सर्कुलर इकोनॉमी : सतत भविष्य की ओर भारतीय अर्थव्यवस्था का संक्रमण - संपादकीय डेस्क
चक्रीय अर्थव्यवस्था या सर्कुलर इकोनॉमी द्वारा जहां एक तरफ अकुशल या अर्द्ध-कुशल जनसंख्या हेतु रोजगार के नए अवसर उत्पन्न किये जा सकेंगे, वहीं दूसरी ओर भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक संसाधन कुशल भी बनाया जा सकेगा। यह देश के लोगों को पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक लाभ भी प्रदान करेगा। ऐसे में सरकार को सर्कुलर इकोनॉमी से संबंधित उचित नीति निर्माण करने की आवश्यकता है, जो उत्पाद के संग्रहण, शोधन, पुनः उत्पादन, पुनर्चक्रण और निपटान के तरीकों का स्पष्ट रूप से उल्लेख करे।
जुलाई 2023 में, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने चेन्नई में चौथे G20 पर्यावरण एवं जलवायु स्थिरता कार्य ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 भारत की पाण्डुलिपि धरोहर प्राचीन ज्ञान का अमूल्य भंडार - संपादकीय डेस्क
- 2 ब्लू इकॉनमी व सतत समुद्री प्रगति भारत का दृष्टिकोण एवं रणनीति - आलोक सिंह
- 3 सतत मृदा प्रबंधन खाद्य सुरक्षा, जलवायु और जीवन का आधार - आलोक सिंह
- 4 माइक्रोप्लास्टिक संकट : मानव स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिक तंत्र के लिए अदृश्य खतरा
- 5 भारत के परिवहन क्षेत्र का विकार्बनीकरण
- 6 ब्रिक्स एवं वैश्विक दक्षिण - आलोक सिंह
- 7 भारत की दुर्लभ भू-संपदा का समुचित दोहन: एक रणनीतिक अनिवार्यता - नुपुर जोशी
- 8 प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता: भारत की भावी संवृद्धि का एक प्रमुख स्तंभ - संपादकीय डेस्क
- 9 कृत्रिम बुद्धिमत्ता का पर्यावरणीय प्रभाव : नवाचार और धारणीयता का संतुलन
- 10 भारत की वैश्विक रणनीतिक साझेदारियां

- 1 चंद्रयान-3 मिशन : भारत की अंतरिक्ष यात्रा में महत्वपूर्ण मील का पत्थर - डॉ. अमरजीत भार्गव
- 2 15वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन समूह के विस्तार का भारत के लिए निहितार्थ एवं चुनौतियां - महेंद्र चिलकोटी
- 3 भारत में मादक द्रव्यों का सेवन : नशा-मुक्त समाज के निर्माण हेतु बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक - संपादकीय डेस्क