भुलाए जाने का अधिकार

2008 में रियलिटी शो बिग बॉस विजेता आशुतोष कौशिक ने अपने ‘भुलाए जाने के अधिकार’ (Right to be Forgotten) का हवाला देते हुए अपने नाम से वीडियो, फोटो और लेख आदि को इंटरनेट से हटाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय से गुहार लगाई है।

महत्वपूर्ण तथ्यः याचिका में उल्लेख किया गया है कि एक दशक पहले उनके तुच्छ कृत्यों से उन्हें मानसिक आघात पहुंचा है, क्योंकि उनके वीडियो, फोटो और लेख आदि विभिन्न सर्च इंजन/डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अब भी मौजूद हैं।

  • ‘भुलाए जाने का अधिकार’ व्यक्ति के ‘निजता के अधिकार’ के दायरे में आता है।
  • 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले (पुत्तुस्वामी मामले) में निजता के अधिकार को अनुच्छेद- 21 के तहत ‘मौलिक अधिकार’ घोषित किया था।
  • ‘निजता का अधिकार’ निजी डेटा संरक्षण विधेयक द्वारा प्रशासित होता है, जिसे संसद द्वारा पारित किया जाना बाकी है।
  • इस मसौदा विधेयक के अध्याय V के खंड 20 में ‘भुलाए जाने का अधिकार’ का उल्लेख है। इसमें ‘डेटा से संबंधित व्यक्ति/इकाई को डेटा न्यासियों (data fiduciary) द्वारा उनके व्यक्तिगत डेटा के निरंतर प्रकटीकरण को प्रतिबंधित करने या रोकने का अधिकार होगा’।
  • डेटा न्यासियों का अर्थ है कोई भी व्यक्ति, जिसमें राज्य, कंपनी, कोई कानूनी संस्था या कोई भी व्यक्तिगत रूप से शामिल है, जो अकेले या दूसरों के साथ मिलकर व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधनों को निर्धारित करते हैं।
  • न्यायमूर्ति बी. एन. श्रीकृष्ण समिति, जिसने निजी डेटा संरक्षण विधेयक, 2018 का मसौदा तैयार किया, ने ‘भुलाए जाने का अधिकार’ नामक एक नया अधिकार पेश किया है।

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