कुएं एवं नलकूप

कुओं का निर्माण सर्वाधिक उन्हीं क्षेत्रें में हुआ है, जहाँ चिकनी बलुई मिट्टðी मिलती है, क्योंकि इससे पानी रिसकर धरातल के अन्दर चला जाता है तथा भूमिगत जल के रूप में भण्डारित हो जाता है। देश में तीन प्रकार के कुएं सिंचाई एवं पेयजल के काम में लाये जाते हैं-

  • कच्चे कुएं
  • पक्के कुएं
  • नलकूप

देश की कुल सिंचित भूमि का कुओं द्वारा सींचे जाने वाला अधिकांश भाग गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश राज्यों में है। यहाँ लगभग 50 प्रतिशत भूमि की सिंचाई कुओं तथा नलरूपों द्वारा ही की जाती है। इन राज्यों के अतिरिक्त हरियाणा, बिहार, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश तथा कर्नाटक राज्यों में भी कुओं एवं नलकूपों द्वारा सिंचाई की जाती है।

प्रथम योजना काल में देश में नलकूपों की संख्या मात्र 3,000 थी, जो वर्तमान में लगभग 57 लाख हो गयी हैं। देश में सर्वाधिक नलकूप पम्पसेट तमिलनाडु में पाये जाते हैं, जबकि महाराष्ट्र का दूसरा स्थान है। नलकूपों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है। पिछलें दो दशकों में पंजाब एवं हरियाणा में इसका प्रचलन बढ़ा है। इसके अतिरिक्त नलकूपों की प्रमुखता वाले अन्य राज्य हैं- आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक एवं गुजरात।

  • सिंचाई की विधियों का चुनाव करते समय ध्यान देने योग्य बातें
  • सिंचाई जल से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त हो सके।
  • सिंचाई जल का वितरण एक समान सम्पूर्ण क्षेत्र में हो सके।
  • भूमि की ऊपरी सतह से हानिकारक लवण सिंचाई द्वारा निचली सतह में चले जाएं जिससे पौधों पर हानिकारक प्रभाव को कम किया जा सके।
  • सिंचाई की चुनी गई विधि में से भू-परिष्करण संबंधित क्रियाओं में कोई व्यवधान न हो तथा खरपतवारों का नियंत्रण भी आसानी से हो सके।
  • सिंचाई के लिए विन्यास तैयार करते समय कम से कम भूमि नष्ट हो।
  • सिंचाई में प्रयुक्त पानी का कम से कम नुकसान हो और आसानी से जड़ क्षेत्र में पहुंच जाए।
  • अत्यधिक मूल्यवान उपकरणों की आवश्यकता न हो।