स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम अभिसमय

यह संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय संधि है। 22 मई, 2001 को स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम अभिसमय को अंगीकृत किया गया और 17 मई, 2004 को इसे लागू किया गया। इस अभिसमय के 182 पक्षकार तथा 152 हस्ताक्षरकर्ता हैं।

उद्देश्यः

स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों (Persistent Organic Pollutants-POPs) के उत्पादन और उपयोग को खत्म करना या प्रतिबंधित करना है।

  • POPs ऐसे रसायन होते हैं, जो लंबे समय तक पर्यावरण में रहते हैं और भौगोलिक दृष्टि से व्यापक रूप से वितरित होते हैं। ये जीवित जीवों के वसीय ऊतकों में जमा हो जाते हैं और मनुष्यों और वन्यजीवों के लिए जहरीले हो जाते हैं।
  • शुरुआत में मानव और पारितंत्र के लिए 12 स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों को खतरनाक माना गया था। इन्हें डर्टी डजन’ (Dirty Dozen) के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें 3 श्रेणियों में रखा जा सकता है-
  1. कीटनाशकः एल्ड्रिन, क्लोरडेन, डीडीटी, डाइल्ड्रिन, एंड्रिन, हेप्टाक्लोर, हेक्साक्लोरोबेंजीन, मिरेक्स (Mirex), टोक्सफेन (Toxaphene)
  2. औद्योगिक रसायनः हेक्साक्लोरोबेंजीन, पोलिक्लोरीनेटेड बाइफेनिल (PCB)
  3. उप-उत्पादः हेक्साक्लोरोबेंजेन; पोलिक्लोरीनेटेड डाइबेंजो पी डाइओक्सिन (Polychlorinated Dibenzo-p-dioxins) और पोलिक्लोरीनेटेड डाइबेंजोफ्रयूरांस (Polychlorinated Dibenzofurans) और पोलिक्लोरीनेटेड बाइफेनिल।

भारत ने इस अभिसमय पर 14 मई, 2002 को हस्ताक्षर किए और 13 जनवरी, 2006 को अनुमोदन किया। डीडीटी का उपयोग भारत में प्रतिबंधित है। कृषि प्रयोजनों के लिए डीडीटी का उपयोग प्रतिबंधित है, इसका केवल वेक्टर नियंत्रण में उपयोग के लिए सीमित तरीके से उत्पादन होता है, क्योंकि भारत को वेक्टर नियंत्रण के लिए डीडीटी के उपयोग के लिए छूट प्राप्त है।