृश काम करते हैं।
  • वर्तमान समय में भारतीय तटरक्षक बल द्वारा निर्दिष्ट क्षेत्र की निगरानी पोतों एवं वायुयानों द्वारा की जाती है। प्रचुर प्राकृतिक एवं आर्थिक संसाधनों से परिपूर्ण 2 मिलियन वर्ग किमी के अनन्य आर्थिक क्षेत्र जो भारत के हिस्से में आता है उसका, भारतीय तटरक्षक दल पूरे वर्ष निगरानी करता है। अनन्य आर्थिक क्षेत्र में निगरानी के दौरान पोत एवं वायुयान अपतटीय ऑयल प्लेटफॉर्मों, वाणिज्य पोतों, मत्स्य नौकाओं के मध्य दुहरा संचार स्थापित किया जाता है।
  • अपतटीय सुरक्षा प्रणाली को उच्चकोटि एवं सरल बनाने तथा अपतटीय संस्थानों पर शांति काल के दौरान आतंकवाद एवं विध्वंस जैसी गतिविधियों के खतरों की पहचान करने हेतु महानिदेशक, भारतीय तटरक्षक की अध्यक्षता में अपतटीय सुरक्षा समन्वय समिति का गठन किया गया है।
  • नौवाहन विभाग (अधिकार क्षेत्र और समुद्री दावों के निपटारे) अधिनियम, 2017 the admiralty (Jurisdiction and settlement of maritime claims) act) 2017 को 9 अगस्त, 2017 को राष्ट्रपति ने अपनी मंजूरी प्रदान कर दी है।

इसके अतिरिक्त जून 2016 में मुंबई में हुई तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के गृह मंत्रियों, मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) की बैठक में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने समुद्री तट, बंदरगाह, जैसे महत्वपूर्ण स्थानों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय तटीय सीमा पुलिस बल के गठन का सुझाव दिया क्योंकि समुद्री पुलिस का कार्य विशेषज्ञता का कार्य होता है। केंद्रीय गृह मंत्रलय ने अगस्त 2017 में भारत के समुद्र के निकट के खतरों से जूझने के लिए भारतीय तट रक्षक दल (आईसीजी) के गठन के फैसले की घोषणा की है। यह एजेंसी भारत के समुद्री तट की रक्षा करने में भारतीय तट रक्षक दल (आईसीजी) की मदद करेगी। ऐसा माना जा रहा है कि इस एजेंसी का कार्यक्षेत्र भारतीय समुद्री सीमा से आगे तक होगा, जिसमें निकटस्थ इलाके और विशेष आर्थिक क्षेत्र भी शामिल होंगे।

नौवाहन विभाग (अधिकार क्षेत्र और समुद्री दावों के निपटारे) अधिनियम, 2017 की मुख्य विशेषताएं

  • इस अधिनियम ने अदालतों के एडमिरैलिटी क्षेत्रधिकारों, समुद्रतटीय दावों पर अदालती कार्रवाही, जहाजों की जब्ती और अन्य संबंधित मुद्दों से जुड़े मौजूदा कानूनों को सुदृढ़ किया है। अभी तक भारतीय न्यायालयों के एडमिरैलिटी (नौ-अधिकरण) क्षेत्रधिकार का वैधानिक ढांचा ब्रिटिश काल में बनाए गए पांच कानूनों के अंतर्गत था। यह वैधानिक ढांचा कुशल शासन में बाधा उत्पन्न करता था।
  • यह कानून नागरिक मामलों में नौवहन विभाग के क्षेत्रधिकार से जुड़े ब्रिटिश काल के पांच पुराने कानूनों को निरस्त करके लाया गया है। ये पांच पुराने कानून इस प्रकार हैं: एडमिरैलिटी कोर्ट ऐक्ट - 1840, एडमिरैलिटी कोर्ट ऐक्ट - 1861, कॉलोनियल कोर्ट्स ऑफ एडमिरैलिटी ऐक्ट - 1890, कॉलोनियल कोर्ट्स ऑफ एडमिरैलिटी (इंडिया) ऐक्ट - 1891 बंबई, कलकत्ता और मद्रास उच्च न्यायालयों के एडमिरैलिटी क्षेत्रधिकारों पर लागू लेटर्स पेटेंट के प्रावधान - 1865।
  • यह अधिनियम भारत के तटवर्ती राज्यों में स्थित उच्च न्यायालयों पर एडमिरैलिटी क्षेत्रधिकार प्रदान करता है और इस क्षेत्रधिकार का विस्तार समुद्री सीमा (आधार रेखा से 12 नॉटिकल मील) तक है।
  • केंद्रीय सरकार के अधिसूचना के द्वारा इस क्षेत्रधिकार को विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र या किसी भारतीय समुद्री क्षेत्र या द्वीपसमूह तक बढ़ाया जा सकता है।
  • यह सभी जहाजों पर लागू होगा चाहे उसके मालिक का आवास या निवास स्थान कहीं भी हो।
  • अंतर्देशीय जहाजों और निर्माणाधीन जहाजों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है लेकिन जरूरत पड़ने पर केंद्र सरकार एक अधिसूचना जारी कर इन जहाजों को भी इसके दायरे में ला सकती है।
  • यह युद्धपोतों एवं नौसेना के सहायक जहाजों और गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जहाजों पर लागू नहीं होगा।
  • जिन पहलुओं के लिए इस विधेयक में प्रावधान नहीं दिए गए हैं उन पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 लागू होगी।