सरकारी अभियोजन नीति की समीक्षा

पहले भी जुर्माना किए जाने के बावजूद न्याय प्रणाली को ठप करने के लिए मामलों में कानून के समान सवालों पर बार-बार अपील दायर करने के कारण सर्वोच्च न्यायालय नेही में केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। यह देखा गया है कि न्यायालयों में लंबित मामलों में लगभग 46 प्रतिशत केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दायर किए गए हैं या उनमें से एक पार्टी के रूप में राज्य सरकार है। आर्थिक सर्वेक्षण में भी इस समस्या को उजागर किया गया है। आर्थिक सर्वेक्षण 2018 में सरकारी विभागों द्वारा बड़े पैमाने पर मुकदमेबाजी की ओर इशारा किया गया है। इसके कारण निम्न सजा दरों, रुकी हुई परियोजनाओं, अत्यधिक कानूनी लागतों, बढ़ते कर राजस्व विवाद और घटते निवेश के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से प्रभावित हुई है।

अत्यधिक सरकारी मुकदमों के कारण

  • एक निरर्थक राष्ट्रीय अभियोजन नीति 2010।
  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों का भय।
  • तीन C की निरंतर छाया, जिनके नाम हैं-मुख्य सतर्कता आयुक्त (CVC), केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)।
  • एक नौकरशाही जो भ्रष्टाचार में सहायक के रूप में देखे जाने के डर से जोखिम उठाने के अत्यधिक खिलाफ है।
  • सरकार के खिलाफ सेवा, भूमि राजस्व, भूमि अधिग्रहण, शिक्षा और श्रम वर्गीकरण के तहत दायर अत्यधिक रिट याचिकाएं (अनुच्छेद 226 के तहत)।

मुकदमेबाजी को कम करने के उपाय

  • एक बार जब सुप्रीम कोर्ट या किसी उच्च न्यायालय द्वारा कोई निर्णय दिया जाता है, तो केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा एक निर्देश जारी किया जाना चाहिए, जिसमें एक ही मुद्दे से संबंधित विभागीय अपीलों को वापस लिया जा सके।
  • एक पूर्व-विवाद परामर्श तंत्र को लागू करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से उच्च मूल्य विवादों के लिए यह विभिन्न मुद्दों को निपटाने में मदद कर सकता है। मूल्यांकन आदेश केवल उन विवादित मुद्दों के लिए दिए जाने चाहिए, जिन पर कोई समझौता नहीं किया जा सका था।
  • भारत को एक निजी पत्र व्यवस्था (a private letter ruling) के तंत्र को लागू करने की आवश्यकता है। यह कर प्रशासन का एक लिखित जवाब होता है, जो करदाता को उसके अनुरोध पर जारी किया जाता है। यह करदाताओं से जुड़े तथ्यों के आधार पर कर कानूनों की व्याख्या और उनको लागू करता है।
  • कर विभाग की ओर से पेश होने वाले विभागीय प्रतिनिधियों को अंतर्राष्ट्रीय कर और हस्तांतरण मूल्य निर्धारण के जटिल मुद्दों पर नियमित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  • सभी न्यायिक स्तरों में अधिक आयुक्त (अपील), अधिक न्यायाधीश, अधिक विशिष्ट पीठों की आवश्यकता भी है।
  • राज्य को प्रत्येक विभाग के भीतर एक मजबूत आंतरिक विवाद समाधान तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है, जो प्रबंधन के खिलाफ शिकायतों को दूर करने के साधन के रूप में उसके कर्मचारियों में आत्मविश्वास को बढ़ाएगा।
  • भूमि अधिग्रहण के खिलाफ रिट याचिकाओं को कम करने के लिए, राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अर्द्ध-न्यायिक अधिकारियों को न्यायिक रूप से प्रशिक्षित किया जाए या अर्द्ध-न्यायिक कार्यों का निर्वहन करने के लिए न्यायिक अधिकारियों का एक अलग वर्ग बनाया जाए।
  • आगे की अपील पर फैसला करने के लिए कर विभाग के एक स्वतंत्र पैनल का गठन किया जाए।

आगे की राह

राष्ट्रीय अभियोजन नीति की समीक्षा चल रही है, लेकिन भारत सरकार को एक ‘‘आदर्श पक्षकार’’ में रूपांतरित होने के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण उपायों का पालन करना चाहिए,

  • स्पष्ट उद्देश्यों का निर्धारण जिनका मूल्यांकन किया जा सके।
  • विभिन्न पदाधिकारियों की भूमिका स्पष्ट रूप से निर्धारित होनी चाहिए।
  • मुकदमा करने के लिए न्यूनतम मानकों को सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।
  • निष्पक्ष जवाबदेही तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।
  • नीति के उल्लंघन के लिए दंड दिया जाना चाहिए।
  • आवधिक प्रभाव मूल्यांकन कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए।

मध्य प्रदेश अभियोजन नीति 2018

मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में अपनी अभियोजन नीति 2018 में कोई मुकदमा हारने या अप्रासंगिक मुकदमों को दायर करते पाए जाने पर उसका भार अधिकारियों पर डाला है। यह नियम मुकदमेबाजी के मामलों को कम करने में एक निवारक उपाय के रूप में कार्य कर सकता है। इसका मनमाना नहीं, वरन बुद्धिमानी से उपयोग किया जाना चाहिए। इसे समझने की जरूरत है कि आयकर विभाग का कर संबंधी मामलों को दर्ज करने और सार्वजनिक हित में इसे आगे बढ़ाने का विशेषाधिकार है। लेकिन इससे सामान्य वादियों के मामलों की सुनवाई में देरी के कारण उनको न्याय मिलने में बाधा नहीं उत्पन्न होनी चाहिए।