नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019

12 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति ने नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को स्वीकृति प्रदान किया। इसका उद्देश्य नागरिकता अधिनियम 1955, विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 में परिवर्तन कर तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के कारण आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों की रक्षा करना और उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान करना है।

पृष्ठभूमि

भारत में अवैध प्रवासी एक ऐसा व्यक्ति है, जो वैध यात्रा दस्तावेजों जैसे पासपोर्ट एवं वीजा के बिना भारत में प्रवेश करता है या वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करने के बावजूद अनुमत समयावधि से अधिक समय तक रहता है। विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 अवैध प्रवासियों पर लागू होता है, जिसके द्वारा उन्हें जेल में डाला जा सकता है या निर्वासित किया जा सकता है। अधिनियम का औचित्य दो आधारों पर निर्भर हैं- विभाजन और इस्लामी देशों में गैर-मुस्लिमों का धार्मिक उत्पीड़न।

अधिनियम की मुख्य विशेषताएं

यह अधिनियम 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में पहुंचे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों से संबंधित व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है।

  • इस अधिनियम की तीसरी अनुसूची के अनुसार, उक्त समुदायों से संबंधित आवेदकों को देशीयकरण के माध्यम से नागरिकता प्राप्त करने के लिए पांच साल (पहले ग्यारह वर्ष) भारत में निवास करना होगा।
  • यह अधिनियम संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों और बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत अधिसूचित ‘इनर लाइन’के तहत आने वाले क्षेत्रों पर लागू नहीं किया गया है। हाल ही में, मणिपुर को ‘इनर लाइन’के अंतर्गत सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया।
  • एक व्यक्ति जो नागरिकता के लिए एक आवेदन करता है, उसे इस आधार पर आवेदन करने के अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा कि उसके खिलाफ कार्यवाही चल रही है। इसके अलावा, आवेदन की प्राप्ति की तारीख से एक आवेदक को उसके अधिकारों (rights) और सुविधाओं (privileges) से वंचित नहीं किया जाएगा।
  • इस अधिनियम के द्वारा धारा 7D में संशोधन किया गया है, ताकि नागरिकता अधिनियम या किसी अन्य कानून के प्रावधान का उल्लंघन होने की स्थिति में केंद्र सरकार OCI (ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया) कार्डधारक के पंजीकरण को रद्द कर सके।

प्रभाव

यह तीन पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करने वाले विदेशियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। यह वसुधैव कुटुम्बकम् (विश्व एक परिवार है) के भारतीय सामाजिक मूल्य के सिद्धांत को पुष्ट करता है।

  • पूर्वोत्तर भारत की जनसांख्यिकी विशिष्टता को स्वीकार करते हुए, अधिनियम से बाहर रखा गया है। यह भारत के मुख्य भूमि के साथ पूर्वोत्तर भारत के एकीकरण को बढ़ावा देगा।
  • धार्मिक आधार पर उत्पीड़न के शिकार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आये हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाइयों के लिए प्रासंगिक है, जो 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में प्रवास कर गए थे। उन्हें भारतीय समाज में स्वीकार किया गया है, जो सहिष्णु और समन्वयात्मक (syncretic) है।

चुनौतियां

भारत एक सांस्कृतिक विविधता वाला देश है, अतः किसी भी समुदाय के प्रति कोई सकारात्मक भेदभाव (positive discrimination) दूसरे समुदाय की मांग को बढ़ाता है। इसके साथ ही, दक्षिण एशिया में सांप्रदायिक उत्पीड़न में कोई कमी नहीं आई है। उदाहरणः रोहिंग्या, अहमदिया और उइगर आदि का उत्पीड़न।

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR)

  • इसमें उन सभी निवासियों की सूची शामिल हैं, जो कम से कम पिछले छः महीने से किसी इलाके में रहते हैं और अगले छः महीने या उससे अधिक समय तक उस क्षेत्र में रहने की योजना हैं।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान-पत्र जारी करना) नियम, 2003 के प्रावधानों के तहत स्थानीय (गाँव / उप नगर), उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है। भारत के प्रत्येक ‘सामान्य निवासी’का पंजीकरण अनिवार्य है।
  • डेटाबेस में जनसांख्यिकीय के साथ-साथ बॉयोमीट्रिक विवरण शामिल होंगे। आवश्यक जनसांख्यिकीय विवरण में नाम, माता-पिता का नाम, पति या पत्नी का नाम, लिंग, जन्म तिथि, जन्म स्थान, राष्ट्रीयता (घोषित), स्थायी और वर्तमान पता (यदि वे भिन्न हैं) आदि शामिल हैं।
  • अप्रैल से सितंबर 2020 के बीच सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (असम को छोड़कर) में एक साथ तैयार किया जाएगा। रजिस्ट्रार जनरल एवं जनगणना आयुक्त के तत्वधान में इसको भारत की जनगणना के साथ तैयार किया जाना है।
  • सब्सिडी के लाभार्थियों की पहचान में एनपीआर डेटा का उपयोग किया जाएगा।
  • एनपीआर के लिए किसी भी दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होगी; क्योंकि जनसंख्या रजिस्टर में डेटा प्रविष्टि के लिए स्व-घोषणा को पर्याप्त माना जाएगा।
  • वर्ष 2010 और 2015 में इसे लागू किया गया था। एनपीआर को प्रथम बार वर्ष 2004 में यूपीए सरकार द्वारा 1955 नागरिकता अधिनियम में संशोधन के बाद लागू किया गया था, जो केंद्र सरकार को भारत के प्रत्येक नागरिक को पंजीकृत करने की शक्ति प्रदान करता है। 2003 से 2009 की अवधि के दौरान चुनिंदा क्षेत्रों में इसे एक पायलट परियोजना के रूप में लागू की गई थी। अगले दो वर्षों (2009-2011) में एनपीआर तटीय क्षेत्रों में भी चलाया गया था। इसका उपयोग मुंबई हमले के बाद सुरक्षा बढ़ाने में किया गया था और लगभग 66 लाख निवासियों को निवासी पहचान पत्र जारी किए गए थे।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC)

  • यह भारतीय नागरिकों का डेटाबेस है। इसमें नाम दर्ज कराने के लिए नागरिकता के प्रमाण की मांग की जाती है। नागरिकता के प्रमाण प्रस्तुत करने में विफल होने पर, एक व्यक्ति को निर्वासन या हिरासत का सामना कर सकता है।
  • हिंदू-मुस्लिम संबंध एवं इस प्रकार निर्णय को बहुसंख्यक/अल्पसंख्यक की दृष्टि से देखा जाता है।
  • इस अधिनियम के विभेदक उपचार सामाजिक एकता के लिए समस्या उत्पन्न करेगाः यह अवैध प्रवासियों में (a) उनके मूल देश, (b) धर्म, (c) भारत में प्रवेश की तिथि और (d) भारत में निवास स्थान के आधार पर अंतर करता है। मुस्लिमों को डर है कि अगर नागरिकों का एक राष्ट्रव्यापी रजिस्टर (एनआरसी) लाया जाता है और नागरिकता साबित करने के दस्तावेजों को प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं, तो उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा और देश से निकाल दिया जाएगा।
  • सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाई जा रही गलत सूचना और सरकार का आदेश आंदोलनकारियों में भय उत्पन्न कर रहा है।
  • मुसलमानों का अलगाव राष्ट्रीय एकता के लिए अवरोध उत्पन्न कर रहा है।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता सर्वोच्च मूल्य हैं और समाज को एकजुट करने के उद्देश्य से किए गए किसी भी कार्य का स्वागत किया जाना चाहिए। सांप्रदायिक सद्भाव संविधान की मूल संरचना है और नागरिकों का दायित्व है कि वे इसे स्वीकार करें और इसका सम्मान करें। सकारात्मक भेदभाव को धर्मनिरपेक्षता या अन्य समुदायों के पक्ष लेने के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। न्यायपालिका संविधान का संरक्षक है और न्याय को अदालतों पर छोड़ दिया जाना चाहिए।

  • देशीयकरण (नागरिकता अधिनियम की धारा 6) या पंजीकरण (अधिनियम की धारा 5) के माध्यम से किसी भी श्रेणी के, किसी भी विदेशी नागरिक को भारतीय नागरिकता मिलेगी, यदि भारतीय नागरिकता प्रदान करने के योग्य पाया जाता है। वर्ष 2014 में भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद के समाधान के बाद, 14,864 बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता दी गई थी। इन विदेशियों में अधिकांश मुसलमान थे।
  • लोकतंत्र में नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने का वैध अधिकार है और इसमें असंतोष का अधिकार भी शामिल है। वर्तमान परिदृश्य में लोगों के विरोध को न केवल कानून और व्यवस्था के मुद्दे के रूप में माना जाना चाहिए, बल्कि अत्यधिक बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। लोगों के डर एवं चिंताओं को कम करने के लिए सरकार द्वारा लगातार प्रयास किया जाना चाहिए। बहस, विचार-विमर्श और चर्चा के माध्यम से आगे की राह निकाला जाना चाहिए।