रामसर सम्मेलन

पानी से संतृप्त (सचुरेटेड) भूभाग को आर्द्रभूमि (wetland) कहते हैं। कई भूभाग वर्षभर आर्द्र रहते हैं और अन्य कुछ विशेष मौसम में। जैवविविधता की दृष्टि से आर्द्रभूमियाँ अंत्यंत संवेदनशील होती हैं। विशेष प्रकार की वनस्पतियाँ ही आर्द्रभूमि पर उगने और फलने-फूलने के लिये अनुकूलित होती है।

ईरान के रामसर शहर में 1971 में पारित एक अभिसमय (convention) के अनुसार आर्द्रभूमि ऐसा स्थान है जहाँ वर्ष में आठ माह पानी भरा रहता है। रामसर अभिसमय के अन्तर्गत वैश्विक स्तर पर वर्तमान में कुल 1929 से अधिक आर्द्रभूमियाँ हैं।

ईरान के एक शहर रामसर में 2 फरवरी 1971 को एक सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें दुनिया के कई देशों ने भागीदारी की थी। यहाँ पहुँचने वाले देशों ने एक सर्वमान्य सन्धि पर हस्ताक्षर किये हैं और यह सन्धि उन पर लागू होती है। इसे 21 दिसम्बर 1975 को लागू किया गया। इसके सचिवालय का मुख्यालय स्वीटजरलैंड के ग्लैंड में है और यहाँ इसकी स्टैंडिंग कमेटी तथा वैज्ञानिक दल भी हैं।

वेटलैंड हमारी प्रकृति और पर्यावरण के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। ये एक तरह से हमारे जलीय चक्र का ही अभिन्न हिस्सा है और नदियों या जलाशयों की तरह ही भूजल भण्डारों को रिचार्ज करने का काम तो करता ही है, साथ में जैव विविधता और कई जीव-जन्तुओं तथा पेड़-पौधों के लिये प्राकृतिक आवास भी होता है। इतना ही नहीं यह मेहमान बनकर आने वाले विदेशी पंछियों के लिये आसरा भी होता है, जहाँ वे कुछ खास महीनों में आते हैं।

ये वेटलैंड हमारे अच्छे पर्यावरण के लिये जरूरी हैं। पर बीते कुछ सालों में बढ़ते अतिक्रमण और अन्य कारणों से इनके डूब क्षेत्र में खासी कमी आई है। इससे पर्यावरणविद खासे चिन्तित हैं। हालांकि इन्हें बचाने और संरक्षित करने के लिये भारत सरकार ने भी 1985-86 में राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण योजना भी बनाई थी लेकिन जमीनी तौर पर यह ज्यादा अमल में नहीं आ सकी।

इन्हें बचाने और इनकी उपयोगिता और महत्त्व जन-जन तक पहुँचाने के लिये हर साल 2 फरवरी को वेटलैंड दिवस मनाया जाता है। हमारे लिये वेटलैंड का महत्त्व इसलिये भी ज्यादा है कि बीते दस सालों में भारत के करीब 38 फीसदी वेटलैंड क्षेत्र तबाह हो चुके हैं। यह एक बड़ा संकट है।

अकेले भारत में ही 26 वेटलैंड को रामसर सूची में चिन्हित कर दर्ज किया गया है। इनमें सबसे ज्यादा चार वेटलैंड या आर्द्रभूमि जम्मू-कश्मीर में हैं। सूची के मुताबिक ओडि़शा की चिल्का झील को सबसे पहले 1981 में शामिल किया गया था।

अब तक शामिल किये गए वेटलैंड क्षेत्र में चिल्का झील सर्वाधिक क्षेत्रफल की है। इसके अलावा राजस्थान में केवलादेव पक्षी अभ्यारण्य को भी 1981 में, पंजाब की हरिके झील को, मणिपुर की लोकटक झील को, राजस्थान की साम्भर झील को तथा जम्मू कश्मीर की वुलर झील को एक साथ 1990 में, केरल के अस्तामुड़ी वेटलैंड, उड़ीसा के भितरकनिका मैंग्रोव, मध्य प्रदेश के भोज वेटलैंड, आसाम के दीपोर बील, पश्चिम बंगाल के पूर्वी कोलकाता वेटलैंड, पंजाब के कांजी वेटलैंड और रोपड़ वेटलैंड, आन्ध्र प्रदेश के कोलेरू वेटलैंड, तमिलनाडु के पॉइंट केलिमर, हिमाचल प्रदेश के पौंग बाँध, केरल के सस्थामकोट्टा झील, जम्मू कश्मीर के त्सो मोरीरी वेटलैंड, केरल के वेम्बाद कोल वेटलैंड को वर्ष 2002 में रामसर सूची में शामिल किया गया।

रामसर सूची में किसी भी वेटलैंड को जोड़े जाने के लिये कोई अलग से विशेष कानूनी प्रयासों की जरूरत नहीं पड़ती है। इसके लिये नौ मानदंड के बिन्दुओं पर विचार किया जाता है। इनमें प्रमुख हैं- पशु-पक्षियों के प्रवास और उनकी तादाद, दुर्लभ प्रजातियों के पक्षियों का प्रवास, जैव विविधता और पारिस्थितिकी की महत्ता।

रामसर सूची में शामिल वेटलैंड को जिस दस्तावेज में दर्ज किया जाता है, उसे मांट्रियोक्स रिकॉर्ड कहा जाता है। इसमें यदि कहीं किसी वेटलैंड क्षेत्र में पारिस्थितिकी परिवर्तन, प्रदूषण, अतिक्रमण या किसी तरह के किसी मानवीय हस्तक्षेप की वजह से वहाँ कोई ऐसी स्थिति बनती है जो वेटलैंड के पर्यावरण के लिये किसी भी तरह से उचित नहीं है तो इसकी सूचना रामसर सचिवालय को दी जाती है ताकि समय रहते समुचित कदम उठाए जा सके। ऐसी स्थिति में तत्काल कदम उठाए जाते हैं और सम्बन्धित वेटलैंड की समस्या को सुधारने के लिये तकनीकी या अन्य तरह की सहायता की जाती है।