भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और सरकार का विवाद

सरकार और आरबीआई अधिकारियों के बीच मतभेद सामने आए हैं। आरबीआई का 3.6 लाख करोड़ रुपये का अधिशेष सरकार को हस्तांतरित करने के मुद्दे को लेकर यह टकराव सुर्खियों में आया था। वित्त मंत्रालय ने आरोप लगाया कि आरबीआई की पूंजी आवश्यकताओं और सरकार को उसके रिजर्व कोष के हस्तांतरण की शर्तों को नियंत्रित करने वाला वर्तमान आर्थिक पूंजी ढांचा, आरबीआई द्वारा जोखिम के बहुत ही रूढ़िवादी मूल्यांकन पर आधारित है।

सरकार ने बाद में आरबीआई अधिनियम की धारा 7 लगाने की धमकी की बात कही। इस धारा में कहा गया है कि केंद्र सरकार समय-समय पर रिजर्व बैंक को ऐसे निर्देश दे सकती है जो बैंक के गवर्नर के साथ परामर्श करने के बाद सार्वजनिक हित में आवश्यक हो।’’ इसके बाद आरबीआई ने बिमल जालान की अध्यक्षता में केंद्रीय बैंकों के आर्थिक पूंजी ढांचे (Economic Capital Framework) की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन कर दिया।

रिजर्व कोष रखने का उद्देश्य

भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934, के अनुसार आरबीआई का मुख्य उद्देश्य है-‘‘बैंक नोटों के मुद्दे को विनियमित करने के साथ-साथ मौद्रिक स्थिरता को सुरक्षित रखने की दृष्टि से आरक्षित कोष रखना।’’

RBI की वर्तमान बहस दो भण्डारों के इर्द-गिर्द घूम रही है, जिनके नाम हैं- ‘‘मुद्रा और स्वर्ण पुनर्मूल्यांकन खाता (CGRA) और आकस्मिकता निधि’’। CGRA उस सोने और विदेशी मुद्रा के मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है, जो आरबीआई भारत की ओर से रखता है। सीजीआरए में बदलाव केवल इन परिसंपत्तियों के बदलते बाजार मूल्य से होता है। भारत की आकस्मिकता निधि का उद्देश्य उन अप्रत्याशित आकस्मिकताओं से निपटना है, जो आरबीआई की मौद्रिक नीति और विनिमय दर संचालन से उत्पन्न होती है। दोनों मामलों में, आरबीआई तरलता को समायोजित करने या मुद्रा मूल्य में बड़े उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए संबंधित बाजारों में हस्तक्षेप करता है।

  • इन भंडारों का उद्देश्य एक ऐसी आर्थिक स्थिति से निपटना है, जबः
  • एक या एक से अधिक मुद्राओं के मुकाबले रुपये का अधिमूल्यन या अवमूल्यन होता है।
  • जब उत्पादन में वृद्धि होती है और उनकी कीमतें गिरती हैं, तो आरबीआई के सरकारी बांडों की कीमत कम हो जाती है।
  • एक वर्ष में विमुद्रीकरण, मुद्रा बाजार संचालन और मुद्रा मुद्रण खर्च जैसी असाधारण घटनाएं।
  • इसे अंतिम ऋणदाता के रूप में कार्य करना और जमा बीमा कोष को भी सुरक्षा प्रदान करना होता है।

सरकार को रिजर्व भंडार के हस्तांतरण का प्रभाव

  • राजकोषीय विवेक के लिए सरकार की प्रतिबद्धतता को नुकसान।
  • वित्तीय बाजार में भरोसे पर प्रभाव।
  • अधिक सरकारी व्यय की पृष्ठभूमि पर उच्च मुद्रास्फीति।
  • आरबीआई की मौद्रिक नीति प्रतिबद्धतता को खत्म करना।
  • सार्वजनिक ऋण कार्यालय के रूप में आरबीआई में न्यस्त भरोसे को नष्ट करना।

आरबीआई और सरकार के बीच संघर्ष के पुराने मामले

  • शीघ्र सुधारात्मक कार्रवाई के आसान मानदंड।
  • सार्वजनिक ऋण प्रबंधन एजेंसी।
  • गैर बैंकिंग वित्त कंपनी तरलता।
  • पंजाब नेशनल बैंक धोखाधड़ी।
  • बैंकों पर नियामक शक्तियां।
  • भुगतान प्रणाली के लिए मानदंड।
  • फाइनेंसियल रिजोल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस (FRDI) बिल 2017।

आगे की राह

  • संस्थागत स्वायत्तता और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन बनाना। उदाहरण के लिए, हाल में मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण मॉडल पर जाना, जो मौद्रिक नीति पर सरकार के निर्देशों को सीमित करता है, लेकिन उच्च मुद्रास्फीति के मामले में आरबीआई की सार्वजनिक जवाबदेही बढ़ाता है।
  • वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (एफएसएलआरसी) की सिफारिशों का पालन करना, जो वित्तीय क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले विधायी ढांचे को संशोधित करता है। यह मनमानी से जवाबदेही की ओर एक नीतिगत बदलाव है।
  • अल्पकालिक राजनीतिक विचारों से अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए सरकार के आर्थिक रुख में परिवर्तन।