स्प्रिंकलर (बौछारी) सिंचाई विधि

इस विधि के अन्तर्गत पानी को नाजल के द्वारा हवा में स्प्रे किया जाता है जो भूमि की सतह पर एक समान रूप से गिरता है तथा धीरे-धीरे पौधों की जड़ों में प्रवेश करता है। पानी का दबाव टड्ढूब द्वारा नाजल तक पम्पिंग करके बनाया जाता है। इस विधि से जहां एक ओर कम पानी में पर्याप्त सिंचाई सुनिश्चित होती है, वहीं इस विधि से सिंचाई करने से पौधों की पत्तियों पर जमें धूल के कण भी धुल जाते हैं जिससे पौधों की वात्पोसर्जन तथा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बढ़ जाती है तथा उत्पादन में वृद्धि होती है। इस विधि से सिंचाई हेतु नाली बनाने एवं उसके रख-रखाव का खर्च बच जाता है तथा नियंत्रित मात्र में सिंचाई की जा सकती है। इस विधि से उर्वरक एवं कीटनाशी रसायनों का छिड़काव भी क्षमता पूर्वक किया जा सकता है। फसल को पाला एवं तापक्रम से बचाने के लिए यह विधि उपयोगी है।

स्प्रिंकलर सेट दो प्रकार के होते हैं। प्रथम प्रकार के स्प्रिंकलर सेट रिवाल्विंग हेड के होते हैं, जिसमें दबाव 2 किग्रा- प्रति वर्ग से-मी- होता है। दूसरे प्रकार के स्प्रिंकलर सेट में परफोरेटेड पाइप (छिद्रदार पाइप) होते हैं, जिनको चलाने के लिए 1-4 किग्रा- न्यूनतम दबाव की आवश्यकता होती है।

बौछारी सिंचाई के लाभ

  • इस विधि से सिंचाई की नालियों एवं मेड़ों के बनाने एवं उनके रख-रखाव की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  • जिससे कृषि योग्य भूमि, श्रम एवं लागत की बचत होती है।
  • नालियों से जल प्रवाह के समय होने वाली पानी की क्षति नहीं हो पाती है।
  • पानी के नियंत्रित प्रयोग के कारण सिंचाई दक्षता में वृद्धि होती है।
  • इस विधि से सिंचाई में जल स्त्रेत से अधिक ऊँचाई वाले स्थानों की सिंचाई की जा सकती है।
  • कम सिंचाई जल से अधिक सिंचाई की जा सकती है।