भारत की दुर्लभ भू-संपदा का समुचित दोहन: एक रणनीतिक अनिवार्यता - नुपुर जोशी
दुर्लभ भू-तत्व (REEs) हरित ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा क्षेत्र के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन इनके वैश्विक प्रसंस्करण पर चीन का वर्चस्व है। भारत विश्व में 5वां सबसे बड़ा दुर्लभ भू-तत्व (REEs) भंडार होने के बावजूद इस संसाधन का समुचित उपयोग नहीं कर पाया है। वर्ष 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस रणनीतिक खनिज संसाधन का दोहन अनिवार्य है, ताकि खनिज आत्मनिर्भरता, प्रौद्योगिकीय सुदृढ़ता और भविष्य की तैयारी सुनिश्चित की जा सके।
चीन द्वारा दुर्लभ भू-तत्वों के निर्यात पर अपनी पकड़ बनाए रखने से वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएं बाधित हुई हैं, जिसका प्रभाव अमेरिका, जापान, जर्मनी ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 भारत की पाण्डुलिपि धरोहर प्राचीन ज्ञान का अमूल्य भंडार - संपादकीय डेस्क
- 2 ब्लू इकॉनमी व सतत समुद्री प्रगति भारत का दृष्टिकोण एवं रणनीति - आलोक सिंह
- 3 सतत मृदा प्रबंधन खाद्य सुरक्षा, जलवायु और जीवन का आधार - आलोक सिंह
- 4 माइक्रोप्लास्टिक संकट : मानव स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिक तंत्र के लिए अदृश्य खतरा
- 5 भारत के परिवहन क्षेत्र का विकार्बनीकरण
- 6 ब्रिक्स एवं वैश्विक दक्षिण - आलोक सिंह
- 7 प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता: भारत की भावी संवृद्धि का एक प्रमुख स्तंभ - संपादकीय डेस्क
- 8 कृत्रिम बुद्धिमत्ता का पर्यावरणीय प्रभाव : नवाचार और धारणीयता का संतुलन
- 9 भारत की वैश्विक रणनीतिक साझेदारियां
- 10 भारत की साइबर प्रतिरोधक क्षमता का सुदृढ़ीकरण एक राष्ट्रीय सुरक्षा अनिवार्यता - संपादकीय डेस्क

