आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण (EWS)

9 जनवरी, 2019 को संसद द्वारा 103वां संविधान संशोधन अधिनियम 2019 पारित किया गया। यह अधिनियम आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित व्यक्तियों को 10% आरक्षण का प्रावधान करता है (सार्वजनिक सेवाओं में सीधी भर्ती और शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन के विषय में)।

पृष्ठभूमि

  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित व्यक्ति आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग कर रहे थे। संविधान का अनुच्छेद 15 किसी भी नागरिक के साथ नस्ल, धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकता है। हालाँकि, सरकार सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान कर सकती है।
  • संविधान का अनुच्छेद 16 किसी भी सरकारी कार्यालय में राज्य के अधीन रोजगार में भेदभाव पर रोक लगाता है। सरकार ‘नागरिकों के पिछड़े वर्ग’के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकती है, अगर राज्य की सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • केंद्र सरकार ने 103वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 को लागू किया, जिसके द्वारा ‘आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों’की उन्नति के लिए अनुच्छेद 15 में तथा अनुच्छेद 16 में संशोधन किया गया।

भारत में आरक्षण

वर्ष 1932 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामसे मैकडोनाल्ड द्वारा सांप्रदायिक पुरस्कार की घोषणा की गई, जिसमें मुसलमानों, बौद्धों, सिखों, ईसाइयों, एंग्लो-इंडियन, यूरोपीय और दलित वर्ग के लिए अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्र प्रदान करने का प्रावधान था।

  • वर्ष 1942 में बी.आर. अंबेडकर वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य बने और अनुसूचित जातियों के लिए 8.5 प्रतिशत आरक्षण दिया गया।
  • वर्ष 1950 में भारत के ‘सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रम’के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण प्रदान किया।
  • वर्ष 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की, जिसे भारत सरकार द्वारा लागू किया गया।
  • वर्ष 2019 में संसद ने 103वां संशोधन अधिनियम पारित किया, जिसने उच्च शिक्षा और नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की अनुमति दी।

मुख्य विशेषताएं

संविधान में अनुच्छेद 15(6) और 16(6) सम्मिलित किए गए हैं, जो राज्य को नागरिक पदों एवं सेवाओं और शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश पर आरक्षण का लाभ प्रदान करने में सक्षम बनाता है।

  • शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक रोजगार में ‘आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों’के लिए 10% आरक्षण मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगा।
  • यह अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर आरक्षण लागू नहीं होगा।
  • केंद्र सरकार पारिवारिक आय और अन्य आर्थिक संकेतकों के आधार पर नागरिकों के ‘आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों’को सूचित करेगी।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए मानदंड

जिस परिवार की सकल वार्षिक आय 8 लाख रुपये से कम है, उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के रूप में माना गया है। आय में सभी स्रोतों यानी वेतन, कृषि, व्यवसाय, पेशे आदि से आय भी शामिल होगी।

ऐसे व्यक्ति जिनके परिवार के पास निम्नलिखित में से कोई भी संपत्ति है, ईडब्ल्यूएस नहीं माना जायेगा, भले ही परिवार की आय आठ लाख रुपये से कम होः

  • 5 एकड़ से अधिक कृषि भूमि।
  • 1000 वर्ग फुट और उससे अधिक का आवासीय भूखंड।
  • अधिसूचित नगरपालिकाओं में 100 वर्ग गज और उससे अधिक का आवासीय भूखंड।
  • अधिसूचित नगरपालिकाओं के अलावा अन्य क्षेत्रों में आवासीय, 200 वर्ग गज और उससे अधिक का भूखंड।
  • इस प्रकार आर्थिक रूप से कमजोर अनारक्षित वर्ग की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा किया गया, जिसने आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के बीच सामाजिक एकीकरण को संभव बनाया है।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के आरक्षण का प्रभाव

  • आरक्षण से वंचित समूह समाज में भेदभाव उत्पन्न करते हैं। आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण प्रदान करना समाज को एकीकरण करने की दिशा में एक कदम है।
  • आर्थिक मानदंडों पर आरक्षण देकर सकारात्मक भेदभाव की अवधारणा को साकार किया गया है।
  • यह गुजरात के पाटीदारों, हरियाणा के जाटों जैसे उच्च जातियों के आरक्षण की मांग को कम करेगा।
  • आरक्षित श्रेणियों में निम्न और सवर्ण दोनों शामिल हैं, जिससे समानता को बढ़ावा मिलेगा।