मिनामाता अभिसमय

भारत के परिप्रेक्ष्य में

भारत ने इस अभिसमय का अनुमोदन 18 जून, 2018 को किया।

पृष्ठभूमि

मिनामाता अभिसमय को 10 अक्टूबर, 2013 को अपनाया गया और 16 अगस्त, 2017 को इसे लागू किया गया। अभिसमय के 128 देश हस्ताक्षरकर्ता हैं। अनुमोदन में 2025 तक पारा-आधारित उत्पादों और पारा यौगिक से जुड़ी प्रक्रियाओं को निरंतर उपयोग के लिए लोचनीयता (Flexibility) को शामिल किया गया है।

मानवजनित उत्सर्जन और पारा एवं पारा यौगिकों के विमुक्त होने से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा के उद्देश्य से पारे पर मिनामाता अभिसमय को सतत विकास के संदर्भ में लागू किया जाएगा।

मिनामाता रोग

मिनामाता रोग की खोज सबसे पहले 1956 में जापान के कुमामोटो प्रान्त के मिनामाता शहर में हुई थी। यह चिसो कॉरपोरेशन के रासायनिक कारखाने से औद्योगिक अपशिष्ट जल में मिथाइल मर्करी (Methyl mercury) के विमुक्त होने के कारण फैला था।

प्रावधानः

  • पारा खदानों पर प्रतिबंध।
  • कई उत्पादों और प्रक्रियाओं में पारे के उपयोग को चरणबद्ध से हटाना।
  • हवा भूमि और जल में उत्सर्जन पर नियंत्रण।
  • छोटे पैमाने पर सोने के खनन के अनौपचारिक क्षेत्र का विनियमन।
  • पारा एक बार बेकार हो जाए तो अभिसमय पारे के अंतरिम भंडारण और इसके निपटान का भी समाधान प्रदान करता है।