विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मई 2018 में जिनेवा में वर्ष 2016 के लिए विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की गयी। इस सूची में विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 14 शहर शामिल हैं। सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में उत्तर प्रदेश का औद्योगिक नगर कानपुर शीर्ष पर जबकि देश की राजधानी दिल्ली छठे पायदान पर है।
  • ये आंकड़े शहरों की जहरीली वायु गुणवत्ता के आधार पर जारी किये गये हैं। इस रिपोर्ट में पीएम 10 और पीएम 2.5 के स्तर को शामिल किया गया है जिनमें अधिकतर शहर उत्तर भारत के हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार-
  1. वायु प्रदूषण का बड़ा स्रोत पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम को माना गया है। नए आंकड़ों के अनुसार 10 लोगों में से 9 लोग उच्च स्तर वाली प्रदूषित हवा श्वास के रूप में लेते हैं और इससे हर वर्ष 7 मिलियन लोगों को की मौत हो जाती है। इसमें एशियाई और अफ्रीकी देशों के लोग अधिक शामिल हैं।
  2. हृदय रोग, स्ट्रोक और फेफड़ों के कैंसर से लगभग एक चौथाई मौत की वजह वायु प्रदूषण ही होता है।

2016 के लिए विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची

रैंक

शहर

PM 2.5 का स्तर

1.

कानपुर

173

2.

फरीदाबाद

172

3.

वाराणसी

151

4.

गया

149

5.

पटना

144

6.

दिल्ली

143

7.

लखनऊ

138

8.

आगरा

131

9.

मुजफ्फरपुर

120

10.

श्रीनगर

113

11.

गुरुग्राम

113

12.

जयपुर

105

13.

पटियाला

101

14.

जोधपुर

98

15.

अली सुबह अल-सलेम (कुवैत)

94

पार्टिकुलेट मैटर (कणिका तत्व): पार्टिकुलेट मैटर या वायुमंडलीय वातकण पृथ्वी के वायुमंडल में फैला सूक्ष्म ठोस या तरल वात है। इसका स्रोत प्राकृतिक ज्वालामुखी, धूल, तूफान, जंगल की आग आदि हो सकता है। साथ ही वाहन, बिजली संयंत्रों और अन्य उद्योगों में जीवाश्म ईंधन के जलने से वात बनता है। इसे आकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है और धूल कणों के व्यास को माइक्रोन (एक मीटर के दस लाखवें अंश) में मापा जाता है।

मोटे धूल कण (पीएम स्तर 10): मोटे धूल कणों का व्यास 2.5 से 10 माइक्रोमीटर तक होता है। यह ठोस पदार्थ को पीसने से उत्पन्न होता है और सड़क पर गाडि़यों से निकले धूल से फैलता है। इसके छोटे टुकड़े नाक द्वारा फेफड़ों में जाकर स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं।

छोटे धूल कण (पीएम स्तर 2.5): इसका व्यास 2.5 पीएम स्तर होता है जो सभी प्रकार के दहन, मोटर वाहन, बिजली संयंत्रों, आवासीय लकड़ी के जलने, जंगल की आग और कुछ औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्पादित होते हैं। यह फेफड़ों से होकर हमारे रक्त प्रवाह प्रणाली में जा सकते हैं, जिससे शरीर की प्रतिशोधन क्षमता खत्म होने का डर बना रहता है।