चांदीपुरा वायरस

गुजरात के दाहोद में 16 जुलाई, 2019 को चांदीपुरा वायरस के चार संदिग्ध मामले देखे गए एवं एक 5 वर्षीय एक बच्ची के रक्त के नमूनों में चांदीपुरा वायरस पायी गयी, जिसके कारण इस बच्ची का निधन हो गया। इस वायरस के संक्रमण के कारण् मस्तिष्क में सूजन एवं इंफ्लुएंजा जैसी बीमारियों से मरीज कोमा में चला जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है। इसका शिकार मुख्यतः ऐसे बच्चे होते हैं, जिनकी आयु 14 वर्ष से कम होती है।

चांदीपुरा वायरस भारत, सेनेगल और नाइजीरिया की सैंड फ्लाई में पाया गया है। इससे पूर्व अंतिम बार इस वायरस का संक्रमण गुजरात में 2014 में देखने को मिला था। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलोजी इन्फोर्मेशन (National Center for Biotechnology Information - NCBI) के अनुसार वेक्टर जनित रोगों से बचाव के लिए विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे पोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता और जागरुकता की आवश्यकता है।

चांदीपुरा वायरस की मुख्य वाहकः चांदीपुरा वायरस की मुख्य वाहक रेत मक्खी (Sand flies) परिवार की फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाई (phlebotomine sandfly) है, जिसके काटने से यह वायरस मुख्यतः प्रसारित होता है। इसके अलावा कभी-कभी यह मच्छरों के काटने से भी प्रसारित होता है। चांदीपुरा वेसीकुलो वायरस (Chandipura Vesiculovirus-CHPV), पहली बार 1965 में पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के दो वायरोलॉजिस्ट द्वारा खोजा गया था।